पंजाब में किसानों का रेल रोको आंदोलन शनिवार को दिनभर जारी रहा। इस आंदोलन के चलते ट्रेन यातायात पर काफी असर पड़ा। अपनी मांगों को लेकर किसानों ने रेल रूट को जाम कर दिया है।
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के बैनर तले 3 साल बाद आज दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों किसान फिर जुटे हैं। किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, ''हर राज्यों में संयुक्त किसान मोर्चा बन चुका है। आंदोलन की तैयारी की घोषणा की जाती है।''
तीनों कानूनों के खिलाफ यूं तो आंदोलन की शुरुआत 2020 में हो गई थी। वर्ष 2021 से पहले ही किसान दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाल चुके थे। सरकार की ओर से भी बातचीत की पहल चल रही थी।
एसकेएम की तरफ से कहा गया कि अब 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की फिर मीटिंग होगी जिसमें इस बात की समीक्षा की जाएगी कि सरकार ने अपने वादे कहां तक पूरे किए।
किसानों के विरोध ने आलम जैसे कई युवाओं को भी आकर्षित किया जो बी. टेक के बाद एम. टेक कर चुके हैं।
चालीस किसान संघों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन निलंबित करने का बृहस्पतिवार को निर्णय लिया और घोषणा की कि किसान 11 दिसंबर से अपने घरों की ओर लौटने लगेंगे।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा, संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में सरकार के प्रस्ताव पर कई घंटों तक चर्चा हुई।
खुद राकेश टिकैत ने कबूल किया है कि चिट्ठी मिली है। राकेश टिकैत ने इंडिया टीवी से फोन पर बताया कि सरकार से चिट्टी आई है।
अलग-अलग किसान नेता अलग-अलग बात कर रहे हैं। राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक एमएसपी गारंटी कानून नहीं बन जाता है तब तक किसान धरना स्थल से नहीं हटेंगे।
केंद्र ने एमएसपी एवं अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए मंगलवार को एसकेएम से पांच नाम मांगे थे। हालांकि बाद में एसकेएम ने एक बयान में कहा था कि उसके नेताओं को केंद्र से इस मुद्दे पर फोन आये थे लेकिन कोई औपचारिक संदेश नहीं मिला है।
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक तय कार्यक्रम के मुताबिक 4 दिसंबर को होगी। आज केवल पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक होगी।
SKM ने एक बयान में कहा था कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना किसान आंदोलन की पहली बड़ी जीत है लेकिन अन्य अहम मांगें अब भी लंबित हैं।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बुधवार को कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसानों का आंदोलन अभी समाप्त नहीं होगा और आगे की रूपरेखा 27 नवंबर को तय की जाएगी।
राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है।
सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर किसानों का सम्मान रखा है और सरकार में कोई कानून पहली बार वापस लिया गया है, लेकिन इसके बावजूद किसानों का आंदोलन जारी रखना समझ से परे है।
ज्यादातर किसान नेता पंजाब, यूपी और उत्तराखंड में चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के चलते ये किसान नेता इन राज्यों के सियासी माहौल को गर्म कर रहे हैं।
उमा भारती ने कहा कि अगर तीन कृषि कानूनों की महत्ता प्रधानमंत्री मोदी किसानों को नहीं समझा पाए तो उसमें हम सब बीजेपी के कार्यकर्ताओं की कमी है। उन्होंने यह भी कहा कि आज तक किसी भी सरकारी प्रयास से भारत के किसान संतुष्ट नहीं हुए।
26 जनवरी के दिन किसान ट्रैक्टर रैली के नाम पर कई लोग ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में घुस गए थे और भारी तोड़फोड़ की थी, यहां तक की पंजाब से आए कई लोगों ने दिल्ली पुलिस के कर्मियों को पीटा था और कई जगहों पर हिंसा भी की थी। प्रदर्शन के नाम पर लाल किले का टिकट बुकिंग काउंटर पूरी तरह से तोड़ दिया गया था।
लोकतन्त्र में सरकारें पब्लिक का मूड देखकर फैसले लेती हैंऔर जनता के समर्थन से झुकती हैं। इस आंदोलन की सबसे बड़ी कमी ये है कि राकेश टिकैत और दूसरे किसान नेताओं के साथ देश के लोगों का समर्थन नहीं है।
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि जैसे ही दिल्ली पुलिस रास्तों पर रखे बैरिकेड हटा देगी तो वैसे ही किसान धान की फसल से भरे ट्रैक्टर लेकर संसद भवन पहुंचेंगे और वहीं जाकर अपना धान बेचेंगे। इंडिया टीवी से बात करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि दिल्ली की संसद अब किसानों की मंडी है और वे वहीं पर जाकर अपना धान बेचेंगे।
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