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Sindoor Khela Utsav: हिंदू धर्म में नवरात्रि और दुर्गा पूजा का बेहद खास महत्व होता है। इन दिनों शक्ति की आराधना करके साधक उन्हें प्रसन्न करते हैं। नौ दिनों में माता रानी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।
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नवरात्रि के आखिरी दिन विजय दशमी के साथ ही इस महापर्व की समाप्ति होती है। विजयादशमी का पर्व पूरे दिन देश में अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
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वहीं, इस दिन बंगाल, उड़ीसा, बिहार समेत देश के कई राज्यों में सिंदूर खेला की परंपरा मां दुर्गा की विदाई के समय निभाई जाती है। लेकिन क्या आपको पता है यह परंपरा कब से चली आ रही है? चलिए जानते हैं इस अद्भुत परंपरा के बारे में...
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सिंदूर खेला बंगाल की बहुत ही पुरानी परंपरा है। इसकी शुरुआत विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की आराधना और उन्हें सिंदूर अर्पित कर करती हैं। इसके बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
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इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत, सोमवार, 22 सितंबर को हुई, जिसका समापन 2 अक्टूबर, गुरुवार को विजयदशमी के साथ होगा। इसी दिन सिंदूर खेला का आयोजन होगा।
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नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्र का पावन पर्व अब खत्म होने वाला है। देशभर में भर में इस त्योहारों की धूम देखने को मिलती है, लेकिन पूरे बंगाल में इन दिनों एक अलग ही रौनक होती है। यहां नवरात्र में दुर्गा पूजा के रूप में मनाए जाने वाले पर्व की शुरुआत पंचमी से होती है, जिसकी दशमी पर समाप्ति होती है।
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बंगाल के धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर खेला परंपरा की शुरुआत लगभग 450 साल पहले पश्चिम बंगाल में हुई थी। ऐसी मान्यता है कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में 10 दिनों के लिए मां दुर्गा अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।
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वहीं, दसवे दिन माता रानी विदा होती हैं। ऐसे में विजयादशमी पर विदाई देने से पहले महिलाएं उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं। इस उत्सव को ही सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है।
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दुर्गा विसर्जन के दिन पूजा-आरती के बाद मां को भोग अर्पित किया जाता है। देवी दुर्गा की प्रतिमा के सामने एक शीशा रखते हैं, जिसमें मां के शुभ चरणों के दर्शन होते हैं। इसके बाद सिंदूर खेला उत्सव की शुरुआत होती हैं। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं।