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किस हाल में हैं ISIS से जुड़ने के बाद वापस लौटीं महिलाएं? कैंपों में कैसे हैं हालात? जानें ताजा रिपोर्ट

इस्लामिक स्टेट अपने अच्छे दिनों में इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर काबिज था, लेकिन आज इसका प्रभाव क्षेत्र नहीं के बराबर रह गया है। उन दिनों इस्लामिक स्टेट से जुड़ने वाली महिलाओं की हालत भी आज काफी खराब है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Jul 02, 2024 14:17 IST, Updated : Jul 02, 2024 14:17 IST
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Image Source : AP FILE अल-होल कैंप में घूमती महिलाएं और बच्चे।

मेलबर्न: कुख्यात आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट या ISIS की सदस्य रहीं महिलाओं की घर वापसी की गुहार को सरकारें नजरअंदाज कर रही हैं। सरकारों के इस रवैये ने मानवाधिकार और अंंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने का काम किया है। इस्लामिक स्टेट आतंकवादी समूह की स्वघोषित ‘खिलाफत’ सीरियाई गृहयुद्ध और इराकी इस्लामी विद्रोह से उभरी थी। एक समय सीरिया एवं इराक में इसका दबदबा था और इससे तुर्किये की सीमा को भी खतरा था, लेकिन 5 साल के भीतर इन क्षेत्रों पर उसने अपना कब्जा गंवा दिया। सीरिया और इराक में ISIS की खिलाफत से 40,000 से ज्यादा विदेशी सदस्य जुड़े, जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत महिलाएं थीं।

अंधेरे में है ISIS से जुड़ने वाली महिलाओं का भविष्य

इस्लामिक स्टेट में महिलाओं का शामिल होना हैरान कर देने वाली घटना थी क्योंकि यह पहली बार था जब हजारों महिलाएं विदेश में किसी आतंकवादी गुट में शामिल हुईं। नारीवादी शोधकर्ता पिछले एक दशक से ISIS में महिलाओं की भागीदारी और अनुभवों की बारीकियों का विश्लेषण कर रहे हैं कि वे इस कुख्यात आतंकी संगठन में क्यों और कैसे शामिल हुईं। बता दें कि इस्लामिक स्टेट से जुड़ने वाली उन विदेशी महिलाओं (और बच्चों) पर बहुत कम ध्यान दिया गया है, जो अब भी सीरिया और इराक में हैं। उनकी वापसी और पुनर्वास आदि की जरूरत पर भी ध्यान नहीं दिया गया है। कैंपों में रह रहीं और वापस आ चुकीं, दोनों ही तरह की महिलाओं के भविष्य के बारे में कुछ निश्चित नहीं है।

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Image Source : AP FILE
कैंपों में रह रही महिलाओं और बच्चों की स्थिति दयनीय है।

कैंपों में बंदी बनाकर रखे गए हैं महिलाएं और बच्चे

सीरिया के उत्तर पूर्व में ‘उत्तर और पूर्वी सीरिया का स्वायत्त प्रशासन’ है, जहां अल-होल और अल-रोज कैंप हैं। वहां सीरियाई संघर्ष से विस्थापित हुए हजारों लोग रहते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं एवं बच्चे शामिल हैं। इनमें रूस, ब्रिटेन और चीन सहित 50 से अधिक देशों की ISIS से जुड़ी कई ऐसी महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, जिन्हें कैंप की बाकी आबादी से अलग एक कैंपस में बंदी बनाकर रखा गया है। शिविरों में स्थिति बहुत खराब है और उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार की तुलना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यातना से की गई है। कई रिपोर्ट और विवरण बताते हैं कि इस अनिश्चितकालीन कैद के घातक, दीर्घकालिक परिणाम हैं।

ISIS से जुड़ी महिलाओं के साथ यजीदी एक ही कैंप में

सीरिया के उत्तर पूर्व में स्थित इन कैंपों में न केवल ISIS से जुड़ी महिलाओं और बच्चों को हिरासत में रखा जाता है, बल्कि यजीदी समुदाय की महिलाओं समेत ISIS की पीड़िताओं को भी वहीं रखा जाता है। खास बात यह है कि इन शिविरों में रहने वाले अधिकतर लोग इराकी और सीरियाई परिवारों से संबंध रखते हैं। यह ‘उत्तर और पूर्वी सीरिया के स्वायत्त प्रशासन’ के दबाव को कम करने के लिए विदेशियों को वापस भेजने, उनके पुनर्वास आदि की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। कुछ सरकारों ने हालांकि अपने नागरिकों को वापस लाने के अपने प्रयासों को बढ़ा दिया है, लेकिन विशेष रूप से महिलाओं के पुनर्वास कार्यक्रमों पर बहुत कम शोध किया गया है।

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Image Source : AP FILE
अल-होल कैंप में लोगों की हालत कैदियों जैसी है।

ISIS से वापस लौटी महिलाओं के साथ होता है भेदभाव

मैंने इस्लामिक स्टेट से जुड़ी विदेशी महिलाओं के पुनर्वास और पुनः एकीकरण के क्षेत्र में 12 देशों में शोध किया है और वापस लौटी महिलाओं एवं उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों, नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं का इंटरव्यू लिया है। निष्कर्ष बताते हैं कि वापस लौटने वाले इन लोगों के लिए पुनर्वास और पुनः एकीकरण कार्यक्रम मुख्य रूप से केवल पुरुषों पर ही केंद्रित हैं तथा इनमें महिलाओं के अनुभवों और आवश्यकताओं की उपेक्षा की गई है। शोध से पता चला है कि वापस लौटने वाली महिलाओं के पुनर्वास और पुनः एकीकरण की प्रक्रिया अक्सर लिंग, नस्ल और धार्मिक मान्यताओं से प्रभावित होती हैं।

गैर-मुस्लिम देशों में जनता की सोच पूर्वाग्रह से भरी

शोध में भाग लेने वालों ने बताया कि वापस लौटने वाली महिलाओं को ‘दोहरा कलंक’ झेलना पड़ता है। उनके साथ न केवल एक आतंकी गुट में शामिल होने का कलंक जुड़ जाता है, बल्कि उन्हें ऐसा करके पारंपरिक लैंगिक नियमों का उल्लंघन करने का दोषी भी माना जाता है। जातीय या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाली या प्रवासी महिलाएं इससे विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। इस्लामिक स्टेट से जुड़ने के बाद वापस लौटने वालों के बारे में खासकर गैर-मुस्लिम देशों में जनता की सोच काफी हद तक मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह से प्रभावित है। रिसर्च के मुताबिक, पुनर्वास और पुनः एकीकरण के कार्यक्रम बनाते समय व्यक्तिगत अंतर और असमानताओं पर विचार किया जाना चाहिए।

आतंकी गुटों में दोबारा जाने से कैसे रुकेंगी महिलाएं?

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि अल्पसंख्यक जातीय या धार्मिक समूहों की महिलाओं के ऊपर जो गुजरी है उसे ध्यान में रखना चाहिए। इस्लामिक स्टेट से जुड़े लोगों के सफल प्रत्यर्पण, आवश्यक होने पर मुकदमा चलाने, वापस लौटे सभी लोगों का पुनर्वास करने और उन्हें पुनः एकीकृत करने से न केवल सीरिया और इराक में मानवीय स्थिति में सुधार होगा, बल्कि इन लोगों के अन्य किसी चरमपंथी समूह में फिर से शामिल होने की संभावना कम होगी जिससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूत होगी। (भाषा)

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