Friday, May 03, 2024
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BLOG:महिलाएं बदलाव को तैयार, लेकिन पुरूष भी बदलें अपनी सोच

कहते हैं वक्‍त किसी के लिए ठहरता नहीं,सच बात है लेकिन दुनिया में वक्त इंसान का सबसे बड़ा साथी भी होता है। आज इतने सालों बाद जब मैं अपनी पुरानी दुनिया को देखती हूं तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी आ जाती है।

Deepika Negi Deepika Negi
Published on: March 08, 2016 17:05 IST
women day- India TV Hindi
women day

(अंतराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर युवा पत्रकार दीपिका नेगी का विशेष ब्‍लॉग)

कहते हैं वक्‍त किसी के लिए ठहरता नहीं,सच बात है लेकिन दुनिया में वक्त इंसान का सबसे बड़ा साथी भी होता है। वक्त एक ऐसी मजबूत चीज है जो हमेशा इंसान के साथ रहता है, और शायद कभी-कभी यही वक्त इंसान की परीक्षा भी लेता है,हम जो कुछ करते हैं भले ही एक समय बाद हम उसे भुला दें लेकिन वक्त हमेशा हमें उस चीज की याद दिलाता रहता है। आज इतने सालों बाद जब मैं अपनी पुरानी दुनिया को देखती हूं तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी आ जाती है, मैं ये तो नहीं जानती कि मुझे क्यों हंसी आती है, पर याद आता है कि वो भी एक समय था और आज भी एक समय है,दोनों में जमीन-आसमान का फर्क। किसी ने सच ही कहा है कि बचपन बहुत ही प्यारा होता है ना तो दुनिया से कोई मतलब होता है ना ही किसी से आगे निकलने की होड़ होती है।

आज इतने सालों बाद काम और करियर बनाने की चाहत,कुछ बेहतर करने की जिद में ना जाने मेरा वो बचपन कहां चला गया है। अब ना तो वो बचपन रहा और ना ही वो मासूम सा मेरा मन। क्यों हम बड़े होते हैं ? और क्यों बड़े होते ही हमें अपनी इस मासू+मियत को छोड़ना पड़ता है? क्यों हमें दुनिया के हिसाब से चलना पड़ता है ? और इस बात का ख्याल रखना पड़ता है कि लोग और ये समाज हमारे बारे में क्या सोचेगा? आखिर ये समाज क्या है ? कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा बनाया गया ऐसा समाज जहां कोई अपनी मन की ना कर पाए। मुझे नहीं पसंद ऐसा समाज जहां आपको खुद की मर्जी से नहीं बल्कि किसी और की मर्जी से चलना पड़े।

स्‍नात्‍तक की पढ़ाई करते समय मैंने कभी नहीं सोचा था कि वक्त मेरे जीवन को इस तरह बदल देगा। कहां तो मैंने सपने देखे थे कि मैं एक टीचर बनकर बच्चों को पढ़ाऊंगी और कहां मैं इस मीडिया जगत में उलझकर ही रह गई हूं। मैं नहीं जानती की ये समय मुझे कहां ले जा रहा है, मैं तो बस इसके बहाव के साथ बह रही हूं और खुद को तलाश रही हूं कि आखिर मैं क्या चाहती हूं अपने इस जीवन से ? ना जाने मेरी यह तलाश कहां जाकर खत्म होगी।

आज महिला दिवस के अवसर पर मैं लिख पा रही हूं तो यह मेरे संपादक का मुझ पर भरोसा है अगर वह मुझपर इस भरोसे को नहीं दिखाते तो शायद मैं कभी लिख ही नहीं पाती। किसी को भरोसा दिलाना और किसी के विश्वास पर खरा उतरना बहुत बड़ी बात होती है। जब मैं छोटी थी तो कभी नहीं सोचा था कि मीडिया जगत ही मेरी पसंद और रोजगार का जरिया बनेगा। ना ही मैंने कभी सोचा था कि मैं नौकरी करूंगी। मैं हमेशा से खुद को एक कमजोर पंछी समझती रही जिसे सहारे की जरूरत थी, प्यार की जरूरत थी। मुझे कोई ऐसा इंसान चाहिए था जो दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा प्यार कर सके, और मेरी हर एक इच्छा को पूरा करे। लेकिन समय बदलता गया और जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई मेरे सपने तो यही थे लेकिन अब जरूरतें बदल गई हैं। और अब मुझे इस बात का एहसास हो गया है कि मैं कमजोर नहीं हूं, मैं तो वो पंछी बनना चाहती हूं.. जो मेहनत करके पूरे आसमान को यह बात बताना चाहती हैं कि मेरे पंखों में भी इतनी ताकत है कि मैं इस अनंत आसमान में बिना किसी की मदद से उड़ सकती हूं।

