Friday, April 26, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: सामूहिक टीकाकरण अभियान ही कोरोना महामारी का एकमात्र रामबाण उपाय

ब्राजील के एक शहर सेरेना में सारे एडल्टस को वैक्सीन लगा दी गई है, जिसके बाद यहां कोरोना से मरने वालों की संख्या में 95 प्रतिशत की गिरावट आई है।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 02, 2021 17:37 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

देश में कोरोना वैक्सीनेशन के अभियान को गति देने की दिशा में केंद्र सरकार ने अहम कदम उठाया है। सरकार की ओर से कहा गया है कि अमेरिका से आयात किए जाने वाले फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को कुछ रियायतें, खासतौर से क्षतिपूर्ति देने में कोई समस्या नहीं है। इन वैक्सीन के निर्माताओं ने सरकार से इस बात की मंजूरी मांगी थी कि वह क्षतिपूर्ति और अप्रूवल के बाद लोकल ट्रायल से छूट दे।  देश के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने कहा है कि अगर किसी वैक्सीन को अन्य देशों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से मंजूरी मिली हुई है उसे भारत में ब्रिज ट्रायल की जरूरत नहीं होगी। अब सरकार के इस कदम से भारत में फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन के आयात में तेजी आएगी।

उधर, बुधवार को देशभर में कोरोना के 1,32,788 नए मामले सामने आए, जबकि 2,31,456 लोग डिस्चार्ज किए गए। वहीं इस घातक संक्रमण से पिछले 24 घंटे में 3207 लोगों की मौत हो गई। मंगलवार को रूस से स्पुतनिक वी वैक्सीन की एक और खेप हैदराबाद पहुंची। इस खेप में वैक्सीन की 30 लाख डोज है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने जून में कोविशील्ड की 10 करोड़ डोज देने का वादा किया है। भारत बायोटेक ने भी कोवैक्सिन का उत्पादन बढ़ाया है। भारत बायोटेक ने जुलाई महीने में कोवैक्सीन की रोजाना एक करोड़ डोज का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन मुझे शक इस बात का है कि जितनी वैक्सीन होगी, क्या वैक्सीन लगवाने वाले भी उतने होंगे? ये शक इसलिए है क्योंकि अभी भी बड़े पैमाने पर गांव में वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में शक है। हमारे रिपोर्टर्स को देश के विभिन्न हिस्सों से जो ग्राउंड रिपोर्ट मिली वह इस बात की ओर इशारा करती है कि आम लोगों के मन में वैक्सीनेशन को लेकर डर है।

हमारे रिपोर्टर लखनऊ से 10 किलोमीटर दूर अमराई गांव गए जहां का एक भी ग्रामीण वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं था। इनमें से ज्यादातर लोगों ने कहा कि वैक्सीन लगाने से मर जाएंगे, तो वैक्सीन क्यों लगवाएं? जब उनसे ये पूछा गया कि ये किसने कहा, कहां से पता लगा? ज्यादातर लोगों ने तो कह दिया कि सुना है। लेकिन एक-दो लोग मिले, जिन्होंने अपना फोन आगे बढ़ा दिया और कहा कि इस फोन में मैसेज आया है। लखनऊ के ही KGMC में वैक्सीन लगवाने के बाद सौ से ज्यादा डॉक्टर्स कोरोना पॉजिटिव हो गए। इस मैसेज में वैक्सीन लेने के बाद किसी डॉक्टर के मरने का कोई जिक्र नहीं था। सच्चाई ये है कि कोविड पॉजिटिव होन के बाद अधिकांश डॉक्टर स्वस्थ हो गए थे लेकिन इस बात को लोगों के बीच सही ढंग से प्रसारित नहीं किया गया। गांववालों को किसी ने यह नहीं बताया कि अगर ये डॉक्टर कोरोना की वैक्सीन नहीं लेते तो उनकी मौत भी हो सकती थी।

