Friday, April 26, 2024
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दुनिया के किसी भी डॉक्टर के पास नहीं है मनुष्य के इस मर्ज की दवा, दूर करने में लग जाएंगे कई जन्म

खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: September 08, 2020 6:05 IST
Chanakya Niti-चाणक्य नीति- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Chanakya Niti-चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार नजर और नजरिए पर आधारित है।

'सोच अच्छी होनी चाहिए...क्योंकि नजर का इलाज तो संभव है लेकिन नजरिए का नहीं।' आचार्य चाणक्य 

आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि किसी भी मनुष्य की हमेशा सोच अच्छी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि नजर का तो इलाज संभव है लेकिन नजरिए का नहीं। आचार्य चाणक्य इस लाइन में कहना चाहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति की नजर कमजोर हो गई है तो उसका इलाज संभव है। वो इसके लिए किसी भी डॉक्टर से परामर्श या फिर चेकअप करा सकता है। इसका इलाज दुनिया के किसी भी डॉक्टर के पास मौजूद है। 

नजर कमजोर होने पर आसपास या फिर दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं। ऐसे में आईड्रॉप डालकर या फिर चश्मे का इस्तेमाल करके आप अपनी नजर को बढ़ा सकते हैं। ऐसा करने पर आपको जो चीजें धुंधली दिख रही हैं वो साफ-साफ दिखाई देने लगेंगी। लेकिन अगर किसी के नजरिए पर धूल जम गई तो उसे साफ करना किसी भी डॉक्टर के बस के बाहर है। ऐसा इसलिए क्योंकि सोच इंसान के दिमाग की उपज होती है। दिमाग से निकलने वाली ये सोच इंसान खुद बनाता है। इस कारण वो अपने नजरिए पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है। 

अगर कोई व्यक्ति उसके नजरिए को बदलने या फिर उस पर सवाल उठाता है तो उसकी सामने वाले से बहस होना तय है। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति को लगता है जो नजरिया उसने बनाया है वो अपने आसपास की चीजों को देखकर बनाया है। जिसके बाद उसने अपनी ये राय बनाई। भले ही वो नजरिया ठीक ना भी हो तो भी वो उसे उस पर अटूट विश्वास होता है। ऐसे में इस इंसान को समझाने या फिर बदलने की कोशिश करने का मतलब है कि पत्थर से सिर फोड़ना। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि नजरिए या इलाज नहीं किया जा सकता। 

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