Friday, May 10, 2024
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1992 में कारसेवक बनकर अयोध्या गए थे फारुख शेख, नाम बदलकर बचाई थी जान; खुद सुनाई पूरी कहानी

नागपुर के फारुख शेख 1992 में राम मंदिर का संकल्प लेकर अयोध्या गए थे। फारुख की 6 दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि आंदोलन में गिरफ्तारी भी हुई थी। शिवप्रसाद नाम रखने से तब उनकी जान बची थी। अब फारुख घर-घर जाकर पूजित अक्षत वितरण कर रहे हैं।

Reported By : Yogendra Tiwari Edited By : Swayam Prakash Updated on: January 13, 2024 21:07 IST
Farooq Sheikh- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV कारसेवक रहे नागपुर के फारुख शेख

3 दिसंबर 1992 को नागपुर के फारुख शेख जिनकी उस दौरान उम्र 16 या 17 साल रही होगी। फारूक तब एक कारसेवक बनाकर अयोध्या गए थे। वहां शिविर में  साध्वी ऋतंभरा देवी से मिले। साध्वी ने पूछा कि तुम तो मुस्लिम हो, फिर यहां क्या कर रहे हो। फारूक का जवाब था कि वह भाईचारे के लिए आए हैं। यह अनसुनी कहानी किसी और ने नहीं बल्कि खुद फारूक ने आज इंडिया टीवी के साथ बातचीत करते हुए बताई। फारुख का कहना है कि उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के संकल्प को पूरा करने के लिए न केवल कारसेवा की, बल्कि कुछ दिन उन्हें नजरबंद भी रहना पड़ा। 

भगवा पहन कर रहे अक्षत वितरण

आज फारुख विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के साथ नागपुर के मुस्लिम, हिंदू, क्रिश्चियन बस्तियों में पूजीत अक्षत का वितरण कर रहे थे। फारुख ने खुद अपने हाथों में पूजित अक्षत का कलश लिया हुआ था। सर पर भगवा टोपी धारण की थी और जय श्री राम के नारे लगा रहे थे। वह लोगों के घरों में जाकर पूजीत अक्षत और भगवान राम के मंदिर का चित्र उन्हें भेंट कर रहे है। वह सभी लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि वह अयोध्या में भगवान राम लाल के प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव में शामिल हों। फारूक का मानना है कि अयोध्या में सकार हुआ राम मंदिर, धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही, साथ में यह राष्ट्र निर्माण का भी मंदिर है। इस मंदिर को धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन में नहीं बांधा जा सकता। यह मंदिर देश के सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनेगा।

प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का नहीं मिला निमंत्रण

फारुख जय श्री राम के जय घोष के साथ सभी को पूजीत अक्षत देते हैं और साथ ही अपने घर में दिवाली मनाने का, दीप जलाने का, जश्न मनाने का आग्रह करते हैं। फारुख ने बताया कि उन्हें थोड़ा दुख हुआ कि उन्हें प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव का निमंत्रण नहीं मिला, लेकिन तुरंत ही जय श्री राम का जय घोष करते हैं और कहते हैं कि मैं अपने घर पर उसे दिन दीपक जलाऊंगा और राम की जय घोष करूंगा।

"जब ढांचा ढह रहा था तब..."

इंडिया टीवी से खास बातचीत के दौरान फारुख ने 6 दिसंबर 1992 का जिक्र करते हुए कहा कि जब ढांचा ढह रहा था, उसके चंद कदमों की दूरी पर ही वो खड़े थे। पुलिस लाठीचार्ज कर रही थी। उनके साथी राजू गणराज जख्मी हो गए, तब कुछ संगठनों को पता चला कि मुस्लिम यहां आया है। तो वे लोग मारने के लिए आए, लेकिन कारसेवकों ने शिव प्रसाद साहू नाम से उनका कार्ड बनाया और उन्हें शिव नाम से पुकारा जाने लगा। इसी नाम की वजह से उनकी जान बची। पुलिस इसी नाम से उन्हें गिरफ्तार कर फैजाबाद ले गई और नजरबंद कर दिया। उसके बाद उन्हें नागपुर भेज दिया गया था।

हर धर्म के लोगों को बांट रहे पूजित अक्षत 

विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के साथ फारुख बस्तियों में घूम रहे हैं। लोगों को पुजीत अक्षत दे रहे हैं। नागपुर में यह मिसाल देखने को मिली कि फारुख के हाथों से वितरित करने वाला पूजित अक्षत सब कोई स्वीकार कर रहा है। चाहे वह क्रिश्चियन हो, चाहे वह मुसलमान हो। कुछ क्रिश्चियन परिवार के सदस्यों ने कहा कि बड़े प्यार से ये लोग आए, इसलिए उन लोगों ने भी इस पूजीत अक्षत को बड़े प्यार से उनसे स्वीकार किया। 22 जनवरी को वो अपने घर में दिया जलाएंगे। इस दौरान एक मुस्लिम परिवार भी मिला जिसका कहना है कि जब यहां से हिंदू भाई बस्ती के जाएंगे तो उनके साथ उनका परिवार भी अयोध्या जाएगा।

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