Friday, April 26, 2024
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Rajat Sharma's Blog: जमीनी हालात को समझने लगा है चीन

उम्मीद तो करनी चाहिए कि अब एलएसी पर टेंशन कम होगी। लेकिन न तो हमारी फौजी तैयारी कम होगी, न तैनाती कम होगी। क्योंकि चीन की बात पर तब तक यकीन नहीं किया जा सकता, जब तक चीन अपनी सेना को पीछे हटा ना ले।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: September 23, 2020 14:45 IST
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Image Source : INDIA TV Rajat Sharma's Blog: जमीनी हालात को समझने लगा है चीन

भारत और चीन के बीच लद्दाख में कोर कमांडर लेवल की छठे दौर की बैठक के बाद कुछ सकारात्मक संकेत उभरकर सामने आए हैं। दोनों देशों में इस बात पर सहमति बनी है कि अब सरहद पर फौज की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी। अग्रिम मोर्चे पर और अधिक सैनिक नहीं भेजे जाएंगे। सोमवार को करीब 14 घंटे तक चली बैठक में दोनों पक्षों की बीच बनी सहमति को लेकर संयुक्त बयान जारी किया गया। दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए है कि (1) जमीनी स्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश या कोई भी ऐसी कार्रवाई जो हालात को जटिल कर सकती है, उससे बचें (2) गलतफहमियों से बचें और शांति बनाए रखने के लिए कम्यूनिकेशन को मजबूत करें। (3) समस्याओं को उचित ढंग से सुलझाने के लिए व्यावहारिक उपाय करें और संयुक्त रूप से शांति बहाल करने की कोशिश करें और (4) जल्द से जल्द कमांडर लेवल की सातवें दौर की बातचीत शुरू हो।

हालांकि, एलएसी से सैनिकों की वापसी के मुद्दे पर कोई सफलता नहीं मिली है। भारतीय सेना के सूत्रों ने बताया है कि दोनों पक्षों के बीच डिसएंग्जेमेंट और डी-एस्केलेशन के मुद्दे पर बातचीत का शायद ही कोई आधार था। दूसरी ओर, सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत की आड़ में चीन की पीएलए सीमा के पास लॉजिस्टिक्स निर्माण और सैनिकों की तैनाती में जुटी है। 

पीएलए का कहना है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी तट की चोटियों से भारत को सबसे पहले अपने सैनिकों को हटाना चाहिए।  भारतीय जवान अभी पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के पास ठाकुंग से लेकर गुरुंग हिल तक के हिस्से पर अपना कंट्रोल बनाए हुए हैं। स्पंगगुर गैप, मगर हिल, मुखपारी, रेजांग ला और रेछिन ला तक कई अहम चोटियों पर भारतीय सैनिक तैनात हैं। इन ऊंची चोटियों से भारतीय सैनिक चीन की हर हरकत पर नजर रख सकते हैं। चीन की सड़कें, चीनी सैनिकों के पोस्ट, मोल्दो में चीनी सैनिकों का जमावड़ा, इन सबपर भारतीय सैनिकों की पैनी नजर है। भारत का कहना है कि चीन को डेपसांग, पैंगोंग झील और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स से अपने सैनिकों को हटाना चाहिए, लेकिन चीन की सेना इसके लिए तैयार नहीं है।

असल में चीन को लेकर हमेशा रहस्य बना रहता है। सच कभी पता नहीं चलता, क्योंकि चीन से कभी पूरी जानकारी सामने नहीं आती। इसलिए चीन के इरादों की थाह पाना हमेशा मुश्किल होता है। चीन शांति की बात तो करता है, लेकिन साथ ही भारतीय जवानों पर हमले के लिए अपने सैनिकों को आयरन रॉड लेकर भी भेज देता है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि वो किसी तरह का तनाव नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'चीन का किसी भी देश के साथ न तो कोल्ड वार और न ही हॉट वार का इरादा है।' लेकिन लद्दाख से सटे तिब्बत में शी की सेना ने भारत को डराने के लिए स्टील्थ जेट लड़ाकू विमान, बम वर्षक विमान और हमलावर हेलीकाप्टर्स की खेप के साथ-साथ बड़ी संख्या में सैनिकों का जमावड़ा कर रखा है। चीनी कम्युनिस्ट नेतृत्व के साथ समस्या यह है कि न तो चीन के लोग इनके इरादों पर भरोसा करते हैं और न ही चीन को विश्व मंच पर उन गरीब अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों का ही समर्थन मिल पा रहा है जिन्हें वह अरबों डॉलर कर्ज के रूप में देता रहा है।

चीन की अर्थव्यवस्था बदहाली के दौर से गुजर रही है और कोविड -19 महामारी फैलाने में संदिग्ध भूमिका के कारण चीन दुनिया भर में अलग-थलग भी पड़ गया है। चीन में एक्सपोर्ट लगभग बंद है, कारोबार बंद हो रहे हैं, लोग नाराज हैं। शी जिनपिंग के राजनीतिक विरोधी भी उनके खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इन सारी बातें से ध्यान हटाने के लिए जिनपिंग ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोला, टेंशन क्रिएट किया ताकि राष्ट्रवादी भावनाओं का लाभ मिल सके, लेकिन यहां भी कामयाबी नहीं मिली।

चीन के साथ समस्या यह है कि वह एलएसी के पास अपनी हरकतों से भारत को डराने में विफल रहा और अब जमीन और हवा दोनों पर उसे भारतीय सेनाओं की ताकत का सामना करना पड़ रहा है। शी जिनपिंग ने अपनी सेना को एक ऐसे जाल में फंसा दिया है जिससे पीछे हटना मुश्किल है। इसीलिए, चीन की पीएलए डीपसांग, पैंगोंग और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में अपनी पोजीशन से पीछे हटने को तैयार नहीं है। यदि उनके सैनिक पीछे हटते हैं, तो वे अपने देशवासियों को क्या मुंह दिखाएंगे।

 
कोर कमांडर्स की बातचीत के दौरान केवल एक बात पर सहमति बनी और दोनों मुल्कों की तरफ से कहा गया है कि अब सीमा (अग्रिम मोर्चे) पर फौज नहीं बढ़ाई जाएगी। शी जिनपिंग के सामने मुश्किल ये है कि चीन इतना आगे बढ़ चुका है कि उसको फेस सेविंग का रास्ता भी नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि चीन भारतीय सैनिकों से लद्दाख की उन चोटियों से हटने पर जोर दे रहा है, जिसे भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने एक ही रात में अपने नियंत्रण में ले लिया था।

सोमवार को कमांडर लेवल की मीटिंग में भारत ने चीन को साफ-साफ कह दिया कि अब सिर्फ बातें करने से काम नहीं चलेगा। क्योंकि चीन अपनी बात पर कायम नहीं रहता है इसलिए वह सबसे पहले पुरानी स्थिति बहाल करे। समयबद्ध तरीके से पीछे हटे, अप्रैल वाली यथास्थिति बहाल करे, उसके बाद ही टेंशन कम हो सकती है। भारत की मजबूत पोजीशन और कड़े रूख का ही असर है कि चीन के राष्ट्रपति को संयुक्त राष्ट्र में कहना पड़ा कि वो टेंशन नहीं चाहते। किसी तरह का युद्ध नहीं चाहते। 
फिलहाल, दोनों देशों के बीच सरहद पर सैनिकों की संख्या नहीं बढ़ाने पर सहमति बन गई हैं। अगर अग्रिम मोर्चे पर और सैनिक नहीं भेजकर इस समझौते का पालन किया जाता है तब उम्मीद तो करनी चाहिए कि अब एलएसी पर टेंशन कम होगी। लेकिन न तो हमारी फौजी तैयारी कम होगी, न तैनाती कम होगी। क्योंकि चीन की बात पर तब तक यकीन नहीं किया जा सकता, जब तक चीन अपनी सेना को पीछे हटा ना ले और हमारी फौज इसकी पूरी तरह से पुष्टि ना कर दे। (रजत शर्मा)

देखिए 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 22 सितंबर 2020 का पूरा एपिसोड

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