Thursday, May 16, 2024
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Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि पर इस साल बनने जा रहा है शुभ संयोग, जानें मुहूर्त और पूजा विधि

महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 01, 2022 10:29 IST
Mahashivratri - India TV Hindi
Image Source : FREEPIK Mahashivratri 

Highlights

  • महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-आराधना की जाती है
  • भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा उपासना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं
  • हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर श्री महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा उपासना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर श्री महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।

देवाधिदेव महादेव के पूजन का सबसे महत्वपूर्ण पर्व महाशिवरात्रि उनके दिव्य अवतरण का मंगल सूचक है। ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद बताते हैं कि महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। सुखद संयोग है कि वस्तुतः इस वर्ष अर्धरात्रिव्यापिनी ग्राह्य होने से एक मार्च, मंगलवार को ही महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा।

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप रहते हैं। इसी समय चन्द्रमा का सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है। अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। यह कहना गलत नहीं होगा कि शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मजबूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।

 
चारों पहर की पूजा का मुहूर्त-

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की चार पहर की पूजा का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन शिवजी को चारों पहर पूजने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। महाशिवरात्रि पर पहले पहर की पूजा मंगलवार को शाम 6.21 से 9.27 बजे तक होगी। फिर रात को 9.27 से 12.33 बजे तक दूसरे पहर की पूजा होगी। इसके बाद बुधवार को रात 12.33 से 3.39 बजे तक तीसरे पहर की पूजा होगा। अंत में रात 3.39 से सुबह 6.45 तक चौथे पहर का पूजन होगा।

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महाशिवरात्रि पर शुभ संयोग  -

ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने बताया कि इस दिन एक खास संयोग भी बन रहा है। धनिष्ठा नक्षत्र में परिघ योग रहेगा। धनिष्ठा के बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा। परिघ के बाद शिव योग रहेगा। सूर्य और चंद्र कुंभ राशि में रहेंगे। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से भक्तों को अभीष्टतम फल की प्राप्ति होती है. यह महाशिवरात्रि का व्रत ‘ व्रतराज’ के नाम से विख्यात है। शास्त्रोक्त विधि से जो इस दिन उपवास एवं महारुद्राभिषेक करेगा, उन्हें शिव सायुज्य की प्राप्ति होगी।
 
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त-
महाशिवरात्रि मंगलवार, मार्च 1, 2022 को
निशिता काल पूजा समय - 12:08 से 12:58 (सुबह) , 02 मार्च
शिवरात्रि पारण समय - 06:45 (सुबह) , मार्च 02
 
महाशिवरात्रि पूजा विधि-
महाशिवरात्रि की विधि-विधान से विशेष पूजा रात्रि काल में होती है। हालांकि भक्त चारों प्रहर में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। इस दिन मिट्टी के पात्र या तांबे के लोटे में जल, मिश्री, कच्चा दूध डालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, आंकड़े के फूल, चावल आदि अर्पित करना चाहिए। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए।
 
महाशिवरात्रि 2022 मंत्र-

- शिव गायत्री मंत्र
ओम तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।
इसका जाप सुख, समृद्धि आदि की प्राप्ति के लिए करते हैं.
 
- महामृत्युंजय मंत्
ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
 
- शिव आरोग्य मंत्
माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा।
आरोग्य देही में देव देव, देव नमोस्तुते।।
ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
 
उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस मंत्र का भी जाप करते हैं-
- धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए शिव मंत्र
ओम हृौं शिवाय शिवपराय फट्।।
 
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा-
महाशिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएं लोकप्रिय हैं। विवरण मिलता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
 
वहीं गरुड़ पुराण में वर्णन है कि इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थक हारकर भूख-प्यास से परेशान एक तालाब के किनारे जाकर बैठ गया। वहीं तालाब के किनारे एक बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए।अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसका कुछ अंश शिवलिंग पर भी जा गिरा। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन उसने अनजाने में ही शिवपूजन कर भगवान को प्रसन्न कर लिया। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। इस तरह महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का अद्भुत फल मिलता है। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

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