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NCLAT ने टाटा संस को पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनने से रोका, जानिए कंपनी को क्‍या होगा नुकसान

प्राइवेट कंपनी बनने के बाद कंपनी को महत्वपूर्ण फैसलों के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं रह गई थी।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : December 19, 2019 11:50 IST
NCLAT sets aside conversion of Tata Sons from public company to private firm- India TV Paisa

NCLAT sets aside conversion of Tata Sons from public company to private firm

नई दिल्ली। राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने टाटा संस को पब्लिक से बदलकर प्राइवेट कंपनी बनाने की कार्रवाई को रद्द करते हुए इसे गैरकानूनी बताया है। टाटा संस, टाटा समूह की कंपनियों की होल्डिंग कंपनी है। एनसीएलएटी ने टाटा संस के निकाले गए चेयरमैन साइरस मिस्त्री की बहाली का भी आदेश दिया है।

आदेश में कहा गया है कि कंपनी पंजीयक द्वारा कंपनी को प्राइवेट कंपनी बनने की अनुमति देने का आदेश कंपनी कानून, 2013 के प्रावधानों के खिलाफ है। साथ ही यह कंपनी के अल्पांश सदस्यों और जमाकर्ताओं के लिए भेदभावपूर्ण और उत्पीड़न वाला है।

एनसीएलएटी ने कहा कि टाटा संस को पब्लिक कंपनी के रूप में उल्लिखित किया जाए। कंपनी पंजीयक (आरओसी) रिकॉर्ड में सुधार करेगा और कंपनी को पब्लिक कंपनी के रूप में दर्ज उल्लिखित करेगा। मिस्त्री की बर्खास्तगी के कुछ महीनों बाद टाटा संट को सितंबर, 2017 में खुद को पब्लिक लिमिटेड कंपनी से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदलने के लिए शेयरधारकों की मंजूरी मिली थी।

प्राइवेट कंपनी बनने के बाद कंपनी को महत्वपूर्ण फैसलों के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं रह गई थी। ऐसे फैसले सिर्फ निदेशक मंडल की मंजूरी से लिए जा सकते थे। आदेश के अनुसार टाटा संस लिमिटेड प्रारंभ में प्राइवेट कंपनी थी। लेकिन कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 43ए (1ए) जोड़े जाने के बाद अपने औसत वार्षिक कारोबार के कारण इसने 1 फरवरी 1975 से कंपनी ने मान्य सार्वजनिक कंपनी का स्वरूप धारण कर लिया।

कंपनी के वकील ने दलील दी थी कि टाटा संस सितंबर 2013 के केंद्र सरकार के परिपत्र के आधार पर प्राइवेट कंपनी हुई है। लेकिन न्याधिकरण ने कहा कि इस सर्कुलर के करण ही कंपनी कानून, 2013 की धारा 14 के ठोस प्रावधान निष्प्रभावी नहीं हो जाते। इस धारा के व्यापाक प्रावधानों का अनुपालन पब्लिक कंपनी को प्राइवेट कंपनी में बदलने के लिए जरूरी हैं। न्यायाधिकरण की राय में कंपनी ने 2013 में नए कंपनी काननू के लागू होने के तीन साल बाद तक धारा 14 के तहत कोई कदम नहीं उठाया था। नया कानून एक अप्रैल 2014 से लागू हुआ।

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