Saturday, April 20, 2024
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Rajat Sharma Blog: करुणानिधि के निधन से तमिलनाडु और केंद्र दोनों की राजनीति पर असर पड़ेगा

करुणानिधि एक उत्कृष्ट लेखक, वक्ता और नेता थे। अपने लेखन, नाटक, भाषण और बाद में आंदोलनों के जरिए जीवन भर वे जातिवाद के खिलाफ लड़ते रहे। वे पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: August 08, 2018 19:50 IST
Rajat Sharma Blog- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma Blog

डीएमके संस्थापक मुथुवेल करुणानिधि के निधन ​से न केवल तमिलनाडु की राजनीति पर असर पड़ेगा बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी कमी दिखाई देगी। 94 वर्षीय करुणानिधि अपने व्यक्तिगत जीवन और राजनीति में बेहतरीन संतुलन बनाने में माहिर थे। कांग्रेस-विरोध की राजनीति से उभरे करुणानिधि  कभी कांग्रेस के करीबी रहे, तो कभी बीजेपी के साथ भी रहे।

तमिलनाडु की राजनीति में एक साल के अन्दर दो दिग्गज नेताओं- जे जयललिता और एम करुणानिधि -का निधन हुआ है । जयललिता के निधन के तुरंत बाद एआईएडीएमके में बड़ा विभाजन देखने को मिला । जयललिता की करीबी और बेहद विश्वासी शशिकला को बाहर का रास्ता देखना पड़ा और अब पार्टी ईपीएस और ओपीएस गुटों के आपसी समन्वय से चल रही है। 

करुणानिधि के लंबे-चौड़े परिवार के सदस्यों में आपसी मतभेद हैं। उनके बेटे एमके स्टालिन और एमके अझागिरी के बीच अक्सर टकराव होता रहा लेकिन करुणानिधि ने अपने समय में एक विशाल बरगद की तरह इन दोनों को अपनी छत्रछाया में रखा। पार्टी एकजुट खड़ी रही और करुणानिधि ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर बेटे स्टालिन का अभिषेक कर दिया। 

उन्होंने अझागिरी को केंद्र में मंत्री के तौर पर भेजा लेकिन वो वहां खुश नहीं थे और इसका विरोध किया। करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद करुणानिधि ने अपनी बेटी कनिमोझी को सांसद बनाकर केंद्र में भेजा और इस तरह से बेटे स्टालिन के लिए पार्टी को संभालने का रास्ता खोल दिया। लेकिन अब उनके निधन के बाद स्टालिन के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की होगी। और इसका असर तमिलनाडु की सियासत पर दिखाई देगा।

तमिलनाडु की राजनीति में करुणानिधि पचास साल तक एक शिखर पुरुष रहे । उनका निधन देश की राजनीति के लिए एक गार्जियन के जाने जैसा है। वे देश के सबसे बुजुर्ग नेता थे... देश में आजादी के आंदोलन से लेकर आज तक के सारे बदलावों के वे साक्षी थे। केंद्र की बात करें तो यहां भी वे सबसे ज्यादा उम्र के ऐसे राजनीतिज्ञ थे जो स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर केंद्र की गठबंधन राजनीति के गवाह रहे। इस श्रेणी में उनके समकालीन के तौर पर इस समय उनके ही कद के एकमात्र जीवित नेता हैं, अकाली दल के सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल ।

करुणानिधि एक बेहतरीन लेखक, वक्ता और नेता थे। अपने लेखन, नाटक, भाषण और बाद में आंदोलनों के जरिए जीवन भर वे जातिवाद के खिलाफ लड़ते रहे और लोगों के दिलों में जगह बनाई। वे पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। 62 साल तक कोई चुनाव नहीं हारना, पचास साल तक एक पार्टी का अध्यक्ष रहना और लोगों के बीच लगातार लोकप्रिय बने रहना, यह अपने-आप में बड़ी उपलब्धि है। करूणानिधि को तमिलनाडु के लोग प्यार से कलांइगर कहते हैं। कलाइंगर का मतलब होता है-कलाकार।

एक कलाकर इस रंगमंच से विदा ले गया। जीवन के इस नाटक का अंत हो गया है। लेकिन करुणानिधि अपने लेखन अपने नाटकों और मुख्यमंत्री के तौर पर गरीबों के लिए किए गए कामों के जरिए हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे। इंडिया टीवी के पूरे परिवार की तरफ से करुणानिधि को हमारी श्रद्धांजलि। (रजत शर्मा)

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