भोपाल से 10 किमी दूर एक गांव में हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ को ग्रामीणों ने ऐसे व्हाट्सएप मैसेज दिखाए, जिसमें दिल्ली, औरंगाबाद, नागपुर और मुंबई के डॉक्टरों के नाम, फोटो और डिग्री थे। इसमें ये दावा किया गया था कि 18 साल से ऊपर के वो लोग जिनकी शादी नहीं हुई है, अगर वो वैक्सीन लगवाएंगे तो वे अपना पौरूष खो देंगे। ये चेतावनी 18 साल से अधिक उम्र की युवतियों को भी दी गई थी कि अगर वे टीका लगवाती हैं तो वे कभी बच्चों को जन्म नहीं दे पाएंगी। इन सभी डॉक्टर्स का पता लगाने की कोशिश की गई तो इनमें से दो डॉक्टर कैमरे के सामने आए। उन्होंने बताया कि इस मैसेज के बारे में उन्हें पहले से पता है। उन्होंने इस दावे को भी पूरी तरह से खारिज नहीं किया। डॉक्टर साहब ने कहा कि फोटो उनकी परमीशन के बिना लगाई गई। इन डॉक्टर्स का बैकग्राउंड चेक किया गया तो इंटरनेट पर इनका पूरा कच्चा चिट्ठा सामने आ गया। दरअसल 5 डॉक्टर वैक्सीन आने से पहले ही सोशल मीडिया पर वैक्सीन के खिलाफ मुहिम शुरू कर चुके थे। ऐसे डॉक्टर्स के खिलाफ एक्शन होना चाहिए। क्योंकि इस तरह के लोग खुद को डॉक्टर भी कहते हैं और कोरोना के खिलाफ जंग को कमजोर करते हैं। वैक्सीनेशन के मुद्दे पर लोगों को गुमराह करते हैं।

अब आपको एक और हैरान करने वाली बात बताता हूं। एक और मैसेज व्हाट्सएप पर सर्कुलेट हो रहा है। इसमें नोबल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक ल्यूक मॉन्टेनियर का नाम लेकर दावा किया गया कि जिसने भी वैक्सीन लगवाई है वे सब दो साल के अंदर मर जाएंगे। आपको बता दें कि ल्यूक मॉन्टेनियर फ्रांस के मशहूर वाइरोलोजिस्ट हैं। इन्होंने 1983 में एक और वैज्ञानिक के साथ मिलकर HIV ( Human Immuno deficiency Virus) का पता लगाया था और 2008 में मेडिसिन के क्षेत्र में काम के लिए इऩ्हें नोबल प्राइज मिल चुका है। जब इस मैसेज की तहकीकात की तो अलग ही बात सामने आई। असल में ये बात सही है कि ल्यूक मॉन्टेनियर ने मास वैक्सीनेशन का विरोध जरूर किया था लेकिन उन्होंने किसी भी इंटरव्यू में ये नहीं कहा कि वैक्सीन लगाने वाले इंसान की मौत दो साल के भीतर हो जाएगी।

दरअसल पूरी दुनिया में वैक्सीनेशन के मुद्दे पर ल्यूक से सवाल पूछे गए थे और ये इंटरव्यू फ्रेंच में था। इस इंटरव्यू का इंग्लिश में ट्रांसलेशन किया गया। उसमें कहा गया कि ल्यूक ने वैक्सीनेशन को दुनिया के लिए खतरनाक बताया था। मॉन्टेनियर का सिद्धांत जो कि विवादित भी है, वह यह है कि वैक्सीन म्यूटेंट को बढ़ा रही और इस कड़ी में एडीई (antibody-dependant enhancement) की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित लोगों में गंभीर इंफेक्शन का खतरा हो रहा है। मॉन्टेनियर ने कहीं ये नहीं कहा कि जिन लोगों ने कोविड का टीका लिया है, वे अगले दो वर्षों में मर जाएंगे। भोले-भाले ग्रामीणों के मन में वैक्सीन के प्रति शक पैदा करने के लिए इस तरह की बात जोड़ दी गई।

इस तरह के मैसेज से डर सिर्फ गांवों में नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली में भी लोगों ने कहा कि दुनिया का इतना बड़ा सांइटिस्ट कह रहा है कि वैक्सीन मौत का फरमान है तो क्या वो झूठ बोल रहा है? एक लड़के ने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के.के. अग्रवाल का नाम लेते हुए कहा कि उनके जैसे बड़े डॉक्टर ने वैक्सीन की दोनों डोज ली थी और उनकी मौत हो गई तो फिर हम वैक्सीन क्यों लें? किसी ने उस लड़के को यह बताने की कोशिश नहीं की कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी शरीर की रक्षा करने के लिए एंटी-बॉडीज बनने में कम से कम 3 महीने लगते हैं।

मंगलवार की रात 'आज की बात' शो में मैंने एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया से वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट के मुद्दे पर बात की। डॉ. गुलेरिया ने समझाया कि लोगों जिंदगी बचाने के लिए वैक्सीनेशन क्यों जरूरी है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन की डोज से शरीर को कोई नुकसान नहीं है। वैक्सीन इम्यूनिटी बढ़ाएगी। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि वैक्सीनेशन वजह से मौत या नपुंसकता का एक भी मामला सामने नहीं आया है। वहीं कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका के बारे में उन्होंने कहा कि अगर देशभर में लोग कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करेंगे तो फिर तीसरी लहर नहीं आ सकती है। उन्होंने कहा कि अगर इस साल के अंत तक भारत की आधी से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन हो जाता है तो यह सभी के लिए वरदान होगा।

वैक्सीनेशन होने से क्या फायदा होता है इसका उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूं। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में ब्राजील शामिल है। यहां मार्च के अंत तक कोरोना से 4.05 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी। रोजाना होनेवाली मौतों का औसत तीन हजार से ज्यादा थी। ब्राजील का एक शहर है सेरेना जहां की कुल आबादी 45 हज़ार है। यहां पर सारे एडल्टस को वैक्सीन लगा दी गई है। नतीजा ये हुआ कि कोरोना से मरने वालों की संख्या में 95 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि इंफेक्शन के मामले में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। जनवरी में इस शहर में 706 मामले थे जो कि घटकर 235 पर आ गए हैं। यहां के लोगों को चीन की सीनेवैक नाम की वैक्सीन लगाई गई है।

अब मैं आपको दिल्ली के बारे में बताता हूं जहां करीब 2 करोड़ लोग रहते हैं। इनमें से 54 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगाई जा चुकी है। लॉकडाउन और वैक्सीनेशन का असर ये हुआ है कि दिल्ली के सबसे बड़े कोविड अस्पताल एलएनजेपी में फिलहाल 700 आईसीयू बेड खाली पड़े हैं। जबकि 30 अप्रैल को यहां आईसीयू का एक भी बेड खाली नहीं था। 30 अप्रैल को यहां ऑक्सीजन वाला भी कोई बेड उपलब्ध नहीं था। अस्पताल के बाहर गाड़ियों में, एंबुलेंस में कोरोना के मरीज तड़प रहे थे। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। 19 अप्रैल को दिल्ली में कोरोना से 448 लोगों की मौत हुई थी लेकिन 1 जून को सिर्फ 62 लोगों की मौत हुई। दिल्ली में आज पॉजिटिविटी रेट एक प्रतिशत से भी कम है।

ये दो उदाहरण लोगों को यह समझाने के लिए काफी हैं कि बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन से ही संक्रमण और इससे होने वाली मौतों को कंट्रोल किया जा सकता है। इसलिए मैं बार-बार आग्रह कर रहा हूं कि जब भी आपको टाइम स्लॉट दिया जाए तो आप वैक्सीन जरूर लगवाएं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 जून, 2021 का पूरा एपिसोड

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