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सरोगेसी के जरिए मां बनने वाली महिलाओं को भी मिले मैटेरनिटी लीव, हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी

हाईकोर्ट ने आज एक याचिका पर फैसला देते हुए एक अहम टिप्प्णी की है। कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी के जरिए मां बनने वाली महिलाओं को भी मैटेरनिटी लीव मिलने का हक है।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jul 05, 2024 16:16 IST, Updated : Jul 05, 2024 16:23 IST
Orissa High Court- India TV Hindi
Image Source : PTI Orissa High Cour

उड़ीसा हाई कोर्ट ने हाल में व्यवस्था दी है कि किराए की कोख (सरोगेसी) के जरिए मां बनने वाली महिला कर्मचारियों को वैसे ही मैटेरनिटी लीव एवं अन्य लाभ पाने का अधिकार है जो प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देने वाली या बच्चा गोद लेकर मां बनने वाली महिलाओं को मिला है। जस्टिस एस के पाणिग्रही की सिंगल बेंच ने 25 जून को ओडिशा फाइमेंस सर्विस की महिला अधिकारी सुप्रिया जेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह व्यवस्था दी है।

2020 में डाली गई थी याचिका

याचिकाकर्ता ने साल 2020 में इसे लेकर याचिका दायर की थी। जेना सरोगेसी के जरिए मां बनीं लेकिन उन्हें ओडिशा सरकार में उनके बड़े अफसरों ने 180 दिन की मैटेरनिटी लीव देने से मना कर दिया। इसलिए उन्होंने सरकार के विरूद्ध हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने कहा कि जिस तरह प्राकृतिक रूप से मां बनने वाली सरकारी कर्मियों को 180 दिन की छुट्टी मिलती है, उसी तरह 1 साल उम्र तक के बच्चे को गोद लेने वाली सरकारी कर्मियों को भी उसकी (बच्चे की) देखभाल के लिए 180 दिन की छुट्टी मिलती है। लेकिन सरोगेसी के माध्यम से प्राप्त संतान की देखभाल के लिए मैटेरनिटी लीव का प्रावधान नहीं है।

मुद्दे पर की अहम टिप्पणी

हाई कोर्ट ने कहा, "यदि सरकार गोद लेकर मां बनने वाली महिला को मैटेरनिटी लीव दे सकती है तो उस मां को मैटेरनिटी लीव से वंचित करना गलत होगा जिसे सरोगेसी देने वाली महिला के गर्भ में संतान पाने को इच्छुक दंपति के अंडाणु या शुक्राणु से तैयार भ्रूण के अधिरोपण के बाद इस प्रक्रिया से बच्चा मिला हो।" कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि सभी नई मांओं के प्रति समान बर्ताव एवं सहायता सुनिश्चित करने के लिए उन (महिलाओं) को भी मैटेरनिटी लीव दिया जाए, भले ही वह किसी भी तरह मां क्यों न बनी हों।

दिया ये निर्देश

कोर्ट ने कहा कि इन माताओं को मैटेरनिटी लीव देने से यह सुनिश्चित होता है कि उनके पास अपने बच्चे के लिए स्थिर एवं प्यार भरा माहौल बनाने के लिए जरूरी वक्त होता है और जच्चा एवं बच्चा के कल्याण को बढ़ावा मिलता है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस आदेश की सूचना मिलने के 3 महीने के अंदर याचिकाकर्ता को 180 दिन का मैटेरनिटी लीव देने का निर्देश दिया।

(इनपुट- PTI)

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