Sunday, April 28, 2024
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अन्नदाताओं ने पहले भी हिला दी थीं हुकूमत की चूलें, जानते हैं पहला किसान आंदोलन कब हुआ था?

किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच कर गए हैं। वे दिल्ली में प्रदर्शन करेंगे, उन्हें रोकने की तैयारी की गई है लेकिन किसान अपनी जिद पर अड़े हैं। किसानों ने कब-कब अपनी आवाज उठाई है, जानते हैं प्रमुख किसान आंदोलनों के बारे में-

Kajal Kumari Written By: Kajal Kumari @lallkajal
Updated on: February 14, 2024 17:51 IST
farmers protest- India TV Hindi
किसान आंदोलन

किसान जिन्हें अन्नदाता कहते हैं, ये हैं तो जिंदगी है नहीं तो थाली में परोसा गया खाना किसो को नसीब नहीं होगा। यही किसान जमीन में अपना खून-पसीना बहाकर हमारे लिए अन्न उपजाते हैं। अगर ये अन्न उपजाना बंद कर दें तो घर का चूल्हा चौका बंद हो जाएगा। खेत में अन्न उपजाना और बाजार तक पहुंचाने के लिए इन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। ये धरतीमाता के सच्चे सपूत कहे जाते हैं और इनका खुश रहना हम सबके लिए जरूरी है। अगर कोई किसान दुखी है तो ये हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। समय-समय पर किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं और आज भी ये किसान एक बार फिर से अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। इन्हें रोकने के लिए इन्हें मनाने के हर प्रयास किए जा रहे हैं। 

ऐसा पहली बार नहीं है कि किसान अपनी बातों को लेकर, अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने निकल पड़े हैं। इससे पहले भी कई बार इन्होंने अपनी आवाज उठाई है। आईए, जानते हैं किसानों ने कब-कब अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया है-

नील विद्रोह 

neel vidroh

Image Source : INDIATV
नील विद्रोह

भारत का पहला प्रमुख किसान आंदोलन नील विद्रोह था जो साल 1859 में शुरू हुआ था और 1860 में खत्म हुआ था। यह भारत का पहला प्रमुख किसान आंदोलन माना जाता है। अपनी मांगों को लेकर किसानों द्वारा किया जाने वाला यह आंदोलन उस समय का एक विशाल आंदोलन था। अंग्रेज अधिकारी बंगाल तथा बिहार के जमींदारों से भूमि लेकर बिना पैसा दिए ही किसानों को नील की खेती में काम करने के लिए विवश करते थे और नील उत्पादक किसानों को एक मामूली-सी रकम अग्रिम देकर उनसे करारनामा लिखा लेते थे, जो बाजार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था। इस प्रथा को 'ददनी प्रथा' कहा जाता था। इसमें किसानों की जीत हुई थी और बाद में नील की खेती ही बंद हो गई। 

चंपारण सत्याग्रह 

champaran satyagrah

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चंपारण सत्याग्रह

भारत में दूसरा किसान आंदोलन चंपारण सत्याग्रह था जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में साल 1917 में हुआ था। इस आंदोलन में दमनकारी तिनकठिया प्रणाली के खिलाफ महात्मा गांधी ने आवाज उठाई और किसानों के हक के लिए उनके साथ आए। महात्मा गंधी का आजादी के समय उनके पहले सफल अहिंसक प्रतिरोध का आंदोलन चंपारण सत्याग्रह ही था जिसमें उन्होंने  देश के किसानों की दुर्दशा की ओर ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया। किसानों से अंग्रेजों ने नील बागान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके अंतर्गत किसानों को जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 

खेड़ा सत्याग्रह 

kheda satyagrah

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खेड़ा सत्याग्रह

सन् 1917 ई. में गुजरात जिले की पूरे साल की फसल मारी गई लेकिन सरकार ने लगान माफ नहीं किया। किसानों ने सरकार से गुहार लगाई लेकिन उनकी बातें नहीं मानी गईं तो महात्मा गांधी ने उन्हें सत्याग्रह करने की सलाह दी। गांधी जी की अपील पर वल्लभभाई पटेल अपनी खासी चलती हुई वकालत छोड़ कर सामने आए। उन्होंने गांव-गांव घूम-घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया। इसके बाद किसानों के मवेशी तथा अन्य चीजें कुर्क की जाने लगीं। महात्मा गांधी ने किसानों से कहा कि जो खेत बेजा कुर्क कर लिए गए हैं उसकी फसल काट कर ले आएं। गांधी जी के इस आदेश का पालन हआ और कुछ किसानों ने ऐसा ही किया। वे सभी पकड़े गए, मुकदमा चला और उन्हें सजा हुई। बाद में सरकार ने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी और इस तरह से किसानों की विजय अवश्य हुई।

