Friday, March 29, 2024
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नक्सल लिंक: महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- 'सबूत के आधार पर कार्यकर्ताओं की हुई गिरफ्तारी'

महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि पांच कार्यकर्ताओं को असहमति के उनके दृष्टिकोण की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से उनके संपर्को के बारे में ठोस सबूत के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। 

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 05, 2018 19:42 IST
Supreme Court- India TV Hindi
Supreme Court

नयी दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि पांच कार्यकर्ताओं को असहमति के उनके दृष्टिकोण की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से उनके संपर्को के बारे में ठोस सबूत के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुये महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार को हलफनामा दाखिल किया। 

कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर तथा अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ‘‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व’’ है। यह पीठ गुरूवार को इस मामले में आगे सुनवाई करेगी। राज्य पुलिस ने इस नोटिस के जवाब में ही अपने हलफनामे में दावा किया है कि ये कार्यकर्ता देश में हिंसा फैलाने और सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला करने की योजना बना रहे थे। 

राज्य पुलिस का कहना है कि असहमति वाले दृष्टिकोण की वजह से इन्हें गिरफ्तार करने की धारणा को दूर करने के लिये उसके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार कार्यकर्ताओं से पूछताछ के लिये उन्हें हिरासत में देने का अनुरोध करने के साथ ही सवाल उठाया है कि याचिकाकर्ता रोमिला थापर, और अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक तथा देविका जैन, समाजशास्त्री सतीश देशपाण्डे और कानून विशेषज्ञ माजा दारूवाला ने किस हैसियत से याचिका दायर की है और कहा कि वे इस मामले की जांच से अजनबी हैं। 

महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को कई राज्यों में प्रमुख वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारे थे और माओवादियों से संपर्क होने के संदेह में कम से कम पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। इन गिरफ्तारियों को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जबर्दस्त विरोध किया था। पुलिस ने इस छापेमारी के दौरान प्रमुख तेलुगु कवि वरवरा राव को हैदराबाद और वेर्नन गोन्साल्विज और अरूण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था जबकि ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद और नागिरक अधिकारों के कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। 

पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को पुणे के निकट आयोजित एलगार परिषद कार्यक्रम के बाद भीमा-कोरेगांव गांव में भड़की हिंसा की जांच के सिलसिले में ये छापेमारी की थी। हलफनामे में कहा गया है कि गिरफ्तार किये गये कार्यकर्ता आपराधिक साजिश का हिस्सा थे और वे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं जिन्होंने एलगार परिषद के बैनर तले सार्वजनिक बैठकों का आयोजन किया था। 

हलफनामे में कहा गया है कि राज्य प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध है और असहमति पूर्ण दृष्टिकोण या वैचारिक मतभेद या राजनीतिक विचारधारा पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता और प्रत्येक देश में हमेशा इसका स्वागत होना चाहिए। हलफनामे में कहा गया है कि वे पांच आरोपी, जिनके हितों की खातिर मौजूदा याचिका दायर की गयी है, किसी राजनीतिक या वैचारिक असहमति के आधार पर गिरफ्तार नहीं किये गये हैं बल्कि आठ जनवरी, 2018 (प्राथमिकी दर्ज करने की तारीख) से चल रही जांच के दौरान उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक आरोपों का पता चला और उनके खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री भी मिली।

हलफनामे में कहा गया है कि यह न्यायालय उन व्यक्तियों के मामले को देख रहा है जिनके खिलाफ अभी तक रिकार्ड पर आये ठोस साक्ष्यों से पता चलता है कि वे प्रतिबंधित आतंकी संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं और वे न सिर्फ हिंसा की योजना की तैयारी में संलिप्त थे बल्कि 2009 से प्रतिबंधित आतंकी संगठन भाकपा (माओवादी) के एजेन्डे के अनुरूप समाज में बड़े पैमाने पर हिंसा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और अव्यवस्था पैदा करने की प्रक्रिया में थे। 

पुलिस ने कोर्ट से यह भी कहा है कि पांचों गिरफ्तार पहली बार किसी प्राथमिकी में आरोपी नहीं बनाये गये हैं बल्कि कुछ की पहले की भी ‘आपराधिक पृष्ठभूमि’ थी और वे जेल भी गये थे। हलफनामे के अनुसार कार्यकर्ताओं की खोज में जून महीने में रोना विल्सन, सुरेन्द्र गाडगिल, सुधीर धवले और कुछ अन्य के वीडियोग्राफ लिये गये थे। 

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि आरोपी व्यक्तियों के कम्प्यूटर/लैपटाप्स/पेन ड्राइव्स/मेमोरी कार्ड्स से मिली सामग्री चौंकाने वाली है और यह साफतौर पर इन व्यक्तियों के न सिर्फ भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य होने की पुष्टि करते हैं बल्कि अपराध करने के उनके राजनीतिक मंसूबे का पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि वे समाज में अस्थिरता पैदा करने के लिये अपराध करने की प्रक्रिया में थे। 

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