Thursday, April 25, 2024
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Rajat Sharma’s Blog- किसानों को मेरी सलाह: संशोधन के बाद कृषि कानून पसंद न आएं तो आंदोलन करें

मैं किसान नेताओं के बीच पैदा हुई दरार को लेकर ज्यादा चिंतित हूं। उनके बीच अब किसानों की बात कम हो रही है, और सियासत की बात ज्यादा हो रही है।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: January 19, 2021 18:23 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

आज अपने 55वें दिन में प्रवेश कर चुके किसान आंदोलन में पर्दे के पीछे से सियासी ताकतें सक्रिय तौर पर काम में लगी हैं। ऐंटी-मोदी मोर्चा अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहा है। सोमवार को किसान नेताओं के बीच अनबन की खबर आई थी। हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के एक किसान नेता, गुरनाम सिंह चढ़ूनी को संयुक्त किसान मोर्चा ने सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद सुलह की कोशिशें की गईं और शाम तक सस्पेंशन वापस ले लिया गया।

किसान नेताओं के बीच एकता में दरार के संकेत हैं जो पिछले 24 घंटों में दिखाई देने लगे हैं। चढ़ूनी और मध्य प्रदेश के एक अन्य किसान नेता  शिव कुमार कक्काजी ने एक-दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाजी की। एक स्थानीय मीडिया ने कक्काजी के हवाले से खबर दी थी कि चढ़ूनी ने हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार को गिराने के लिए 10 करोड़ रुपये लिए थे, लेकिन बाद में कक्काजी ने ऐसा कोई भी आरोप लगाने की बात से इनकार कर दिया। वहीं, चढ़ूनी ने पलटवार करते हुए कक्काजी को ‘आरएसएस का एजेंट’ करार दे दिया।

बाद में चढ़ूनी ने साफ किया कि उन्होंने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में राजनीतिक दलों की एक मीटिंग आयोजित की थी। इस मीटिंग में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत 11 पार्टियों के नेता मौजूद थे। उन्होंने इस मीटिंग में व्यक्तिगत तौर पर हिस्सा लिया था और भविष्य में वह ऐसा नहीं करेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार की शाम को एक बयान जारी कर कहा कि चढ़ूनी द्वारा बुलाई गई राजनीतिक दलों की बैठक से उसका कोई लेना-देना नहीं है। मोर्चा ने कहा कि उसने इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। इसने साफ किया कि इसका किसी भी राजनीतिक दल से सीधा जुड़ाव नहीं होगा, हालांकि कोई भी संगठन या पार्टी इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए स्वतंत्र है।

गैर-राजनीतिक किसान नेताओं ने कहा कि उन्होंने अपन आंदोलन स्थल पर न तो किसी पार्टी का झंडा लगने दिया और न ही किसी पार्टी के नेता को अपने मंच पर चढ़ने दिया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों के नेता लगातार आंदोलन में घुसने की कोशिश करते रहे। इन राजनीतिक दलों ने कुछ किसान नेताओं को यह पट्टी पढ़ा दी कि सरकार की कोई बात न मानने में ही उनकी जीत है। जब हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठे चढ़ूनी की तस्वीरें सामने आईं, तो अन्य किसान नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद किसान नेताओं की सबसे प्रमुख 7-मेंबर कमेटी की बैठक बुलाई गई, जिसमें चढ़ूनी को सस्पेंड करने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह भी फैसला किया गया कि केंद्र के साथ दसवें दौर की बातचीत के लिए जाने वाले किसानों के प्रतिनिधिमंडल में चढ़ूनी नहीं होंगे। ऐसी अफवाहें थीं कि चढ़ूनी ने हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस नेताओं से डील कर ली है।

अपने सस्पेंशन के तुरंत बाद चढ़ूनी ने आरोप लगाया कि कक्काजी आरएसएस के एजेंट हैं और उन्हें किसानों के आंदोलन में दरार पैदा करने के लिए भेजा गया है। चढ़ूनी ने कहा कि कक्काजी के संगठन में मुश्किल से 100 किसान हैं। उन्होंने उस अखबार को भी मानहानि का नोटिस भेजने की धमकी दी जिसमें कक्काजी का यह आरोप छापा गया था कि चढ़ूनी कांग्रेस पार्टी ने टिकट देने की पेशकश की है।

