Tuesday, April 23, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: पुलिस में ट्रांसफर, पोस्टिंग के उद्योग बनने से उद्धव की छवि काफी खराब हुई है

देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस की इटेलिजेंस यूनिट की हेड रश्मि शुक्ला ने सबूतों के साथ इसकी रिपोर्ट 6 महीने पहले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को दी थी, लेकिन कोई ऐक्शन नहीं लिया गया।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 24, 2021 17:18 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सीएम उद्धव ठाकरे की सरकार पर एक सनसनीखेज आरोप लगाया है। फडणवीस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि राज्य की इंटेलिजेंस कमिश्नर ने फोन टैपिंग से मिले सबूतों के आधार पर फलते-फूलते 'ट्रांसफर पोस्टिंग' रैकेट के बारे एक विस्तृत रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी। इस रिपोर्ट को मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री के पास भेजा और बाद में इंटेलिजेंस कमिश्नर पर ही कार्रवाई हो गई।

फडणवीस ने बाद में एक सीलबंद लिफाफे में ‘ट्रांसफर पोस्टिंग रैकेट’ से जुड़े सबूत दिल्ली में केंद्रीय गृह सचिव को सौंप दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि बिचौलियों ने होटलों में सौदे तय किए और SHO से लेकर DIG तक पुलिस अधिकारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग की गई। उन्होंने कहा कि बिचौलिये IPS अफसरों को अच्छी पोस्टिंग देने के लिए 'कॉन्ट्रैक्ट' लेते थे।

देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस की इटेलिजेंस यूनिट की हेड रश्मि शुक्ला ने सबूतों के साथ इसकी रिपोर्ट 6 महीने पहले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को दी थी, लेकिन कोई ऐक्शन नहीं लिया गया। इसकी बजाय रश्मि शुक्ला पर ही कार्रवाई हुई, उनका प्रमोशन रोक दिया और उन्हें साइडलाइन कर दिया। फडणवीस ने कहा, ‘मेरे पास 6.3 जीबी डेटा है जिसमें फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा है। मुख्यमंत्री को पूरी ट्रांसक्रिप्ट्स भेजी गई थी, लेकिन उन्होंने इसपर तुरंत ऐक्शन लेने के बजाय इसे अपने गृह मंत्री के पास भेज दिया। ऐक्शन रश्मि शुक्ला के खिलाफ लिया गया। वह DGP की पोस्ट के लिए सबसे वरिष्ठ अधिकारी थीं, लेकिन उनका प्रमोशन रोक दिया गया। इसके बदले में उन्हें सिविल डिफेंस का डीजी बना दिया गया जिसका एक तरह से कोई अस्तित्व ही नहीं है।’

इसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने जो आरोप लगाए, वे और भी ज्यादा हैरान करने वाले थे। उन्होंने बताया कि रश्मि शुक्ला की रिपोर्ट में जिन पुलिस अफसरों के नाम मौजूद थे, उन सभी को उसी जगह पोस्टिंग मिली जहां वे चाहते थे। फडणवीस ने कहा, ‘चूंकि मामला काफी सेंसिटिव है, नीचे से लेकर ऊपर तक के अफसरों से जुड़ा है, इसलिए इस पूरे केस की CBI जांच होनी चाहिए।’

फडणवीस ने कहा कि तत्कालीन DGP ने इस मामले में CID जांच की सिफारिश की थी, लेकिन उनके सुझाव को खारिज कर दिया गया। उन्होंने पूछा, ‘सरकार किसे बचाने की कोशिश कर रही है?’

चूंकि यह मामला गृह मंत्री अनिल देशमुख से जुड़ा है इसलिए NCP के नेता इस मामले में उनका बचाव कर रहे हैं। मंगलवार को NCP के 2 मंत्री नवाब मलिक और जयंत पाटिल आगे आए और उन्होंने आरोप लगाया कि IPS अफसर रश्मि शुक्ला ‘बीजेपी एजेंट’ थीं। नवाब मलिक ने आरोप लगाया कि रश्मि शुक्ला ने ‘गैरकानूनी तरीके से नेताओं के फोन टैप किए थे और उनके पास कोई परमिशन नहीं थी। उनके (बीजेपी) के पास 6 घंटे या 6 हजार घंटे टेप है, तो वे इसे जांच के लिए राज्य की पुलिस को दे दें। केंद्रीय एजेंसियां राज्य सरकार को गिराने की कोशिश में लगी हुई हैं।’

कैबिनेट मंत्री जयंत पाटिल ने दावा किया कि रिपोर्ट में जिन अधिकारियों के नाम हैं, उनमें से किसी को भी वे पोस्ट नहीं मिली हैं जिनका जिक्र टेलिफोन इंटरसेप्ट्स में किया गया है। रश्मि शुक्ला 1988 बैच की IPS अफसर हैं। कांग्रेस-एनसीपी की सरकार के दौरान वह राज्य के खुफिया विभाग में कमिश्नर ऑफ  इंटेलिजेंस के रूप में तैनात थीं। इसके बाद बीजेपी के शासन के दौरान भी वह उसी पद पर बनी रहीं, और उद्धव ठाकरे की सरकार में इंटेलिजेंस चीफ भी रहीं। उन्हें 3 अलग-अलग सरकारों के साथ काम करने का अनुभव है। इसलिए ये कहना तो ठीक नहीं होगा कि रश्मि शुक्ला को बीजेपी ने इंटेलिजेंस का हेड बनाया था, या वह बीजेपी की एजेंट थीं। इस तरह की बातों से शंका और बढ़ती है।

