Sunday, April 28, 2024
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2017: जानें, 2016 के मुकाबले इस साल कैसा रहा जम्मू-कश्मीर का हाल

राज्य के लिए 2017 की सबसे महत्वपूर्ण घटना श्रीनगर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान हुई भीषण हिंसा के बाद अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव का रद्द होना थी...

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: December 29, 2017 14:09 IST
Representational Image | PTI Photo- India TV Hindi
Representational Image | PTI Photo

श्रीनगर: उथल-पुथल से भरे वर्ष 2016 के मुकाबले कश्मीर के लिए गुजरता साल कुछ शांत-सा रहा लेकिन राज्य के स्थायी निवासियों से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 35-ए को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती सहित अन्य कानूनी चुनौतियां राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहीं। हालांकि, राज्य के लिए 2017 की सबसे महत्वपूर्ण घटना श्रीनगर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान हुई भीषण हिंसा के बाद अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव का रद्द होना थी। इस हिंसा में 9 लोग मारे गये थे जबकि कई अन्य लोग घायल हो गए थे।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद महबूबा मुफ्ती ने पिछले वर्ष अप्रैल में राज्य सरकार की कमान संभाली, जिसके कारण अनंतनाग लोकसभा सीट खाली हो गयी थी। घाटी में 2016 में शुरू हुई हिंसा की आंच अभी ठंडी नहीं पड़ी थी, ऐसे में PDP-BJP गठबंधन वाली राज्य सरकार तुरंत उपचुनाव के पक्ष में नहीं थी। लेकिन निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी, और बाद में उसका यह फैसला सभी मोर्चों पर विनाशकारी साबित हुआ। श्रीनगर लोकसभा सीट पर 9 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव से पहले हालात को ध्यान में रखते हुए, एक दिन पहले ही इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयी थीं। लेकिन उपचुनाव के लिए मतदान खत्म होने तक हिंसा में 8 लोग मारे जा चुके थे, एक व्यक्ति ने कुछ दिन बाद में दम तोड़ा।

2014 में लोकसभा चुनाव हारने वाले नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने उपचुनाव में PDP के नजीर अहमद खान को 10,000 से ज्यादा वोटों से हराया। चुनाव में पड़े महज 88,951 वोटों (7 प्रतिशत) को देखते हुए यह मतांतर बहुत ज्यादा था। श्रीनगर में मतदान के एक दिन बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के भाई तसदुक हुसैन मुफ्ती ने निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया कि घाटी में हालात सुधरने तक वह अनंतनाग लोकसभा सीट पर उपचुनाव स्थगित कर दें। शुरूआत में आयोग ने उपचुनाव को एक महीने के लिए आगे बढ़ाया लेकिन बाद में चुनाव रद्द कर दिया गया। 

वर्ष 1991 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब घाटी में हिंसा और हिंसा भड़कने की आशंका के कारण कश्मीर में चुनाव नहीं हुए। 1991 में उग्रवाद के कारण पूरे जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव ही नहीं हुए थे। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पथराव के मामलों, विशेष रूप से युवाओं द्वारा आतंकवाद विरोधी अभियान को अवरूद्ध किए जाने को लेकर जांच शुरू की। एजेंसी ने वरिष्ठ अलगाववादी नेता नईम खान द्वारा कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए पैसा मिलने की बात कैमरे पर स्वीकार किये जाने के बाद यह जांच शुरू की। एजेंसी ने जांच के दौरान हवाला मामलों में कथित संलिप्तता के आरोप में खान, कुछ अन्य अलगाववादी नेताओं और कुछ उद्योगपतियों को गिरफ्तार किया। NIA ने खास तौर से श्रीनगर और पाकिस्तानी कब्जे वाले मुजफ्फराबाद के बीच व्यापार करने वाले कई उद्योगपतियों की जांच की थी।

हालांकि, इस पूरी उठा-पटक के दौरान तसदुक मुफ्ती के राजनीतिक करियर की शुरूआत कुछ दिनों के लिए टल गई। हालांकि राजनीति और सरकार के साथ वह जुड़े रहे और मई में उन्हें मुख्यमंत्री शिकायत प्रकोष्ठ का समन्वयक नियुक्त किया गया। PDP ने तसादुक को MLC नियुक्त किया जिसे राज्यपाल एन. एन. वोहरा ने मंजूरी दे दी। कल उन्हें महबूबा मुफ्ती की कैबिनेट में जगह दी गयी। चुनावी दिक्कतों का माहौल अभी कुछ सुधरा ही था कि घाटी में सुरक्षा बलों को खराब छवि में पेश करने वाले कुछ वीडियो सामने आए जिन्हें लेकर राष्ट्रीय स्तर की बहस शुरू हो गई।

इनमें से एक वीडियो था, 9 अप्रैल को सेना के एक अधिकारी ने एक युवक को जीप की बोनट से बांधकर करीब 20 से ज्यादा गांवों में मानव ढाल की तरह उसका इस्तेमाल किया। उक्त युवक वोट डालने के बाद किसी की अंतिम यात्रा में शामिल होने जा रहा था। इस घटना के बाद सेना के एक पूर्व प्रमुख ने यहां तक कह दिया कि ‘पथराव करने वाले एक युवक को मानव ढाल के रूप में जीप के सामने बांधने वाली यह छवि भारतीय सेना और देश को हमेशा परेशान करेगी।’ वर्ष 2017 में ही जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों को विशेषाधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35-ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिये जाने का मामला भी सुर्खियों में रहा।

इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के बाहर से आने वाले लोग राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकते। सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में जल्दी ही फैसला सुनाने वाला है और यदि न्यायालय ने इस कानून को रद्द कर दिया तो घाटी में बहुत हंगामा होने की आशंका है। इसके अलावा वर्ष 2017 में सबसे महत्वपूर्ण खबर केन्द्र सरकार द्वारा खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा की विशेष वार्ताकार के रूप में नियुक्ति रही।

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