नई दिल्ली। एस. एस. कोहली की अगुवाई वाली आईएलएंडएफएस (आईएफआईएन) की ऑडिट समिति ने व्हिसिलब्लोअर के शिकायतों की अनदेखी कर लगातार हेराफेरी की, आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) की जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि आंकड़ों में इतना व्यापक हेरफेर बिना प्रबंधन के मिलीभगत के असंभव है।
क्या थी समिति की जिम्मेदारी
एस. एस. कोहली की अगुवाई वाली ऑडिट समिति पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। जांच से खुलासा होता है कि व्हिसिलब्लोअर द्वारा लगाए गए आरोपों पर ऑडिट समिति ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस समिति की जिम्मेदारी थी कि कंपनी को आरबीआई को दिशा-निर्देशों के मुताबिक चलाए, जिसमें आरबीआई द्वारा दिए गए समय-समय पर विभिन्न दिशानिर्देश शामिल हैं। कंपनी की बैठकों के मिनट्स से यह जाहिर होता है कि ऋण की वसूली की प्रक्रिया के रूप में आहरण किए गए शेयरों में निवेश सहित निवेश के मूल्य में कमी के मुद्दे पर आरबीआई ने कंपनी को इंगित किया था। अगर आरबीआई किसी संपत्ति को कंपनी के नुकसान वाली संपत्ति करार देता है तो कंपनी को उस परिसंपत्ति को राइट ऑफ (बट्टे खाते में डालना) करना होता है।
निष्पक्ष तरीके से काम नहीं की ऑडिट समिति
जांच दल ने पाया कि विभिन्न मुद्दों पर ऑडिट समिति ने कोई कार्रवाई नहीं की। शुद्ध स्वामित्व निधि, पूंजी पर्याप्तता अनुपात की गणना पर समिति का रवैया प्रबंधन के दिशा-निर्देशों पर चलने का था। उसने स्वतंत्र रूप से कोई जांच, सत्यापन या निरीक्षण जैसी कार्रवाई नहीं की। जांच समिति ने पाया कि ऑडिट समिति स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करने में असफल रही। वह कंपनी के प्रबंधन के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मामलों की एक स्वतंत्र जांच कराने में विफल रही। साथ ही वह बाहरी स्रोतों से कोई पेशेवर सलाह लेने में भी विफल रही थी। वह आरबीआई के निर्देशों का पालन करने में विफल रही थी और प्रबंधन के रुख का कठोरता से पालन किया था, जो गैरकानूनी और अवैध था।