नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित करने के लिए दायर की गई जनहित याचिका सोमवार को खारिज कर दी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि नीतीश कुमार ने निर्वाचन आयोग को इस तथ्य की जानकारी नहीं दी थी कि उनके खिलाफ हत्या का एक मामला लंबित है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ की 3 सदस्यीय खंडपीठ ने मुख्यमंत्री के इस कथन पर विचार किया कि उन्होंने 2012 में निर्वाचन आयोग को आपराधिक मामला लंबित होने के तथ्य से अवगत कराया था।
पीठ ने कहा, ‘हमें इस याचिका में कोई दम नहीं नजर आया। इसे खारिज किया जाता है। चुनाव के नियम कहते हैं कि उन्हें (नीतीश) निचली अदालत द्वारा संज्ञान लेने के बाद उन्हें इसकी जानकारी देनी चाहिए और ऐसा किया गया था।’ मुख्यमंत्री के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि इस मुकदमे की कार्यवाही पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा रखी है। यही नहीं, मुख्यमंत्री ने कुछ भी गलत नहीं किया है। नीतीश कुमार के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बड़ी राहत लेकर आया है।
जानें, क्या है मामला:
यह जनहित याचिका अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने दायर की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि JDU नेता के खिलाफ आपराधिक मामला है जिसमें वह एक स्थानीय कांग्रेसी नेता सीताराम सिंह की हत्या करने और 4 अन्य को जख्मी करने के आरोपी है। यह घटना 1991 में बिहार के बाढ़ संसदीय क्षेत्र के लिए हो रहे उपचुनाव के समय की है। याचिकाकर्ता ने निर्वाचन आयोग के 2002 के आदेश के अनुरूप नीतीश कुमार की राज्य विधान परिषद की सदस्यता निरस्त करने की मांग की थी। उनका दावा था कि बिहार के मुख्यमंत्री ने 2012 के अलावा 2004 से अपने हलफनामे में इस आपराधिक मामले की जानकारी नहीं दी थी।