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Mahakumbh 2025 Akhada: कैसे और क्यों किया गया अखाड़ों का निर्माण? इसे बनाने के पीछे क्या थी असल वजह, जानें अखाड़ा का इतिहास

Mahakumbh 2025: कुंभ मेला में अखाड़ा का खास महत्व होता है। सभी अखाड़ों के इष्ट देव अलग-अलग होते हैं। तो आइए जानते हैं कि कुल कितने अखाड़ा है और इनका क्या महत्व है।

Edited By: Vineeta Mandal
Published : Jan 19, 2025 7:00 IST, Updated : Jan 19, 2025 9:59 IST
महाकुंभ 2025
Image Source : FILE IMAGE महाकुंभ 2025

Akhada: भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान रूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था, जब भारतीय जनमानस की स्थिति और दिशा बहुत अच्छी नहीं थी। भारत की संपत्ति के आकर्षण से अनेक आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ आक्रमणकारी भारत के खजाने को लेकर वापस चले गए, तो कुछ भारत की दिव्यता से इतने प्रभावित हुए कि यहीं बस गए। कुल मिलाकर, सामान्य शांति और व्यवस्था में विघ्न था। ईश्वर, धर्म, और धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्रों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।

ऐसे समय में, शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए, जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। ये थे गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा, आदिगुरू ने मठों और मंदिरों की संपत्ति लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरुआत की।

आदिगुरू शंकराचार्य को यह महसूस होने लगा था कि उस सामाजिक उथल-पुथल के युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से इन चुनौतियों का सामना करना पर्याप्त नहीं है। उन्होंने यह बल दिया कि युवा साधु अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए व्यायाम करें और हथियार चलाने में भी दक्षता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठ बने, जहां इस प्रकार के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, और ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन स्थानों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं। समय के साथ कई और अखाड़े अस्तित्व में आए।

शंकराचार्य ने अखाड़ों को यह सलाह दी कि मठों, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए यदि आवश्यकता हो, तो शक्ति का प्रयोग करें। इस प्रकार बाहरी आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण के समय नागा योद्धा साधुओं की मदद लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवमयी युद्धों का उल्लेख मिलता है, जिनमें 40,000 से अधिक नागा योद्धाओं ने भाग लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय, नागा साधुओं ने उसकी सेना का सामना कर गोकुल की रक्षा की।

भारत की आजादी के बाद, इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र छोड़ दिया। इन अखाड़ों के प्रमुखों ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और पालन करते हुए संयमित जीवन जीएं। इस समय 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें प्रत्येक के शीर्ष पर महंत आसीन होते हैं। इन प्रमुख अखाड़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।

1. श्री निरंजनी अखाड़ा

यह अखाड़ा 826 ईस्वी में गुजरात के मांडवी में स्थापित हुआ था। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकस्वामी हैं। इसमें दिगम्बर, साधु, महंत और महामंडलेश्वर होते हैं। इसकी शाखाएं प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर और उदयपुर में हैं।

2. श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा

यह अखाड़ा 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं, तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया की निगाहें उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए रुक जाती हैं।

3. श्री महानिर्वाण अखाड़ा

यह अखाड़ा 671 ईस्वी में स्थापित हुआ था, कुछ लोग इसे बिहार-झारखंड के बैजनाथ धाम से उत्पन्न मानते हैं, जबकि कुछ इसका जन्म स्थान हरिद्वार के नील धारा के पास मानते हैं। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इस अखाड़े की शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में हैं। इतिहास में 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22,000 नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारियों से छुड़ाया था। उज्जैन स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग पर नित्य प्रति इस अखाड़े के पुरी नामा नागा साधु भस्म चढ़ाते हैं।

4. श्री अटल अखाड़ा

यह अखाड़ा 569 ईस्वी में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित हुआ। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है, लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में भी हैं।

5. श्री आह्वान अखाड़ा

यह अखाड़ा 646 में स्थापित हुआ और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसका आश्रम ऋषिकेश में भी है। स्वामी अनूपगिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।

6. श्री आनंद अखाड़ा

यह अखाड़ा 855 ईस्वी में मध्यप्रदेश के बेरार में स्थापित हुआ था। इसका केंद्र वाराणसी में है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में भी हैं।

7. श्री पंचाग्नि अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्य चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रहमचारी, साधु और महामंडलेश्वर होते हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।

8. श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा

यह अखाड़ा 866 ईस्वी में अहिल्या-गोदावरी संगम पर स्थापित हुआ। इसके संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनका मुख्य दैवत गोरखनाथ है और इसमें बारह पंथ हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और इनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।

9 श्री वैष्णव अखाड़ा

यह बालानंद अखाड़ा 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ। समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था। 1848 तक शाही स्नान त्र्यंबकेश्वर में ही हुआ करता था, परंतु 1848 में शैव और वैष्णव साधुओं के बीच पहले स्नान कौन करें इस मुद्दे पर झगड़े हुए। श्रीमंत पेशवाजी ने यह विवाद सुलझाया और उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के पास चक्रतीर्था पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करते हैं। आज भी यह स्नान नासिक में ही होता है।

10. श्री पंचायती उदासीन बड़ा अखाड़ा

यह अखाड़ा 1910 में स्थापित हुआ। इसके संस्थापक श्री चंद्राचार्य उदासीन हैं। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इनमें उदासीन साधु, महंत और महामंडलेश्वर की संख्या ज्यादा है। इसकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल और मद्रास में हैं।

11. श्री उदासीन नया अखाड़ा

यह अखाड़ा 1710 में स्थापित हुआ। इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ साधुओं ने विभक्त होकर स्थापित किया। इसके प्रवर्तक महंत सुधीरदासजी थे। इसकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।

12.  श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा

यह अखाड़ा 1784 में स्थापित हुआ। 1784 में हरिद्वार कुंभ मेले के समय एक बड़ी सभा में विचार विमर्श करके श्री दुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की। इनकी इष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रंथ साहिब है। इसमें सांप्रदायिक साधु, महंत और महामंडलेश्वर की संख्या बहुत है। इसकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।

13.  निर्मोही अखाड़ा

निर्मोही अखाड़ा की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इसके मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। पुराने समय में इसके अनुयायियों को तीरंदाजी और तलवारबाजी की शिक्षा भी दी जाती थी। कहा जाता है कि प्राचीन काल में लोमश नाम के ऋषि थे जिनकी आयु अकिंत होती थी। आचार्य लोमश ऋषि ने भगवान शंकर के कहने पर सबसे पहले तंत्र शास्त्र पर आधारित आगम मठ की स्थापना की, जो विश्व में सबसे प्राचीन है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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