Tuesday, April 16, 2024
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पत्नी ने किया ‘सिंदूर’ और ‘चूड़ी’ पहनने से इनकार, कोर्ट ने पति को दी तलाक की इजाजत

अदालत ने इस आधार पर तलाक को मंजूरी दी कि एक हिंदू महिला द्वारा इन रीति-रिवाजों को मानने से इनकार करने का मतलब है कि वह शादी स्वीकार करने से इनकार कर रही है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: June 30, 2020 13:35 IST
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Image Source : PTI गुवाहाटी हाई कोर्ट ने ‘सिंदूर’ लगाने और ‘चूड़ी’ पहनने से इनकार करने पर एक व्यक्ति को अपनी पत्नी से तलाक लेने की इजाजत दे दी।

गुवाहाटी: गुवाहाटी हाई कोर्ट ने ‘सिंदूर’ लगाने और ‘चूड़ी’ पहनने से इनकार करने पर एक व्यक्ति को अपनी पत्नी से तलाक लेने की इजाजत दे दी। अदालत ने इस आधार पर तलाक को मंजूरी दी कि एक हिंदू महिला द्वारा इन रीति-रिवाजों को मानने से इनकार करने का मतलब है कि वह शादी स्वीकार करने से इनकार कर रही है। पति की याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस अजय लाम्बा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की एक बेंच ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसने इस आधार पर पति को तलाक की अनुमति नहीं दी थी कि पत्नी ने उसके साथ कोई क्रूरता नहीं की। 

फैमिली कोर्ट के फैसले को पति ने दी चुनौती

व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने 19 जून को दिए अपने फैसले में कहा, ‘चूड़ी पहनने और सिंदूर लगाने से इनकार करना उसे (पत्नी को) अविवाहित दिखाएगा या फिर यह दर्शाएगा कि वह वादी के (पति) साथ इस शादी को स्वीकार नहीं करती है। प्रतिवादी का यह रवैया इस ओर इशारा करता है कि वह वादी (पति) के साथ दाम्पत्य जीवन को स्वीकार नहीं करती है।’ इस जोड़े की शादी 17 फरवरी, 2012 में हुई थी, लेकिन इसके शीघ्र बाद ही दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए थे, क्योंकि महिला अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ नहीं रहना चाहती थी। परिणामस्वरूप दोनों 30 जून, 2013 से ही अलग रह रहे थे।

महिला ने दर्ज कराई थी प्रताड़ना की झूठी शिकायत
बेंच ने कहा कि महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन यह आरोप निराधार साबित हुआ। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘पति या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ निराधार आपराधिक मामले दर्ज कराने की इन गतिविधियों को हाई कोर्ट ने क्रूरता करार दिया है।’ जजों ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज किया कि महिला ने अपने पति को उसकी बूढ़ी मां के प्रति दायित्वों के निर्वाह से रोका। आदेश में कहा, ‘इस तरह के सबूत क्रूरता को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं।’

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