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अवैध संबंध तलाक का आधार बन सकता है लेकिन अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

अवैध संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। महिला को पुरुष की तरह सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : September 27, 2018 11:44 IST
Supreme Court adultery criminal offence verdict- India TV Hindi
Supreme Court adultery criminal offence verdict

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में व्यभिचार (अडल्टरी) कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है। अदालत की पांच जजों की पीठ ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाने ढंग से लागू किया गया था। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। महिला को पुरुष की तरह सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता। महिला से असम्मान का व्यवहार असंवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि अवैध संबंध तलाक का आधार बन सकता है लेकिन अपराध नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह कहा। धारा 497 में किसी दूसरी शादीशुदा महिला से संबंधों पर केवल पुरुष को दोषी माना जाता है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं।’’ अलग से अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने धारा 497 को पुरातनपंथी कानून बताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले के साथ सहमति जतायी। उन्होंने कहा कि धारा 497 समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करती है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आठ अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में पीठ ने एक अगस्त से छह दिनों तक सुनवाई की थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड और इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने व्यभिचार पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने का पक्ष लेते हुए कहा था कि यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान संविधान बेंच की एकमात्र महिला जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने पूछा था कि क्या पत्नी के साथ एक संपत्ति की तरह व्यवहार होना चाहिए। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये आश्चर्च है कि अगर एक अविवाहित पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो वो व्याभिचार की श्रेणी में नहीं आता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शादी के बाद दोनों पक्ष शादी की मर्यादा को बनाए रखने के लिए बराबर के जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने कहा था कि विवाहित महिला अगर अपने पति के अलावा किसी विवाहित पुरुष के साथ यौन संबंध बनाती है तो उसके लिए केवल पुरुष को ही क्यों सजा दी जाए? क्योंकि इसमें दोनों बराबर के भागीदार हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि कई मामलों में जब महिला अपने पति से अलग रह रही है तो वो दूसरे पुरुष के साथ यौन गतिविधियों में शामिल होती है, तो क्या उसके पति की शिकायत पर महिला के खिलाफ व्याभिचार का अपराध कायम होता है।

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