Friday, April 19, 2024
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'Same Sex Marriage को हरगिज मान्यता ना दें'-सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने जताया कड़ा विरोध, बताई ये वजह

केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि यह कभी आदर्श नहीं हो सकता। केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।

Kajal Kumari Edited By: Kajal Kumari
Updated on: March 12, 2023 16:23 IST
Same sex marriage is not legal- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का जताया विरोध

दिल्ली: केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का सुप्रीम कोर्ट में कड़ा विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में अपने जवाबी हलफनामे में, केंद्र सरकार ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज़ करने से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का दावा नहीं हो सकता है। केंद्र ने कहा कि प्रकृति में विषमलैंगिक तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में आदर्श है और देश और समाज के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए ये  मूलभूत सिद्धांत है। केंद्र सरकार के लाइव लॉ द्वारा दायर किए गए जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि, "इसलिए, इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए, केवल विवाह/संघों के अन्य रूपों के बहिष्कार के लिए विषमलैंगिक विवाह को ही मान्यता दी जानी चाहिए।"

 केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ हलफनामा दायर किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग हैं जिन्हें समान नहीं माना जा सकता है।

केंद्र सरकार ने कहा-इससे रिश्तों पर और समाज पर असर पड़ेगा

केंद्र ने कहा कि "यह प्रस्तुत किया गया है कि इस स्तर पर यह पहचानना आवश्यक है कि विवाह या संघों के कई अन्य रूप हो सकते हैं या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ हो सकती है, देश में विवाह की मान्यता को विषमलैंगिक रूप तक सीमित करता है। हम ये नहीं कह रहे हैं कि विवाह के इन अन्य रूपों या संघों या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ गैरकानूनी नहीं हैं।" 

केंद्र ने समान-लिंग विवाह का विरोध करने के लिए सामाजिक संगठनों का हवाला दिया और कहा कि एक मानक स्तर पर, समाज में परिवार की छोटी इकाइयां होती हैं जो मुख्य रूप से एक विषम रिश्ते के प्रति ही संगठित होती हैं। "समाज के बिल्डिंग ब्लॉक का यह संगठन बिल्डिंग ब्लॉक्स यानी परिवार इकाई की निरंतरता पर आधारित है,"  जबकि समाज में संघों के अन्य रूप भी मौजूद हो सकते हैं जो गैरकानूनी नहीं होंगे, यह एक समाज के लिए खुला है कि वह एक ऐसे संघ के रूप को कानूनी मान्यता दे जिसे समाज अपने अस्तित्व के लिए सर्वोत्कृष्ट निर्माण कर सकता है और समाज इसे मानता है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि समान-सेक्स विवाहों को मान्यता न देने के कारण किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है।

13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट मे ंहोगी सुनवाई

 सुप्रीम कोर्ट 13 मार्च को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

बता दें कि 6 सितंबर, 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में, शीर्ष अदालत ने धारा 377 को रद्द कर दिया, जिसने समलैंगिक संबंधों को आपराधिक बना दिया था।

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