नई दिल्ली। सरकारी एवं निजी क्षेत्र में नौकरीपेशा लोगों की भविष्य की सुरक्षा के लिए सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ को अनिवार्य बनाया है। यह आपको नियमित निवेश, टैक्स सेविंग और भविष्य की सुरक्षा प्रदान करती है। वहीं PF खाते में निवेश करने पर आपको पेंशन का हक भी मिलता है। आपके वेतन से प्रोविडेंट फंड के रूप में कटने वाली रकम दो खातों में जमा होती है। इसमें पहला है प्रोविडेंट फंड यानी EPF और दूसरा है पेंशन फंड यानी EPS।
कटौती के तहत कर्मचारी के वेतन से कुल 12 प्रतिशत की कटौती होती है। इतनी ही राशि नियोक्ता कंपनी या संस्था कर्मचारी के EPF अकाउंट में जमा कराती है। इस कटौती का 3.67 प्रतिशत हिस्सा आपके EPF अकाउंट में जमा होता है, जबकि कटौती का 8.33 प्रतिशत हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में जमा होता है। EPS खाते में हर माह अधिकतम 1,250 रुपये की रकम ही जमा की जा सकती है।
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पेंशन के लिए ये हैं शर्तें
ईपीएफओ मेंबर्स को पेंशन पाने की हकदार बनने के लिए बिना किसी रुकावट के कम से कम अपने ईपीएफ अकाउंट में 10 साल योगदान देना होता है। कर्मचारियों को पेंशन तब मिलती है जब उनकी उम्र 58 साल या इससे अधिक हो जाती है। जब कर्मचारियों का ईपीएफ अकाउंट खुलता है तो इसके साथ ही इनका ईपीएस अकाउंट भी खुल जाता है, जिसमें नियोक्ता कंपनी या संस्था को कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 12% जमा कराना होता है। इस 12% में से 8.33% कर्मचारी के ईपीएस अकाउंट में जमा होता है, जबकि 3.67% ईपीएफ अकाउंट में जमा होता है।
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ईपीएस खाते में करना होता है कितना अंशदान
नियमों के मुताबिक ईपीएफ खाते में किए गए अंशदान का एक हिस्सा ईपीएस खाते में जाता है। यह अंशदान 6500 रुपये और 15000 रुपये प्रति महीने के वेतनमान के हिसाब से किया जाता है। अगर आप इस स्कीम में 1 सितंबर 2014 से पहले जुड़े हैं तो आपको 6500 रुपये प्रति महीने के वेतन के हिसाब से अंशदान करना होगा, जबकि अगर आप उसके बाद इस स्कीम से जुड़े हैं तो आपको 15000 रुपये प्रति माह की सैलरी पर अंशदान करना होगा।