Thursday, October 10, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. 13 लाख भूमिहीनों में बांटी थी 44 लाख एकड़ जमीन, जानें कौन थे विनोबा भावे, क्या था भूदान यज्ञ?

13 लाख भूमिहीनों में बांटी थी 44 लाख एकड़ जमीन, जानें कौन थे विनोबा भावे, क्या था भूदान यज्ञ?

विनोबा भावे द्वारा चलाए गए भूदान आंदोलन के तहत कुल 44 लाख एकड़ जमीन इकट्ठा हुई थी जिसे करीब 13 लाख भूमिहीन एवं गरीब किसानों में बांटा गया था।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: September 11, 2024 9:34 IST
Vinoba Bhave, Vinoba Bhave Bhoodan, Bhoodan Movement- India TV Hindi
Image Source : IANS विनोबा भावे।

नई दिल्ली: 1951 का साल था। तेलंगाना कम्युनिस्टों और जमींदारों के संघर्ष का अखाड़ा बना हुआ था। कोई सुनने को राजी नहीं था। मार काट मची थी। भू स्वामियों और भूमिहीनों के बीच ठनी थी, ऐसे में ही गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी ने शांति दूत बनने का प्रण लिया और बढ़ चला उस काम को करने जो भूदान यज्ञ कहलाया। आखिर भूदान की जरूरत क्यों पड़ी, क्या था ये? आज हम आपको भूदान आंदोलन और इसको अमली जामा पहनाने वाले विनोबा भावे के बारे में विस्तार से बताएंगे।

धार्मिक परिवेश में हुआ था विनोबा का जन्म

ब्राह्मण कुल में जन्मे विनोबा का परिवेश धार्मिक था। संस्कार मां और पिता से मिले तो बापू के विचारों ने दिशा तय करने में मदद की। 11 सितंबर 1895 में महाराष्ट्र के ब्राह्मण कुल में एक बच्चे का जन्म हुआ। कोलाबा के गागोदा गांव में जन्मे इस बालक को नाम दिया गया विनायक नरहरी भावे। परिजन 'विन्या' बुलाते थे लेकिन बाद में बापू ने नाम दिया विनोबा। महात्मा को पहली बार काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में सुना था। 1916 के उस ऐतिहासिक भाषण को सुन कर देश का अभिजात तबका ठिठक गया था और हजारों भारतीयों की तरह विनोबा भी गांधी के प्रशंसक और अनुयायी बन गए। उनके दिखाए मार्ग पर चलना, सीख को जीवन में अपनाना मिशन बना लिया।

1951 में मिला था भूमि का पहला दान

भूदान आंदोलन भी बापू के सर्वोदय संकल्प का एक दूसरा रूप था। श्रीचारुचंद्र भंडारी की बांग्ला कृति 'भूदान यज्ञ: के ओ केन' में संकल्प को समझाया गया है। भंडारी विनोबा के करीबी लोगों में से एक थे। उन्होंने ही लिखा है कि 18 अप्रैल 1951 का ही वो दिन था जब भूमि का पहला दान मिला। तेलंगाना के शिवरामपल्ली से भूदान यज्ञ की गंगोत्री फूटी थी। गांधी के इस परम शिष्य का मानना था कि भगवान के दिए हुए हवा, पानी और प्रकाश पर जैसे सबका अधिकार है, उसी तरह भगवान की दी हुई जमीन पर भी सबका एक-सा अधिकार है । बस इसी सिद्धांत के आधार पर भू मालिकों से भूमि लेकर भूमिहीनों को देना चाहा।

