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जन्मदिन विशेष: हिंदी काव्य की नई धारा के प्रवर्तक थे सुमित्रानंदन पंत

'छायावादी युग' के चार प्रमुख स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत हिंदी काव्य की नई धारा के प्रवर्तक थे।

IANS
Published on: May 19, 2017 20:07 IST
Sumitranandan pant- India TV Hindi
Sumitranandan pant

नई दिल्ली: 'छायावादी युग' के चार प्रमुख स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत हिंदी काव्य की नई धारा के प्रवर्तक थे। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', पंत और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत परंपरावादी आलोचकों के सामने कभी झुके नहीं। वह ऐसे साहित्यकारों में शुमार हैं, जिनके काव्य में प्रकृति-चित्रण समकालीन कवियों में सबसे अच्छा था। पंत ने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर भी कई रचनाएं कीं। 

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गांव में हुआ था। इनके जन्म के छह घंटे बाद ही इनकी माता का निधन हो गया। बचपन में उन्हें सब 'गुसाईं दत्त' के नाम से जानते थे। माता के निधन के बाद वह अपनी दादी के पास रहते थे। सात साल की उम्र में जब वह चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। सन् 1917 में पंत अपने मंझले भाई के साथ काशी आ गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। यहां से उन्होंने माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। 

उन्हें अपना नाम गुसाईं दत्त पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। काशी के क्वींस कॉलेज में कुछ दिन शिक्षा लेकर वह इलाहाबाद चले गए और वहां के म्योर कॉलेज में पढ़ने लगे। वह इलाहाबाद में कचहरी के पास एक सरकारी बंगले में रहते थे। उन्होंने इलाहाबाद आकाशवाणी के शुरुआती दिनों में सलाहकार के रूप में भी काम किया। 

पंत की रचनाशीलता गति पकड़ती चली गई। सन् 1918 के आसपास वह हिंदी की नवीन धारा के प्रवर्तक के रूप में पहचाने जाने लगे। 1926-27 में उनका पहला काव्य संकलन 'पल्लव' प्रकाशित हुआ। कुछ समय बाद वह अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोड़ा आ गए। इसी दौरान वह कार्ल मार्क्‍स और फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आए। सन् 1938 में उन्होंने 'रूपाभ' नामक मासिक पत्र निकाली। 

'वीणा' और 'पल्लव' में संकलित उनके छोटे गीत उनके अनूठे सौंदर्यबोध की मिसाल हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, नाटक और निबंध शामिल हैं। उनकी सबसे कलात्मक कविताएं 'पल्लव' में ही संकलित है, जो 1918 से 1925 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है। 

हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें वर्ष 1961 में पद्मभूषण, 1968 में ज्ञानपीठ व साहित्य अकादेमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे सम्मानों से अलंकृत किया गया। सुकोमल कविताओं के रचयिता सुमित्रानंदन पंत ने 27 दिसंबर, 1977 को इस संसार को अलविदा कह दिया।

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