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बड़े काम की है सैलरी स्लिप, जानिए इसमें कौन-कौन सी अहम जानकारी छुपी होती है आपकी

सैलरी स्लिप सैलरी स्लिप में दो चीजें होती हैं- एक इनहैंड सैलरी और दूसरी डिडक्शन पार्ट। दोनों को मिलाकर आपकी मासिक सीटीसी यानी (कॉस्ट टू कंपनी) बनती है।

Edited By: India TV Paisa Desk
Published : Mar 07, 2023 13:43 IST, Updated : Mar 07, 2023 13:43 IST
सैलरी स्लिप- India TV Paisa
Photo:FILE सैलरी स्लिप

नौकरी-पेशा लोगों को हर महीने सैलरी मिलती है। इसके बाद एचआर से सैलरी स्लिप मेल पर आ जाती है। लेकिन, अधिकांश लोग सिर्फ सैलरी से मतलब रखते हैं और सैलरी स्लिप देखते भी नहीं। लेकिन आपकी सैलरी स्लिप में तमाम ऐसी जानकारी छुपी होती हैं, जो आपको जॉब बदलने या इंक्रीमेंट के समय काम आ सकती हैं। दरअसल, जब आप दूसरी जॉब ढूंढते हैं तो तय नहीं कर पाते कि कितना पैकेज मांगना है। लेकिन यदि आप सैलरी स्लिप को ध्यान से समझेंगे तो यह काम आसानी से हो जाएगा। 

सैलरी स्लिप सैलरी स्लिप में दो चीजें होती हैं- एक इनहैंड सैलरी और दूसरी डिडक्शन पार्ट। दोनों को मिलाकर आपकी मासिक सीटीसी यानी (कॉस्ट टू कंपनी) बनती है। इसका मतलब है कि कंपनी आप पर कितना खर्च कर रही है। स्लिप में सभी भत्ते भी शामिल होते हैं।

सैलरी स्लिप से ले सकते हैं ये सारी जानकारी 

 1: बेसिक सैलरी यह आपकी सैलरी का सबसे अहम हिस्सा है। आम तौर पर आपकी बेसिक कुल सैलरी का 35-40 फीसदी होती है। आपकी बेसिक जितनी ज्यादा होगी, उतना ही आपको टैक्स देना पड़ेगा। यह 100 फीसदी टैक्सेबल होती है। बेसिक, इन हैंड सैलरी के रूप में मिलती है। 

1. एचआरए बेसिक सैलरी का 50 प्रतिशत होता है बशर्ते कर्मचारी मेट्रो सिटी में रहते हो। अगर कर्मचारी टियर टू या टियर थ्री शहर में रहता है, तो एचआरए बेसिक सैलरी का 40 प्रतिशत होता है।

2. आप किराए पर रहते हुए सालभर में जितना किराया देते हैं, उसमें से बेसिक सैलरी का 10 फीसदी हिस्सा घटाने के बाद जो पैसा बचता है, वह भी हाउस रेंट अलाउंस हो सकता है। नोटः इन दोनों में कंपनी वो पार्ट अदा करती है, जो कम होता है। हाउस रेंट अलाउंस पर पर आपको टैक्स में छूट मिलती है।

 3. कन्‍वेअंस अलाउंस यह आपको ऑफिस जाने-आने या ऑफिस के काम से कहीं बाहर जाने के एवज में मिलता है। यह अमाउंट कंपनी आपके जॉब प्रोफाइल के अनुसार तय करती है। सेल्स डिपार्टमेंट में काम करने वालों का कन्‍वेअंस अलाउंस ज्यादा होता होता है। यह पैसा इन हैंड सैलरी में ही जुड़ता है। 

4. लीव ट्रैवल अलाउंस हर कंपनी में LTA फिक्स होता है। कंपनी साल में कुछ छुट्टियां और ट्रैवल खर्च आपको देती है। कुछ कंपनियां इसमें परिवार के सदस्यों को भी शामिल करती हैं। टूर पर जाकर आप जो भी अन्य खर्च करते हैं, वह इसके दायरे में नहीं आता। टैक्स में छूटः इसके लिए आपको यात्रा में खर्च हुए बिल देने होते हैं। यात्रा के अलावा जो भी खर्च होता है, वह इसमें नहीं जुड़ता है। यह अमाउंट भी इन हैंड सैलरी का हिस्सा है। 

5. मेडिकल अलाउंस यह आपको मेडिकल कवर के रूप में दिया जाता है। कई बार जरूरत के मुताबिक कर्मचारी इस सेवा का इस्तेमाल कर लेते हैं, तो कई बार बिल दिखाकर पैसे रिंबर्स करा लेते हैं। ये आपको इन हैंड मिलता है, लेकिन कुछ कंपनियां इसे सालाना, जबकि कुछ महीने के आधार पर ही भुगतान करती हैं। 

6. परफॉर्मेंस बोनस और स्पेशल अलाउंस यह एक तरह से रिवॉर्ड है, जो कर्मचारियों प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। हर कंपनी की परफॉर्मेंस पॉलिसी अलग-अलग होती है। यह पूरी तरह टैक्सेबल होता है। यह आपकी इन हैंड सैलरी में ही जुड़ता है।

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