Thursday, April 25, 2024
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बिहार: एक 'झूठ' ने पीके को दिखा दिया बाहर का रास्ता

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अच्छी मित्रता के कारण चुनावी रणनीतिकार के रूप में चर्चित प्रशांत किशोर राजनीति में तो जरूर आ गए परंतु इन दोनों के रिश्ते में आए एक 'झूठ' शब्द ने पूरे रिश्ते को तोड़कर रख दिया।

IANS Reported by: IANS
Published on: January 29, 2020 23:11 IST
Prashant Kishor- India TV Hindi
Prashant Kishor

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अच्छी मित्रता के कारण चुनावी रणनीतिकार के रूप में चर्चित प्रशांत किशोर राजनीति में तो जरूर आ गए परंतु इन दोनों के रिश्ते में आए एक 'झूठ' शब्द ने पूरे रिश्ते को तोड़कर रख दिया। वैसे, प्रशांत और नीतीश की दोस्ती में बराबर धूप-छांव देखने को मिला है। इस क्रम में सार्वजनिक रूप से नाराजगी भले ही देखने को नहीं मिली हो परंतु अंदरखाने से नाराजगी की आवाज जरूर उठती रही है।

बिहार की राजनीति में माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले नीतीश कुमार ने जब प्रशांत किशोर से दोस्ती की थी तब उन्हें न केवल बिहार का भविष्य बताया था बल्कि जद (यू) के उपाध्यक्ष के ओहदे से उन्हें नवाजा था।

प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में चर्चित हो गए थे जब उन्हें देश में 'मोदी लहर' के लिए श्रेय दिया जाने लगा। इसके बाद यह कयास लगने लगा था कि प्रशांत भाजपा के साथ ही बंध कर रह जाएंगे, परंतु इसी बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह से उनके रिश्ते बिगड़ने की खबरें आने लगी। उस समय भाजपा से अलग हुए जद (यू) के नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर से दोस्ती गांठने में तनिक भी देरी नहीं की और उन्हें 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जद(यू), राजद, कांग्रेस गठबंधन के रणनीतिकार के रूप में बिहार ले आए।

किशोर ने भी 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है' नारे के जरिए प्रचार अभियान की शुरुआत की और चुनाव में भाजपा को जहां हार का सामना करना पड़ा वहीं नीतीश कुमार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद नीतीश ने भी बिहार के मुख्यमंत्री के सलाहकार और बिहार विकास मिशन के शासी निकाय का सदस्य बनाते हुए प्रशांत को कैबिनेट मंत्री तक का दर्जा दे दिया। इसके बाद भले ही प्रशांत किशोर बिहार में नजर नहीं आए और उनकी कंपनी अन्य राजनीतिक दलों का भी काम करती रही परंतु नीतीश परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रशांत का समर्थन करते रहे।

इस बीच, नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बन जाने के बाद 2018 में प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर जद (यू) में शामिल हो गए और उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष का पद भी दे दिया गया। इसके बाद संगठन में भी प्रशांत का ओहदा बढ़ने लगा, परंतु पार्टी के अन्य नेताओं को यह रास नहीं आया। वर्ष 2019 में प्रशांत किशोर द्वारा दिए गए एक बयान ने नीतीश और उनके बीच लकीर खींच दी। प्रशांत किशोर ने तब कहा था कि राजद से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था न कि भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी।

समय के साथ-साथ यह लकीर भी गहरी होती चली गई। हालांकि, इसके बाद नीतीश ने कहा कि उनकी कंपनी है, जो कई अन्य दलों के लिए भी काम करती है। इसके बाद दोनों के संबंध जरूर पुराने जैसे हुए परंतु दोनों के मन में उस बयान की टीस कभी कभार उठती भी रही।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जद (यू) भाजपा के साथ चुनाव मैदान में उतरी और प्रशांत कुमार को तरजीह नहीं मिली। इसके बाद प्रशांत किशोर ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचार की कमान संभाली और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके साथ ही अपनी ही पार्टी के खिलाफ नागरिकता संशोधन विधेयक को समर्थन देने पर सवाल उठाए। इस दौरान उन्होंने नीतीश कुमार पर भी सवाल खड़ा किए।

इस बीच मंगलवार को नीतीश कुमार ने अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में लाने की बात कह दी, जिस पर किशोर ने भी पलटवार करते हुए नीतीश कुमार को 'झूठा' तक कह दिया। इसके बाद 'झूठ' कहे जाने से तिलमिलाए नीतीश ने बुधवार को आखिरकार प्रशांत किशोर से किनारा करना ही बेहतर समझा और पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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