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'पीड़ित को मुआवजा देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता', सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी

न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने का उद्देश्य उन लोगों का पुनर्वास करना है जिन्हें अपराध के कारण नुकसान उठाना पड़ा हो या उन्हें चोट पहुंची हो और यह सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता।

Edited By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Published : Jun 06, 2024 17:10 IST, Updated : Jun 06, 2024 17:14 IST
सुप्रीम कोर्ट - India TV Hindi
Image Source : PTI सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता। न्यायालय ने कहा कि यदि सजा कम करने के लिए मुआवजे का भुगतान एक विकल्प बन जाता है, तो इसका आपराधिक न्याय व्यवस्था पर ‘‘गंभीर’’ प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने कहा कि इसका नतीजा यह होगा कि अपराधियों के पास न्याय से बचने के लिए बहुत सारा पैसा होगा, जिससे आपराधिक कार्यवाही का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जायेगा। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357 न्यायालय को दोषसिद्धि का निर्णय सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी

न्यायमूर्ति जे.बी.पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘‘पीड़ित को मुआवजा देना अभियुक्त पर लगाए गए दंड को कम करने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि पीड़ित को मुआवजा देना दंडात्मक उपाय नहीं है और इसकी प्रकृति केवल प्रतिपूरक है।

गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 357 का उद्देश्य पीड़ित को आश्वस्त करना है कि उन्हें आपराधिक न्याय प्रणाली में भुलाया नहीं गया है। न्यायालय ने यह टिप्पणी राजेंद्र भगवानजी उमरानिया नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका में गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक आपराधिक मामले में दो व्यक्तियों की पांच साल की सजा को घटाकर चार साल कर दिया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि दोषी पीड़ित को 2.50 लाख रुपये का भुगतान कर दें तो उन्हें चार साल की सजा भी नहीं काटनी होगी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि घटना को 12 वर्ष बीत चुके हैं और दोषियों ने पहले ही पांच लाख रुपए जमा कर दिए हैं। पीठ ने कहा, ‘‘हम उन्हें चार वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का निर्देश देने के पक्ष में नहीं हैं। अदालत ने कहा, ‘‘हम हालांकि प्रत्येक प्रतिवादी को निचली अदालत में पहले से जमा की गई राशि के अलावा और पांच लाख रुपये यानी कुल 10 लाख रुपये जमा करने का निर्देश देते हैं।

इनपुट-भाषा  

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