Saturday, December 14, 2024
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बिना किसी आतंकी खौफ के मनाया गया मां भवानी का जन्मदिन, देश के कोने-कोने से आए कश्मीरी पंडित

माता भवानी के जन्मदिन की पूजा में हिस्सा लेने के लिए देश के कोने-कोने से कश्मीरी पंडित इकट्ठा हुए। नाच-गाने के साथ मंदिर में पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों का दिल खोलकर स्वागत किया।

Reported By : Manzoor Mir Edited By : Dhyanendra Chauhan Published : Jun 14, 2024 13:30 IST, Updated : Jun 14, 2024 13:37 IST
मां भवानी के मेले में कश्मीरी पंडित- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV मां भवानी के मेले में कश्मीरी पंडित

कश्मीर में बड़े उत्साह के साथ मां भवानी का जन्म दिन मनाया गया। पिछले दिनों हुए आतंकी हमलों के बवाजूद बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित बिना किसी डर और खौफ के माता के जन्मदिन में शामिल हुए। कश्मीरी मुसलमानों ने कहा कि कश्मीरी पंडितों का इतनी संख्या में माता भवानी के मेले में आना खुशी की बात है। कश्मीरी पंडित अपने घरों को वापस लौटे हैं। इनका दिल खोल कर स्वागत करेंगे।

आतंकी हमले के डर पर भारी पड़ी आस्था

कश्मीर के रियासी जिले में टेररिस्ट अटैक के बावजूद इस बार भी आस्था आतंकी हमले के डर पर भारी पड़ी है। 1990 में कश्मीर में बिगड़े हालात के दौर में भी मेले को कभी भी रोका नहीं गया। कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर से उनके जुड़े होने का सबसे बड़ा कारण भी ये मेला रहा है।

कश्मीरी पंडितों की मां भवानी हैं कुल देवी

श्रीनगर से 28 किलोमीटर दूर गांदेरबल जिले के ठुलमुल इलाके में हर साल की तरह आज भी माता भवानी के जन्म दिन पर एक बहुत बड़ा मेला लगता है। कश्मीरी पंडितों में मां भवानी को कुल देवी माना जाता है। आज के दिन देश के कोने-कोने से कश्मीरी पंडित यहां आ कर माता के जल स्वरुप की पूजा करते हैं।

मंदिर में चढ़ाई जाती हैं ये खास चीजें

ऐसी मान्यता है की यहां पर हनुमान जी माता को जल स्वरूप में अपने कमंडल में लाए थे। कहते हैं जिस दिन इस जल कुंड का पता चला वह जेष्ट अष्टमी का दिन था। इसी लिए हर साल इस दिन एक मेला लगता हैं। माता को प्रसन्न करने के लिए दूध और शक्कर में पकाय चावलों का भोग चढ़ाने के साथ-साथ पूजा अर्चना और हवन भी किया जाता है।

जल कुंड में वास करती हैं माता

यहां के भक्तों का मानना है की माता आज भी इस जल कुंड में वास करती हैं। कहा जाता है की यह जल कुंड वक्त और हालात के साथ-साथ रंग बदलता रहता है। इससे भक्तों को अच्छे और बुरे समय का ध्यान हो जाता है। इसके कारण यह कुंड लाखों लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। 

मुसलमानों के हाथों से छुआ दूध है जरूरी

आज के दिन कश्मीरी पंडित देश के विभिन राज्यों से यहां पहुंचते हैं। माता का आशर्वाद हासिल करते हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है की यहां पूजा में इस्तेमाल होना वाली साड़ी सामग्री मुस्लिम समुदाय के लोग ही बेचते हैं। यहां तक की चढ़ावे में चढ़ने वाला दूध भी मुसलमानों के हाथों से छुआ होना जरूरी है। इसलिए कश्मीरी मुसलमान भी उतनी ही आस्था के साथ इस मंदिर में आते हैं, जितने आस्था के साथ कश्मीरी पंडित आते हैं।

1912 में हुआ मंदिर का निर्माण

बता दें कि इस मंदिर का निर्माण 1912 में राजा हरी सिंह ने करवाया था। इस मंदिर के जल कुंड के बारे में कहा जाता है कि पानी का रंग, लाल, पीला या काला होने का मतलब किसी बड़ी समस्या की निशानी होती है। हल्के रंग के पानी होने का मतलब अच्छा माना जाता है। भक्तों का दावा है कि उन्होंने 1990 में जब कश्मीर में आतंक का दौर शुरू हुआ, फिर कारगिल युद्ध, 2005 में भूकंप, 2016 में कश्मीर में हिंसा के दौरान इस जल कुंड के पानी का रंग बदलते देखा है। आज इस जल कुंड के पानी का रंग देख कर कश्मीर में अमन और शांति की निशानी समझ में आती है।

हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा उदाहरण

यह त्योहार हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा उदाहरण है। मुसलमान सभी तैयारियों और यहां तक कि बेचने वाली दुकानों का पूरा ध्यान रखते हैं। मंदिर के आसपास फूल और अन्य पूजा सामग्री की दुकान मुसलमानों की हैं। यहां आकर मेले में ऐसा लगता है कि कश्मीर में 1990 से पहले का दशक वापस लौट आया है।

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