Thursday, April 25, 2024
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विदेशी कोचों की कमी पूरा कर सकते हैं पूर्व भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी - पी. वी. सिंधू

सिंधू ने वेबिनार के दौरान कहा, ‘‘अगर महामारी बनी रहती है तो विदेशों से कोच लाना मुश्किल हो सकता है।"

Bhasha Reported by: Bhasha
Updated on: May 05, 2020 20:33 IST
PV Sindhu- India TV Hindi
Image Source : GETTY IMAGES PV Sindhu

नई दिल्ली| विश्व बैडमिंटन चैंपियन पी वी सिंधू का मानना है कि कोविड-19 के बाद की परिस्थितियों में विदेशी कोचों की सेवाएं लेना मुश्किल होगा और ऐसे में पूर्व भारतीय खिलाड़ियों के पास इस शून्य को भरने का अच्छा मौका होगा। सिंधू ने सोमवार को वेबिनार के दौरान कहा, ‘‘अगर महामारी बनी रहती है तो विदेशों से कोच लाना मुश्किल हो सकता है। हमारे देश में बहुत से अच्छे खिलाड़ी हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं, हम उनका कोच के रूप में उपयोग कर सकते हैं। ’’

ओलंपिक रजत पदक विजेता सिंधू आनलाइन सत्र के दौरान भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के नव नियुक्त सहायक निदेशकों को संबोधित कर रही थी। सिंधू ने एक चैंपियन को तैयार करने में माता पिता, कोच और प्रशासकों के एक टीम के रूप में काम करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासकों को प्रत्येक खिलाड़ी के अब तक के खेल करियर का पता होना चाहिए। भारतीय खेलों का भविष्य आप जैसे युवा खेल प्रशासकों के हाथों में है। ’’

सिंधू ने कहा, ‘‘आपको साइ के क्षेत्रीय केंद्रों का हर हाल में दौरा करना चाहिए तथा खिलाड़ियों के प्रदर्शन से वाकिफ होना चाहिए। आपको उनके माता पिता के संपर्क में रहना चाहिए। माता पिता की भागीदारी अहम होती है और आपको उनसे ‘फीडबैक’ लेना चाहिए। इस फीडबैक को ध्यान में रखना होगा। ’’ इस 24 वर्षीय हैदराबादी खिलाड़ी ने कहा कि उम्र में धोखाधड़ी से बचने के लिये खिलाड़ियों पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘आपको पता होना चाहिए कि साइ की कोचिंग प्रणाली किस तरह से काम करती है और क्या खिलाड़ियों को प्रत्येक केंद्र पर सही भोजन और पोषक तत्व मिल रहे हैं।’’ सिंधू ने कहा कि एक खिलाड़ी की सफलता में माता पिता का योगदान भी महत्वपूर्ण होता है और उसे कम करके नहीं आंका जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘रियो ओलंपिक से पहले हम अकादमी में रहने के लिये चले गये थे। मेरी मां ने मेरे लिये अपनी नौकरी छोड़ दी थी। मेरे पिताजी ने दो साल का अवकाश ले लिया था।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिये चुनौती 2015 में लगी चोट से उबरना था। मैं अकादमी में ही रहकर खेलती थी। मुझे एक साल में 23 टूर्नामेंट खेलने थे और ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करना था। मेरे पिताजी के अवकाश पर रहने से मुझे बहुत मदद मिली। वह मुझे रेलवे ग्राउंड तक ले जाते थे। ’’ 

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