कम्युनिस्टों और जमींदारों के बीच ठन गई थी

मकसद एक ही था भूमिहीनों को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करना, उन्हें अपने पांवों पर खड़ा करना। सवाल उठता है कि आखिर तेलंगाना ने भूदान की पटकथा कैसे लिखी, विनोबा के विचारों को मूर्त रूप देने वाले उस पहले भू स्वामी का नाम क्या था? भूदान यज्ञ में भंडारी लिखते हैं, तेलंगाना में अप्रैल 1951 में सर्वोदय सम्मेलन के लिए पहुंचना था। तेलंगाना नामक स्थान में भूमि समस्या को लेकर हिंसक आंदोलन चल रहा था। कम्युनिस्ट और जमींदारों के बीच ठन गई थी। कई भू स्वामियों से जमीन छीनकर कृषकों के बीच जमीन बांट दी गई थी। दूसरी ओर उन लोगों पर ज्यादती करके जमीन छीनी भी जा रही थी। दोनों ही पक्ष मार काट पर उतारू थे।

2 साल में हो गई थी 20 लोगों की हत्या

दिन में पुलिस कम्युनिस्टों को पकड़ती तो रात मे जमींदार माल गुजारों पर अत्याचार करते। विनोबा भावे बीमार थे, वो सम्मेलन में आना नही चाहते थे। फिर ओडिशा के एक स्थान पर सम्मेलन होना तय हुआ। वहां जाने में असमर्थता जताई। तब इनके साथी और स्वंतत्रता सेनानी शंकर देव राव की मनुहार पर 8 मार्च को चल दिए। 300 मील दूर शिवरामपल्ली पैदल पहुंचे। कार्यकर्ताओं के लिए तेलंगाना की घटना चुनौती बन गई थी। दो साल में 20 लोगों की हत्या हो गई थी। ऐसे माहौल में विनोबा ने कहा कि मेरे लिए सर्वोदय शब्द भगवान के समान है और सर्वोदय का अर्थ सब लोग समझते हैं, अतएव कम्युनिस्ट भी इसका अपवाद नहीं हैं।

रामचंद्र रेड्डी ने किया था पहला भू दान

18 अप्रैल को पोचमपल्ली गए वहीं से हरिजनों की बस्ती। जहां लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था। मजदूरी करते थे और मालिक पैदा हुई फसल का 20वां भाग, कंबल और एक जोड़ी जूता देते थे। दयनीय स्थिति देख उन लोगों की इच्छा जाननी चाही। पूछा कितनी भूमि चाहिए? भूमिहीन बोले 40 एकड़ ऊंची और 40 एकड़ नीची कुल मिलाकर कुल 80 एकड़ जमीन। विनोबा ने बोला आवेदन पत्र लिखो। फिर गांव के ही सज्जनों से पूछा क्या कोई अपनी जमीन दे सकता है? रामचंद्र रेड्डी नाम के शख्स ने आगे आकर अपनी और भाइयों की मिलाकर कुल 100 एकड़ का दान किया। उस दिन भावे ने प्रार्थना सभा में दान की घोषणा की और भूमिहीनों को जमीन मिली।

भूमिहीनों में बांटी 13 लाख एकड़ जमीन

तेलंगाना से होता हुआ ये भूदान बिहार, बंगाल होते हुए देश के विभिन्न राज्यों तक पहुंचा। 13 साल में इसने बड़ा रंग दिखाया। आर्थिक आजादी के इस प्रयोग में विनोबा भावे ने देश की करीब 58,741 किलोमीटर की दूरी को पैदल नापा। इस दौरान भूदान यज्ञ के तहत मिली 44 लाख एकड़ जमीन करीब 13 लाख भूमिहीन किसानों में बांटी गई। 'भूदान यज्ञ: के ओ केन’ में ही लिखते हैं कि विनोबा भावे आजीवन सेवाव्रती संन्यासी, महात्मा गांधी के बड़े अनुयायी रहे। महात्मा गांधी के ऐसे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे जिसने अपने पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति में वृद्धि की। कहा भी जाता है कि शिष्य वही योग्य होता है जो गुरु को छोड़कर भी चल सकता है। विनोबा भावे ने वही किया। (IANS)

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement