Thursday, March 28, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: क्यों बेहद जरूरी है वैक्सीन की बर्बादी को रोकना

एक ऐसे समय में जब पूरे देश में चल रहे टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए कोरोना वैक्सीन की लाखों डोज की जरूरत है, मैं राजस्थान में बड़े पैमाने पर हो रही टीके की बर्बादी को देखकर हैरान हूं।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 04, 2021 17:49 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

एक ऐसे समय में जब पूरे देश में चल रहे टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए कोरोना वैक्सीन की लाखों डोज की जरूरत है, मैं राजस्थान में बड़े पैमाने पर हो रही टीके की बर्बादी को देखकर हैरान हूं। गुरुवार की रात को अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने दिखाया कि कैसे राजस्थान में टीकाकरण केंद्रों में वैक्सीन की डोज से थोड़ी-बहुत या आधी भरी हुई वायल्स को कूड़ेदान में फेंक दिया गया था।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने अब राजस्थान के हेल्थ मिनिस्टर को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वैक्सीन की बर्बादी पर तुरंत अंकुश लगाया जाए। उन्होंने उन मीडिया रिपोर्ट्स की ओर इशारा किया जिनमें कहा गया था कि राजस्थान के 8 जिलों में 35 कोविड टीकाकरण केंद्रों में कुल मिलाकर वैक्सीन की 500 से भी ज्यादा वायल्स कूड़ेदान से बरामद की गई थीं। भास्कर अखबार ने बताया कि कई शीशियों में 20 से 75 प्रतिशत तक वैक्सीन भरी हुई थी, जिससे करीब 2,500 लोगों का टीकाकरण हो सकता था। अखबार के मुताबिक, चुरू जिले में 39 प्रतिशत, हनुमानगढ़ जिले में 29 प्रतिशत और भरतपुर एवं कोटा जिलों में 17-17 प्रतिशत वैक्सीन की बर्बादी हुई। बूंदी, दौसा, अजमेर और जयपुर जिलों में भी वैक्सीन की ऐसी ही बर्बादी देखी गई। पहले तो राजस्थान सरकार ने वैक्सीन की बर्बादी की बात से इनकार किया, लेकिन वीडियो और तस्वीरें कुछ और ही हकीकत बता रही थीं।

राजस्थान में आधी इस्तेमाल हुई वैक्सीन की वायल्स (शीशियां) को या तो कूड़ेदान में फेंक दिया गया, या जमीन के 12 फीट नीचे दफना दिया गया या जला दिया गया ताकि बर्बादी का कोई सबूत ही न बचे। हमारे संवाददाता मनीष भट्टाचार्य जयपुर से करीब 280 किलोमीटर दूर पाली जिले में गए थे। उन्हें कोट खिराना के सामुदायिक केंद्र के कूड़ेदान में फेंकी गई वैक्सीन की ऐसी वायल्स मिलीं जिनमें अभी भी कई डोज थी। इनमें से कुछ वायल्स थोड़ी-बहुत तो कुछ आधी तक भरी हुई थीं जिनसे कई लोगों को टीका लगाया जा सकता था। एक वायल के अंदर तो टीके की लगभग 80 प्रतिशत खुराक बची थी, जिससे 10 लोगों का टीकाकरण हो सकता था। इससे मुश्किल से 4 या 5 लोगों को टीका लगाया गया और इसके बाद वायल को फेंक दिया गया।

मैं यह देखकर स्तब्ध रह गया कि आधी भरी हुई वैक्सीन वायल्स को फेंक दिया गया। एक ऐसे वक्त में जब लाखों लोगों को CoWin पोर्टल पर अपना नाम रजिस्टर करने में मुश्किल आ रही है, टीका लगवाने की अपनी बारी के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा है, पाली में वैक्सीन कूड़ेदान में फेंकी जा रही है। रायपुर वैक्सीनेशन सेंटर में डॉक्टर ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि वायल खुलने क बाद 4 घंटे के अंदर ही वैक्सीन का इस्तेमाल करना होता है, और यदि 4 घंटों में 10 लोग वैक्सीन लगवाने नहीं आते तो बची हुई वैक्सीन को फेंकना पड़ता है। इस वैक्सीनेशन सेंटर पर वैक्सीन से आधी भरी हुई कई वायल्स को बाद में डिस्पोज करने के लिए ‘कोल्ड पॉइंट’ बॉक्स में रखा जा रहा था।

स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल की बात करें तो वैक्सीनेशन का एक सेशन खत्म होने के बाद वैक्सीन की सारी वायल्स को वापस कोल्ड चेन पॉइंट पर लाना होता है। वायल में वैक्सीन हो या न हो, थोड़ी बची हो या ज्यादा हो, उसे जमा करना जरूरी है। इसके बाद इन वायल्स को ऑटोक्लेविंग और माइक्रोवेविंग के जरिए डिस्पोज किया जाता है। ऑटोक्लेविंग में वैक्सीन की इन शीशियों को 10 मिनट के लिए गर्म पानी में उबाला जाता है, और फिर आधे घंटे के लिए 1 पर्सेंट सोडियम हाइपोक्लोराइट के घोल में रखने के बाद इनका केमिकल ट्रीटमेंट किया जाता है। यदि किसी जिले में ऐसी कोई सुविधा नहीं है, तो एक सेफ्टी पिट यानी कि गहरा गड्ढा खोदकर इन शीशियों को डिस्पोज कर दिया जाता है। चूंकि पाली में कोई कॉमन ट्रीटमेंट फैसिलिटी नहीं है, इसलिए वैक्सीन की बची हुई वायल्स को ट्रीटमेंट और डिस्पोजल के लिए जोधपुर भेजा जाता है।

