Saturday, April 27, 2024
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Vat Savitri Vrat 2022: 30 मई को है वट सावित्री व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Vat Savitri Vrat 2022: जानिए वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Sushma Kumari Edited by: Sushma Kumari @ISushmaPandey
Updated on: May 29, 2022 18:38 IST
Vat Savitri Vrat 2022- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Vat Savitri Vrat 2022

Highlights

  • ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत किया जाता है।
  • इस बार ये व्रत 30 मई को है।

Vat Savitri Vrat 2022: ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 30 मई को है। ये व्रत मुख्य रूप से सौभाग्यवती महिलाओं के द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए, संतान प्राप्ति के लिए और घर-परिवार के सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन वट वृक्ष या बरगद के पेड़ की पूजा का विशेष विधान है। अतः इस दिन आपको वट वृक्ष या बरगद के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत ज्यादा खास होता है जितना कि करवाचौथ का व्रत। जानिए वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त

  • अमावस्या तिथि प्रारंभ - 29 मई 2022 दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से
  • अमावस्या तिथि समाप्त - 10 जून 2022  शाम 04 बजकर 59 मिनट तक

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

  • इस दिन महिलाएं सुबह उठकर सभी कामों से निवृत होकर स्नान कर लें। 
  • उसके बाद नए वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करें। 
  • फिर पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी, प्लेट या डलिया में सही से रख दें। 
  • फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे पूजा की सभी सामग्री रखने के बाद स्थान ग्रहण करें। 
  • इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें। 
  • फिर धूप, दीप, रोली, भिगोएं चने, सिंदूर आदि से पूजा करें।
  • इसके बाद लाल कपड़ा अर्पित करें और फल चढ़ाएं।
  • फिर बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें।
  • इसके बाद बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं। 
  • अब धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5,11, 21, 51 या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें। 
  • आखिरी में सावित्री-सत्यवान की कथा पंडितजी से सुनने के बाद उन्हें यथासंभव दक्षिणा दें।
  • आप चाहें तो कथा खुद भी पढ़ सकती हैं। 
  • उसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशीर्वाद लें। 
  • फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित संतान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के बादपुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। सावित्री के युवा होने पर अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय पता करने के बाद वो पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।

नारदजी के बताए समय के कुछ दिनों पहले से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की।

फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छूटा राज्यपाठ वापस मिल गया। अंत में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। अपनी इसी सूजबूझ से सावित्री ने ना केवल सत्यवान की जान बचाई बल्कि अपने परिवार का भी कल्याण किया। 

 

आखिर में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।

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