बिजोलिया किसान आंदोलन

Bijolia kisan andolan

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बिजोलिया किसान आंदोलन

बिजोलिया किसान आंदोलन किसानों पर अत्यधिक लगान लगाए जाने के ख़िलाफ़ किया गया था। यह आंदोलन 1897-1941 तक चला। इसे भारत का पहला अहिंसक किसान आंदोलन माना जाता है, यह राजस्थान का पहला संगठित किसान आंदोलन था। वर्तमान भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया को ऊपरमाल की जागीर गांव कहा जाता था, इस जागीर के संस्थापक अशोक परमार थे जो 1527 के खानवा युद्ध में राणा सांगा की ओर से लड़ने गए थे। यह आन्दोलन लगभग आधी शताब्दी तक चला और 1941 में समाप्त हुआ। आंदोलन के मुख्य कारण थे- 84 प्रकार के लाग बाग़ (कर), लाटा कूंता कर (खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर), चवरी कर (किसान की बेटी के विवह पर), तलवार बंधाई कर (नए जागीरदार बनने पर कर) आदि । यह सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आन्दोलन था। इसमें महिला नेत्रियो ने भी प्रमुखता से हिस्सा लिया था।

बेंगू किसान आंदोलन

bengu kisan andolan

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बेगू किसान आंदोलन

बेगूं किसान आंदोलन जो साल 1921 में चित्तौड़गढ़ में शुरु हुई थी। इस आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की, बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस आंदोलन की शुरुआत बेगार प्रथा के विरोध के रूप में हुई थी और इस समय बेगूं के ठाकुर अनुपसिंह थे। 1922 में अनुपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारयण चौधरी के मध्य एक समझौता हुआ जिसे 'बोल्सेविक समझौते' की संज्ञा दी गई। 13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा गांव में किसानों का एक सम्मेलन हुआ, सेना के द्वारा किसानों पर गोलियां चलाई गयी। जिसमें रूपाजी धाकड़ और कृपाजी धाकड़ नामक दो किसान शहीद हुए।10 सितंबर 1923 को विजय सिंह पथिक को 5 साल के लिए जेल की सजा सुनाई । अन्त में 1925 में बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया। यह आन्दोलन विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में समाप्त हुआ था।

बारदोली सत्याग्रह

Bardoli satyagrah

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बारदोली सत्याग्रह

इसके बाद बारदोली सत्याग्रह जो 1928 में हुआ था जिसके परिणामस्वरूप भूमि कर दरों में आंशिक कमी, बेहतर सिंचाई सुविधाएं और किसानों के लिए राहत उपाय की मांगें रखी गई और सरकार को किसानों की बात माननी पड़ी। इस आंदोलन के बाद किसानों का आत्मविश्वास और उनके संघर्ष में एकता भी बढ़ी। यह 'किसान आन्दोलन' भारतभर में प्रसिद्ध रहा जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। बिजोलिया किसान आन्दोलन सन् 1847 से प्रारंभ होकर करीब आधी शताब्दी तक चलता रहा। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुकाबला किया, वह इतिहास बन गया।  

उत्तर प्रदेश किसान आंदोलन

UP Kisan andolan

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उत्तर प्रदेश किसान आंदोलन

होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के दिशा निर्देशन के परिणामस्वरूप फरवरी, सन् 1918 में उत्तर प्रदेश में 'किसान सभा' का गठन किया गया। सन् 1919 के अं‍तिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहयोग से शक्ति प्रदान की। उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर अवध के किसानों ने 'एका आंदोलन' नामक आंदोलन चलाया। 

तेलंगाना आंदोलन

telangana andolan

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तलंगाना आंदोलन

साल 1946 से1951 के बीच तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष हुआ था जिसका उद्देश्य किसानों को सामंती उत्पीड़न से मुक्त कराना और भूमि पुनर्वितरण के लिए लड़ना था। आंध्रप्रदेश में यह आन्दोलन जमींदारों एवं साहूकारों के शोषण की नीति के खिलाफ सन् 1946 में शुरू किया गया था। अब किसान बगैर किसी मध्यस्थ के स्वयं ही अपनी लड़ाई लड़ने लगे थे और इनकी अधिकांश मांगें आर्थिक होती थीं। 

तेभागा आन्दोलन

tebhaga kisan andolan

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तेभागा आंदोलन

 किसान आन्दोलनों में सन् 1946 का बंगाल का तेभागा आन्दोलन सर्वाधिक सशक्त आन्दोलन था, जिसमें किसानों ने 'फ्लाइड कमीशन' की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था। बंगाल का 'तेभागा आंदोलन' फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था। यह बंगाल के 28 में से 15 जिलों  में फैला, विशेषकर उत्तरी और तटवर्ती सुन्दरबन क्षेत्रों में। 'किसान सभा' के आह्वान पर लड़े गए इस आंदोलन में लगभग 50 लाख किसानों ने भाग लिया और इसे खेतिहर मजदूरों का भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।

 

अखिल भारतीय किसान सभा

 किसान सभा आंदोलन, बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में शुरू हुआ। इससे पहले सन् 1929 ई. में स्वामी सहजानन्द ने बिहार प्रांतीय किसान सभा (बीपीकेएस) की स्थापना की थी जो किसानों पर ज़मीनदारों द्वारा होने वाले हमलों के खिलाफ किसानों की शिकायतों को इकट्ठा करने के लिए गठित किया था। इसके गठन के फलस्वरूप भारत में किसानों की गतिविधियां आरम्भ हुईं।
 

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