कक्काजी से चढ़ूनी इसलिए नाराज थे क्योंकि जिस 7-सदस्यीय कमेटी ने उन्हें सस्पेंड किया उसकी अध्यक्षता कक्काजी ही कर रहे थे। शाम को जारी किए गए एक वीडियो संदेश में कक्काजी ने कहा कि उन्होंने कभी भी ऐसा बयान नहीं दिया है कि चढ़ूनी ने कांग्रेस से 10 करोड़ रुपये लिए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि बीकेयू के एक अन्य नेता राकेश टिकैत ने भी कक्काजी का समर्थन किया और कहा कि चढ़ूनी को सस्पेंड करने का फैसला कमेटी ने किया था।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस पूरे घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनका आरोप अब सच साबित हो गया है कि किसानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ है, लेकिन ‘इस तरह की काली करतूतों से कुछ नहीं होगा और न ही वे लोग मेरी सरकार गिरा पाएंगे। ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से एक्सपोज किया जाएगा। न तो मेरी सरकार गिरेगी और न ही मैं अपना टेंपर लूज करूंगा।’ खट्टर को पिछले हफ्ते करनाल में एक किसान महापंचायत को संबोधित करना था, लेकिन चढ़ूनी के नेतृत्व में किसानों ने इसमें तोड़फोड़ कर दी थी और प्रोग्राम को कैंसिल करना पड़ा था।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल खट्टर सरकार को गिराने के लिए समर्थन करेगी, लेकिन चौटाला ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। सोमवार को दुष्यंत चौटाला ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि मौजूदा गतिरोध का हल ढूंढ़ लिया जाएगा और हरियाणा सरकार को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार निश्चित रूप से 5 साल पूरे करेगी।’

इस बीच सोमवार को किसानों ने सिंघू बॉर्डर के पास 26 जनवरी की अपनी ट्रैक्टर रैली का रिहर्सल किया, और कहा कि वे दिल्ली के आउटर रिंग रोड पर अपनी रैली निकालेंगे। ट्रैक्टर रैली का एक और रिहर्सल चंडीगढ़-पंजाब बॉर्डर पर किया गया। मध्य प्रदेश के रतलाम में 5 किमी लंबी रैली निकाली गई जिसमें 500 से भी ज्यादा ट्रैक्टरों ने हिस्सा लिया। भारत के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने सोमवार को कहा कि ट्रैक्टर रैली की इजाजत देने के बारे में फैसला दिल्ली पुलिस को करना है। दिल्ली पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने सोमवार को किसान नेताओं से मुलाकात की और उनकी योजनाओं पर चर्चा की।

बहुत से संगठन और देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन की आड़ में अपने मंसूबे पूरे करने की फिराक में हैं। वे किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश में हैं। विदेशों में बैठे खालिस्तानी तत्व, पाकिस्तान के इशारे पर साजिशें रच रहे हैं और राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड में खलल डालने वालों को इनाम देने का ऐलान कर रहे हैं।

मुझे पूरा भरोसा है कि हमारे किसान राष्ट्रवादी हैं। उनका तिरंगे में विश्वास है, वे देशभक्त हैं और वे कभी भी भारत विरोधी ताकतों से हाथ नहीं मिलाएंगे। मैं किसान नेताओं के बीच पैदा हुई दरार को लेकर ज्यादा चिंतित हूं। उनके बीच अब किसानों की बात कम हो रही है, और सियासत की बात ज्यादा हो रही है। अब इस बात की चर्चा ज्यादा होती है कि कौन कांग्रेसी है, कौन अकाली है, कौन कम्युनिस्ट है और कौन RSS में रहा है। कुछ खट्टर सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे हैं तो कुछ सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते रहते हैं।

जो भी नेता या ऐक्टिविस्ट्स मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहते हैं, वे सब इस आंदोलन का हिस्सा बन गए हैं। उनमें से कुछ सामने आ गए हैं तो कुछ पर्दे के पीछे से ही सक्रिय हैं। उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसान नेताओं की जिद सही है या नहीं। उनमें से कोई कहता है कि चूंकि धरने पर बैठे ज्यादातर किसान सिख हैं, इसलिए इनसे धार्मिक भावनाएं जुड़ गई हैं। कोई कहता है कि सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों में से कई को खालिस्तान समर्थक कहकर गलती कर दी। कुछ लोगों ने कहा कि आढ़तियों पर रेड करना और कई किसान नेताओं से NIA की पूछताछ ठीक नहीं है।

लेकिन कोई भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किसानों की शंकाओं को दूर करने की पूरी कोशिश की। बीजेपी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने किसान नेताओं पर खालिस्तान का समर्थक होने का आरोप नहीं लगाया। बल्कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो खुलकर कहा कि किसान नेताओं पर खालिस्तान से जुड़े होने का सवाल उठाना गलत है। पुलिस ने अपनी ओर से पूरा संयम बनाए रखा है। इसलिए इन सारे सवालों का कोई मतलब नहीं है। केंद्र सरकार अभी भी तीनों कृषि कानूनों में शामिल किसी भी प्रावधान में कोई भी संशोधन करने के लिए तैयार है और किसान नेताओं को यह प्रस्ताव मान लेना चाहिए।

इस पर मेरी सलाह है: किसानों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कानूनों में संशोधन किए जाएं, और तीनों कानूनों को एक निश्चित अवधि के लिए आजमाया जाए। यदि कानून किसानों के लिए फायदेमंद साबित नहीं होते हैं, तो किसान फिर से अपना आंदोलन शुरू कर सकते हैं। आज की तारीख में जरूरी ये है कि सियासी लोग अपने फायदे के लिए किसानों के दर्द का, उनकी तकलीफ का फायदा न उठाने पाएं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 18 जनवरी, 2021 का पूरा एपिसोड

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