मेरा मानना है कि आज के समय में महिलाओं का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है, लोगों का कहना है कि महिलाएं केवल घर संभालने के लिए लिए होती है। लोगों का यह भी सोचना है कि महिलाओं को अपने जीवन में किसी ना किसी सहारे की जरूरत होती है। ऐसी विचार धारा रखने वाले लोगों को मैं आज यह कहना चाहूंगी कि सभी पुरूषों को जन्म देने वाली भी महिलाएं ही होती हैं जब वह 9 माह तक एक बच्चे को अपने गर्भ में रखकर कष्ट सह सकती हैं तो वह अकेले दुनिया का हर काम बिना किसी की मदद के पूरा भी कर सकती हैं।

एक लड़की होने के नाते अगर मैं अपनी नौकरी की बात करूं तो तो मेरे घर में भी नौकरी को लेकर लोगों के नजरिए अलग-अलग हैं। मेरे परिवार में भी ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि लड़कियां अगर घर से बाहर जाएंगी तो वह बिगड़ जाएंगी, या कोई ना कोई व्यक्ति उनका गलत फायदा उठाएगा। शर्म आती है मुझे ऐसी सोच रखने वाले लोगों से कि कहां तो हम एक तरफ महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं और वहीं दूसरी ओर यही लोग महिलाओं और पुरूषों में फर्क करते हैं। मैं एक सवाल सभी से पूछना चाहती हूं कि क्यों हमेशा महिलाओं को ही झुकना पड़ता है, जब भी बलिदान देने की बात आती है तो महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वह ही इसे करेंगी ? क्या अगर पुरूष यदि झुक जाएंगे तो उनकी आन- बान-शान खत्म हो जाएगी? इसका मतलब तो यही हुआ कि पुरूषों की इज्जत महिलाओं से ज्यादा है और महिलाओं की कोई इज्जत नहीं।

16 दिसंबर 2012 को हुए दामिनी रेप केस की अगर बात करूं तो मुझे याद है इस रेप केस को लेकर कुछ लोगों का कहना था कि लड़की का ही चरित्र ठीक नहीं था। लड़की ने सभ्य कपड़े नहीं पहने थे…आज मैं उन लोगों से सिर्फ एक बात बोलती हूं कि, किसी का चरित्र उसके कपड़ों से नहीं नापा जाता। एक  तरफ हम महिलाओं के हक के लिए लड़ते हैं और दूसरी तरफ उनको घर से बाहर निकलने के लिए रोकते हैं। क्योंकि आज भी कहीं ना कहीं यह समाज चाहता है कि महिलाएं दब कर रहे, और मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि यदि समाज में महिलाओं के प्रति यही नजरिया रहा तो यह देश कभी विकसित नहीं कहलाया जाएगा। जब तक हम लोगों की मनोस्थिति को नहीं बदल देते तब तक महिलाएं गुलाम ही रहेंगी।

 रोजाना मेट्रों में सफर करते हुए जब मैं महिलाओं को देखती हूं तो उनकी आंखों में मुझे एक चमक दिखाई देती है, जिसे देखकर पता चलता है कि महिलाएं तो बदलाव के लिए तैयार हैं, अब अगर किसी को बदलना है तो वह हैं इस समाज के पुरूष।

