Friday, April 26, 2024
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..तो हाथी या साइकिल होता कांग्रेस का चुनाव चिह्न, जानिए कैसे मिला 'हाथ' का सिंबल

चुनाव आयोग ने कांग्रेस को हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा में से एक विकल्प चुनने का ऑफर दिया था। लेकिन कांग्रेस ने हाथ का पंजा ही सिंबल चुना। इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है।

Mangal Yadav Written By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Updated on: March 28, 2024 19:45 IST
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे, सोनिया और राहुल गांधी- India TV Hindi
Image Source : FILE-PTI कांग्रेस अध्यक्ष खरगे, सोनिया और राहुल गांधी

नई दिल्लीः देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली कांग्रेस दो बार अपना चुनाव चिह्न बदल चुकी है। कभी कांग्रेस का सिंबल दो बैलों की जोड़ी और गाय और बछड़ा हुआ करता था। आइए जानते हैं कांग्रेस के सिंबल से जुड़े इतिहास के बारे में।

'दो बैलों की जोड़ी' था कांग्रेस का चुनाव चिह्न

कांग्रेस का पूरा नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) है। इसकी स्थापना देश की आजादी से पहले साल 1885 में हुई थी। देश स्वतंत्र होने के बाद जब देश में 1951-52 में पहला आम चुनाव हुआ तो कांग्रेस का चुनाव चिह्न 'दो बैलों की जोड़ी' हुआ करता था। कांग्रेस इसी सिंबल पर जनता से वोट मांगा करती थी। यह चुनाव चिह्न किसानों और आम लोगों के बीच तालमेल बनाने में सफल रहा और कांग्रेस करीब 20 साल तक दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न पर ही इलेक्शन लड़ती रही। जब 1970 में कांग्रेस का विभाजन हो गया तो पार्टी दो धड़ों में बंट गई। इसकी वजह से चुनाव आयोग दो बैलों की जोड़ी वाला सिंबल जब्त कर लिया। 

'गाय और बछड़े' का चुनाव चिह्न भी लड़ चुकी है कांग्रेस

कामराज के नेतृत्व वाले पुरानी कांग्रेस को 'तिरंगे में चरखा' सिंबल दिया गया तो इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले नई कांग्रेस को 'गाय और बछड़े' का चुनाव चिह्न आवंटित किया गया। बाद में इस सिंबल पर विवाद पैदा हो गया। साल 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता गिरने लगी और कांग्रेस का बुरा समय शुरू हो गया। इस बीच चुनाव आयोग ने एक बार फिर से गाय और बछड़े का चुनाव चिह्न जब्त कर लिया। 

कांग्रेस को हाथ का पंजा सिंबल कैसे मिला

जब कांग्रेस मुश्किल दौर से गुजर रही थी तो इंदिरा गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती जी का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंची। ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की बातें सुनने के बाद स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती जी मौन हो गए और कुछ समय के बाद दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। 1977 में कांग्रेस का एक और विघटन हुआ और इंदिरा ने कांग्रेस (आई) की स्थापना की।

हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा सिंबल का विकल्प मिला था

बूटा सिंह को चुनाव आयोग सिंबल के लिए भेजा तो वहां पर कांग्रेस को हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा सिंबल में से एक चुनने का विकल्प दिया गया। शंकराचार्य के आशीर्वाद वाली बात सोचकर इंदिरा गांधी ने हाथ का पंजा सिंबल फाइनल कर दिया। इंदिरा गांधी को इस सिंबल पर बड़ी जीत हासिल हुई। तब से आज तक कांग्रेस इसी चुनाव चिह्न पर इलेक्शन लड़ रही है।

हाथी-साइकिल सिंबल भी जनता ने पसंद किया

 कांग्रेस ने जिस हाथी और साइकिल सिंबल को लेने से मना किया था वही सिंबल बसपा और सपा को मिले। दोनों ही दल यूपी में कई बार सरकार बनाए। आज भी समाजवादी पार्टी का सिंबल साइकिल और बसपा का हाथी चुनाव चिह्न है।

 

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