हमारे रिपोर्टर्स ने पाया कि कई डॉक्टरों और नर्सों को वैक्सीन की ये बर्बादी कोई बड़ी बात नहीं लग रही थी। इन स्वास्थ्यकर्मियों के मुताबिक, ज्यादातर वैक्सीनेशन सेंटर्स में वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों की पर्याप्त संख्या नहीं हो पाती, और वायल्स में वैक्सीन की थोड़ी-बहुत डोज बचे होने के बावजूद उन्हें फेंकना पड़ता है। हालांकि जैसलमेर में मामला इसके ठीक विपरीत निकला, जहां हेल्थ टीम की मुस्तैदी और संवेदनशीलता के चलते वैक्सीन की एक भी डोज बर्बाद नहीं हुई। जैसलमेर के स्वास्थ्यकर्मियों ने जिम्मेदारी से काम लिया, वैक्सीन की हर बूंद की कीमत को समझा। कई वैक्सीनेशन सेंटर्स पर तो यहां के स्वास्थ्यकर्मियों ने वायल्स में दी गई एक्स्ट्रा डोज का भी इस्तेमाल कर लिया।

मैं जैसलमेर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और हेल्थ वर्कर्स की तारीफ करना चाहूंगा जिन्होंने वैक्सीन की एक-एक डोज का ख्याल रखा। वहीं, पाली, चुरु, हनुमानगढ़ और कोटा में वैक्सीन का मैनेजमेंट ठीक तरह से नहीं हुआ और सैकड़ों डोज बर्बाद हो गईं। पहले तो सूबे के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा इस बर्बादी पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे, लेकिन केंद्र सरकार के दखल के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वादा किया है कि वह वैक्सीन का ऑडिट करवाएंगे।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हमारी संवाददाता रुचि कुमार जियामऊ और मल्हौर के वैक्सीनेशन सेंटर्स पर गईं। इन टीकाकरण केंद्रों की नर्सों और ANMs ने बताया कि वे वैक्सीन की वायल तभी खोलती हैं जब वैक्सीन लगवाने के लिए कम से कम 5 लोग मौजूद होते हैं। वहीं, शाम 4 बजे के बाद वायल खोलते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि वैक्सीनेशन सेंटर पर कम से कम 7-8 लोग जरूर हों।

बिहार में भी वैक्सीन की बर्बादी को रोकने पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। रक्सौल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के वैक्सीनेशन इंचार्ज ने बताया कि वे वैक्सीन की बर्बादी को रोकने की पूरी कोशिश करते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार काफी इंतजार करने के बाद भी 10 लोग नहीं हो पाते, और वैक्सीनेशन के लिए बैठे लोग और इंतजार करने से मना कर देते हैं, हंगामा करने लगते हैं, तो फिर मजबूरी में वैक्सीन का वायल खोलना पड़ता है। इस स्थिति में वैक्सीन के एक-दो डोज बर्बाद हो जाते हैं। पंजाब के मोहाली फेज 3 वैक्सीनेशन सेंटर पर हमारे रिपोर्टर पुनीत परिंजा को बताया गया कि यहां स्वास्थ्यकर्मी वायल तभी खोलते हैं जब कम से कम 10 लोग वहां मौजूद हों। वायल खोलने का डेट और टाइम बॉक्स पर लिखा होता है, ताकि अगली शिफ्ट के लोगों को आसानी से हैंडओवर किया जा सके।

इन सारी ग्राउंड रिपोर्ट्स को देखने के बाद एक बात तो साफ है कि वैक्सीन की बर्बादी को रोकने के लिए थोड़ी समझदारी की जरूरत है। राजस्थान में हुई वैक्सीन की बर्बादी अस्वीकार्य है। वैक्सीन लगवाने के लिए इंतजार कर रही एक बड़ी आबादी को देखते हुए इसे किसी अपराध से कम नहीं माना जाना चाहिए। सबसे बढ़िया वैक्सीन मैनेजमेंट केरल में देखने को मिला था, जहां स्वास्थ्यकर्मियों ने वायल्स में मौजूद वैक्सीन का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करके उम्मीद से कहीं ज्यादा लोगों को टीका लगा दिया।

आप पूछ सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? असल में एक वायल में 10 लोगों की डोज होती है, लेकिन वैक्सीन निर्माता इसमें थोड़ी ज्यादा मात्रा में वैक्सीन डाल देते हैं। औसतन, एक वायल में 11 डोज होती हैं, क्योंकि बर्बादी का थोड़ा-बहुत मार्जिन रखा जाता है। केरल में वैक्सीन की एक-एक बूंद का इस्तेमाल किया जाता था और हर वायल से 10 की बजाय 11 लोगों को टीका लगाया जाता था। 4 घंटे की समय सीमा के अंदर यदि सिर्फ 4 या 5 लोगों को डोज लगाया जाता है तो बाकी की वैक्सीन बर्बाद हो जाती है।

इसलिए मैं डॉक्टरों और नर्सों सहित सभी स्वास्थ्यकर्मियों से अपील करता हूं कि वे यह सुनिश्चित करें कि वैक्सीन की एक भी डोज बर्बाद न हो। उनके हाथ में उन लाखों भारतीयों की जिंदगियां हैं जिन्हें इस जानलेवा वायरस से सुरक्षा की जरूरत है। ये टीके उनका 'सुरक्षा कवच' हैं। यदि वे वैक्सीन की अनावश्यक बर्बादी को रोकते हैं तो देश हमेशा इन स्वास्थ्यकर्मियों का आभारी रहेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 03 जून, 2021 का पूरा एपिसोड

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