जहां तक नौकरी के अब तक के सफर की बात करूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझें कभी नौकरी के लिए इतना भटकना पड़ेगा। मैं यह तो नहीं कहूंगी कि नौकरी करना आसान है, लेकिन नौकरी पाना सबसे मुश्किल काम है। लेकिन जब आप बेरोजगार होते हो बेशक यह समय आपकी जिंदगी का टफ टाइम होता है लेकिन मैनें ऐसे समय मे भी हार नहीं मानी, कुछ नया सिखने का प्रयास करती रही। मैं जानती हूं कि मेरी इस बात पर लोग कहेंगे की यह कोई बड़ी बात नहीं है और मेरा मानना है कि बेशक लोगों के लिए यह बड़ी नहीं होगी लेकिन जिस पर गुजरती है वही शायद इस बात को समझ सकता है। क्योंकि एक ऐसा समय भी था जब हर पल मैंने खुद को बेबस, लाचार होते हुए देखा है, एक-एक रूपए के लिए घरवालों के सामने हाथ फैलाएं हैं, घरवालों की उम्मीद टूटते हुए देखा है मैंनें। लेकिन मेरा भरोसा कभी कम नहीं हुआ और अंत में मेरी मेहनत रंग लाई।

नौकरी मिलने की सबसे बडी खुशी ये है कि अब मैं आत्मनिर्भर हूं। अब मुझे किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं है। और शायद मेरी जैसी हर लड़की यही सोचती है। आज 6 महीने बाद भले ही मैं लोगों को ना बता पाऊं की मैंने क्या सीखा है लेकिन इस बात को केवल मैं जानती हूं कि मैंने खुद को जमीन से उठाकर आसमान में उड़ने लायक बनाया है। और मुझे गर्व है खुद पर कि मैंने खुद को किसी का गुलाम बनने से रोका है। मैं तो बस एक आजाद पंछी की तरह अपने हिस्‍से के आसमान में अपने हिस्‍से के धूप के टुकड़े की चाहत रखती हूं, जब उड़ने के लिए पूरा खुला आसमान हो तो हम लड़कियां अपने सपनों को पूरा करने का हक रखती हैं।

आज अपने मां-बाबा की नजरों मैं मैंने खुद को पाया है। मैं हमेशा से चाहती थी मेरे मां-बाबा मुझपर गर्व करें, और पूरी दुनिया को बता सकें कि उनकी बेटी क्या है। देखा है मैंने उनकी आंखों में अपने लिए गर्व की एक चमक शायद किसी बेटी के लिए इससे बढ़कर और कुछ हो भी नहीं सकता। मेरे मां-बाबा ने मुझे कभी किसी काम के लिए नहीं रोका, अपनी इच्छाओं को मारते हुए देखा है मैंने उन्हें लेकिन इसका प्रभाव कभी मेरे भविष्य पर नहीं पड़ने दिया। जब किसी की शादी होते हुए देखती हूं तो सोच कर भी रोना आ जाता कि मुझे भी एक दिन अपने मां-बाबा को छोड़कर जाना पड़ेगा। 22 साल जिस पेड़ की छाया में मैं रहीं उसे छोड़कर एस दिन एक ऐसे इंसान के साथ जाना होगा जिसे में जानती तक नहीं।

कभी कभी मन में एक सवाल आता है क्यों हमेशा लड़की को अपने मां-बाबा को छोड़ना पड़ता है ? क्यों शादी के बाद हम लड़कियों को अपना सरनेम चेंज करना पड़ता है ? क्या लड़के शादी के बाद अपना सरनेम लड़की के अनुसार नहीं बदल सकते? या फिर लड़के अपना घर छोड़कर लड़कियों के घर नहीं आ सकते ? शायद जिस दिन कोई लड़का ऐसा कर पाएगा उस दिन उनको एहसास हो जाएगा कि कितना मुश्किल होता है लड़कियों के लिए अपने परिवार को छोड़ना और किसी दूसरे की मां को खुद की मां समझना।

(ब्‍लॉग लेखिका दीपिका नेगी युवा पत्रकार हैं और indiatv की हिन्‍दी वेबसाइट www.khabarindiatv.com  में कार्यरत हैं )

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