Friday, March 21, 2025
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Mahakumbh 2025 Naga Sadhus: नागा साधु कैसे बनते हैं? इतने सालों तक देनी पड़ती है कठिन परीक्षा, जानें नागा बाबा से जुड़ी हर जरूरी बातें

Naga Sadhus: नागा साधुओं के लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं। तो आज यहां जानिए नागा बाबाओं के बारे में सबकुछ। नागा बनने के लिए किन कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है और कुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते हैं।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Vineeta Mandal Published : Jan 19, 2025 15:36 IST, Updated : Jan 19, 2025 15:37 IST
नागा साधु
Image Source : INDIA TV नागा साधु

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में नागा बाबाओं से लेकर कई बड़े और प्रमुख साधु-संत आते हैं। इतनी भारी संख्या में नागा साधु और संतों के दर्शन केवल महाकुंभ में ही हो पाते हैं। बाबाओं के दर्शन और आशीर्वाद के लिए देश-विदेश से लोग कुंभ मेला में आते हैं। बता दें कि कुंभ मेला में अमृत स्नान (शाही स्नान) का विशेष महत्व है। अमृत स्नान के दिन नागा बाबा और साधु-संत अपने शिष्यों के साथ भव्य जुलूस निकालते हुए संगम में गंगा स्नान करने जाते हैं।  अमृत स्नान कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण है, जिसके लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। कुंभ में हजारों की संख्या में नागा सन्यासी बनते हैं। तो आज हम नागा साधुओं के बारे में जानेंगे कि आखिर नागा बनने में कितना समय लगता है और इसके लिए किन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।

नागा साधु बनने के लिए कितना समय लगता है?

नागा साधु बनने के लिए 12 वर्ष का समय लगता है। नागा संप्रदाय में शामिल होने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य केवल लंगोट पहनते हैं और कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट भी त्याग देते हैं, तथा जीवनभर इसी अवस्था में रहते हैं।

4 नागा उपाधियां

चार प्रमुख कुंभों में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा कहा जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि साधु को किस कुंभ में नागा की उपाधि मिली है।

नागा के पद

दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर विभिन्न पद दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत, और सचिव प्रमुख पद होते हैं। सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।

सात अखाड़े ही नागा बनाते हैं

तेरह प्रमुख अखाड़ों में से सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं। ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।

नागा दिनचर्या

नागा साधु सुबह चार बजे उठकर नित्य क्रिया और स्नान करते हैं और फिर श्रृंगार करते हैं। इसके बा द हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया और नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करते हैं और फिर बिस्तर पर चले जाते हैं।

नागा श्रृंगार

 नागा 16 नहीं, बल्कि 17 श्रृंगार करते हैं। इनमें लंगोट, भभूत, चंदन, लोहे या चांदी के कड़े, अंगूठी, पंचकेश, कमर में माला, माथे पर रोली, कुंडल, चिमटा, डमरू, कमंडल, गुथी हुई जटाएं, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, और बाहों में रुद्राक्ष की मालाएं शामिल हैं।

नागा स्वभाव

इन श्रृंगारों के अलावा नागा बाबाओं की विशेषता यह है कि कुछ नरम दिल होते हैं तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। कुछ नागा साधुओं के रूप रंग इतने डरावने होते हैं कि उनके पास जाने में डर लगता है। महाकुंभ में आए नागा साधुओं का दिल बच्चों जैसा निर्मल होता है और ये अपने अखाड़ों में हमेशा धमा-चौकड़ी मचाते रहते हैं। इनके मठ में हमेशा अठखेलियां होती रहती हैं। महानिर्वणी, जूना और निरंजनी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा साधु होते हैं।

नागा वस्तुएं

 त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।

नागा अभिवादन मंत्र और इष्ट देव

नागा अभिवादन मंत्र- ॐ नमो नारायण है। नागा साधु केवल शिव के भक्त होते हैं और वे किसी अन्य देवता को नहीं मानते।

नागा का कार्य

नागा साधुओं का कार्य गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाओं का अभ्यास करना।

नागा इतिहास

सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की थी। उनके बाद शुकदेव ने और फिर कई ऋषि और संतों ने इस परंपरा को नया आकार दिया। पहला अखाड़ा अखंड आह्वान अखाड़ा 547 ई. में स्थापित हुआ। बाद में शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय की नींव रखी।

नाथ परंपरा

माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं हैं। नवनाथ की परंपरा सिद्धों की एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है। गुरु मत्स्येंद्रनाथ, गुरु गोरखनाथ, साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि इन परंपराओं के महत्वपूर्ण नाम हैं। घुमक्कड़ी नाथों की परंपरा बहुत प्रचलित रही है।

नागाओं की शिक्षा और दीक्षा

नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। इस परीक्षा को पास करने के बाद दीक्षा दी जाती है। इसके बाद की परीक्षा यज्ञोपवीत और पिंडदान की होती है जिसे बिजवान कहा जाता है। अंतिम परीक्षा दिगम्बर और श्रीदिगम्बर की होती है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी पहन सकते हैं, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है और उनकी इन्द्रियाँ तोड़ दी जाती हैं।

कहां रहते हैं नागा साधु

नागा साधु अधिकांश अपने अखाड़ों के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तपस्या के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में भी रहते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार वे पैदल भ्रमण भी करते हैं और इस दौरान किसी गांव के मेढ़ पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं।

महिला नागा साधु

नागा एक पदवी है और जब महिलाएं संन्यास में दीक्षा लेती हैं तो उन्हें भी नागा साधु बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं। जूना अखाड़े ने 'माई बाड़ा' को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान किया था और इन महिला साधुओं को 'माई', 'अवधूतानी' कहा जाता है। उन्हें किसी विशेष इलाके में प्रमुख के रूप में 'श्रीमहंत' का पद भी दिया जाता है।

हिमालय और आश्रम में रहते हैं नागा

नागा साधु अपने मठ, आश्रम और हिमालय की कंदराओं में रहते हैं और केवल कुंभ मेले में स्नान के दौरान ही वे सांसारिक दुनिया का दर्शन करते हैं।

नागा बेड़ा

नागा संन्यासियों के अखाड़े शंकराचार्य के पहले भी थे, लेकिन तब इन्हें 'अखाड़ा' नहीं कहा जाता था, बल्कि इन्हें 'बेड़ा' या साधुओं का जत्था कहा जाता था। 'नागा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'नागा' शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ 'पहाड़' है, और इस पर रहने वाले लोग 'नागा' कहलाते हैं।

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7:30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)

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