असली सवाल यह नहीं है कि ‘ट्रांसफर पोस्टिंग रैकेट’ के सबूत किसने दिए या कैसे मिले। असली सवाल यह है कि सबूत सही हैं या नहीं? सवाल यह है कि क्या वाकई में महाराष्ट्र में पैसे देकर मनचाही पोस्टिंग ली जा रही है? सवाल यह है कि क्या वाकई में बड़े-बड़े पुलिस अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का फैसला दलाल करवा रहे हैं? क्या वाकई में 5-स्टार होटल्स में बैठकर डीलिंग हो रही है? जो सबूत सामने हैं उन्हें देखकर लगता है कि ये सब हो रहा है। शक इसलिए गहरा रहा है कि क्योंकि सवालों के जबाव देने के बजाए NCP और शिवसेना के नेता मामले में सियासी बयान देकर, बीजेपी पर इल्जाम लगाकर बचने की कोशिश कर रहे हैं।

यही वजह है कि मंगलवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि महाराष्ट्र में ‘वसूली’ की सरकार चल रही है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की चुप्पी की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार को कौन चला रहा है? क्या यह महाराष्ट्र के इतिहास की सबसे कन्फ्यूज सरकार है? नेता कुर्सी पर है मगर अथॉरिटी नहीं। शिवसेना के लोग कहते हैं एनसीपी से बात करो, एनसीपी से पूछो तो कहते हैं मुख्यमंत्री को फैसला करना है। कांग्रेस कहती है कि दोनों पार्टनर फैसला करेंगे। ये कौन-सी अघाड़ी है? इसका डायरेक्शन क्या है? कौन सा नाटक हो रहा है?’

रविशंकर प्रसाद बीजेपी के अनुभवी नेता हैं और बातें कहने का उनका अपना एक अंदाज है। लेकिन उनकी ये बात सही है कि पिछले चार दिनों में महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उससे शरद पवार की छवि को धक्का तो लगा है। राजनीति की बात हो या पब्लिक लाइफ की, शरद पवार देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं और सरकारें चलाने में उनका अनुभव बहुत है। इसलिए उन्हें पूरे मामले का इस तरह से बचाव करते हुए देखकर मुझे आश्चर्य हुआ।

शिवसेना और NCP ने इस पूरे मामले में अपने आपको जिस तरह से डिफेंड किया है, उसे देखकर भी मुझे बहुत हैरानी हुई।

पहले उद्धव ठाकरे ने एंटीलिया विस्फोटक केस और मनसुख मर्डर केस में संदिग्ध एपीआई सचिन वाजे को विधानसभा में डिफेंड किया। ठाकरे ने मीडिया के सामने कहा कि आप लोग उसे ओसामा बिन लादेन जैसा क्यों बनाते हैं, लेकिन आखिरकार वाजे ‘मुंबई पुलिस का ओसाबा बिन लादेन’ ही निकला।

वहीं, अनिल देशमुख को डिफेंड करते हुए शरद पवार ने कहा कि जिस दौरान उनपर पुलिस अफसरों को बार मालिकों से ‘वसूली’ के आदेश दिए जाने के आरोप लगाए जा रहे हैं उस समय तो वह कोरोना से संक्रमित होकर पहले हॉस्पिटल और फिर आइसोलेशन में थे इसके बाद अस्पताल के बाहर देशमुख की प्रेस कॉन्फ्रेस का वीडियो सामने आया, और फिर वह प्राइवेट प्लेन से 8 लोगों के साथ मुंबई आए। उस समय तो उन्हें क्वॉरन्टीन में होना चाहिए था।

देशमुख द्वारा किए गए ये दोनों काम कोरोना के नियमों के खिलाफ थे। महाराष्ट्र के गृह मंत्री देशमुख ने कभी ये नहीं कहा कि वह सचिन वाजे से मिले थे या नहीं मिले। पवार कोरोना का सहारा लेकर तारीखों को गलत बताने में लगे रहे। जब परमबीर सिंह ने आरोप लगाए तो कहा गया कि ये आरोप उन्होंने पहले क्यों नहीं लगा, जब वह पुलिस कमिश्नर थे तब क्यों नहीं लगाए। लेकिन पवार को यह मानना पड़ा कि परमबीर सिंह ने देशमुख द्वारा 100 करोड़ रुपये महीने वसूली की बात उन्हें और उद्धव को कमिश्नर रहते हुए कई महीने पहले बताई थी।

अगर एक मिनट को मान भी लें कि परमबीर ने पद से हटाए जाने के बाद शिकायत की थी, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब नहीं है: जब पवार और सीएम उद्धव ठाकरे इसके बारे में कई महीने पहले से जानते थे तो उन्होंने कोई ऐक्शन क्यों नहीं लिया? और रश्मि शुक्ला के बारे में क्या कहना है? रश्मि शुक्ला ने तो पिछले साल अगस्त में इंटेलिजेंस चीफ के पद पर रहते हुए प्रॉपर चैनल से अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग में लेन-देन के सबूत दिए थे तो उस पर ऐक्शन क्यों नहीं हुआ?

सारी बातों को देखकर इंप्रेशन तो यही मिलता है कि उद्धव ठाकरे की सरकार ने अपराधियों को डिफेंड किया और ईमानदार पुलिस अफसरों को किनारे लगा दिया। जिसने भी करप्शन पर सवाल उठाए उसे ‘बीजेपी का एजेंट’ बता दिया। इसीलिए शिवसेना और एनसीपी आज शक के घेरे में हैं। इससे उद्धव ठाकरे की सरकार की छवि खराब हुई है और महाराष्ट्र की जनता गुस्से में है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 23 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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