Friday, March 29, 2024
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मकर संक्रांति 2020: 15 जनवरी को मनाया जाएगा ये पर्व, जानें शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

माघ कृष्ण पक्ष की उदया चतुर्थी तिथि के सूर्य की मकर संक्रांति है, यानी सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। जानें मकर संक्रांति की तिथि और महत्व।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: January 14, 2020 16:05 IST
Makar Sankranti  2020- India TV Hindi
Makar Sankranti  2020

हिंदू धर्म में प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति का त्योहार माना जाता है। ये त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। लेकिन पिछले 3-4 सालों की बात करें तो यह पर्व 15 जनवरी को पड़ रहा है। जिसके कारण लोगों को बीच इसकी डेट को लेकर काफी कंफ्यूजन है कि आखिर मकर संक्रांति किस दिन मनाया जाएगा। माघ कृष्ण पक्ष की उदया चतुर्थी तिथि के सूर्य की मकर संक्रांति है, यानी सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास या धनुर्मास भी समाप्त हो जायेगा। अब तक जो शादी- ब्याह आदि शुभ कार्यों पर रोक लगी थी, वो हट जायेगी और फिर से शादियों का सीज़न शुरू हो जायेगा। .मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को है।

कब है मकर संक्रांति?

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार सूर्य की मकर संक्रांति 14 फरवरी को देर रात 2 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगा और अगले 30 दिन यानि 15 फरवरी दोपहर 2 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। जिसके कारण मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को है।

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मकर संक्रांति होने का कारण

वर्ष में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं, जिनमें से सूर्य की मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति बेहद खास हैं | इन दोनों ही संक्रांति पर सूर्य की गति में बदलाव होता है। जब सूर्य की कर्क संक्रांति होती है, तो सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन और जब सूर्य की मकर संक्रांति होती है, तो सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सीधे शब्दों में कहें तो सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही मकर संक्रांति कहलाता है। इसलिए कहीं- कहीं पर मकर संक्रान्ति को उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं, वहीं दक्षिणायन काल में ठीक इसके विपरीत- रातें बड़ी और दिन छोटा होने लगता है।

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति की तो कहा जाता है की मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है । इसलिये इस दिन दान जप तप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है । इस दिन व्यक्ति को किसी गृहस्थ ब्राह्मण को भोजन या भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र देने चाहिए। इसके साथ ही संभव हो तो यम, रुद्र और धर्म के नाम पर गाय का दान करना चाहिए। यदि किसी के बस में ये सब दान करना नहीं है, तो वह केवल फल का दान करें, लेकिन कुछ न कुछ दान जरूर करें। साथ ही मत्स्य पुराण के 98वें अध्याय के 17 वें भाग से लिया गया यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
‘यथा भेदं न पश्यामि शिवविष्णवर्कपद्मजान्।
तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकरः शंकरः सदा।।‘

इसका अर्थ है- मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता। वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला हो।

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