Saturday, May 04, 2024
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‘तलाकशुदा बेटी का दिवंगत पिता की संपत्ति पर हक नहीं’, दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट से पहले फैमिली कोर्ट ने मां और भाई से भरण-पोषण का खर्च दिए जाने का अनुरोध करने वाली महिला की याचिका खारिज कर दी थी।

Vineet Kumar Singh Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: September 15, 2023 7:15 IST
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Image Source : PTI FILE दिल्ली हाई कोर्ट।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक अविवाहित या विधवा बेटी का अपने दिवंगत पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है लेकिन तलाकशुदा बेटी पर यह बात लागू नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तलाकशुदा बेटी भरण-पोषण के लिए पिता पर निर्भर नहीं होती है। हाई कोर्ट ने एक तलाकशुदा महिला की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसने पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। पारिवारिक अदालत ने मां और भाई से भरण-पोषण का खर्च दिए जाने का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

‘महिला के पिता की 1999 में हो गई थी मौत’

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि भरण-पोषण का दावा हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) की धारा 21 के तहत किया गया है जो उन आश्रितों के लिए है जो भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि यह रिश्तेदारों की 9 श्रेणियों के लिए उपलब्ध कराया गया है जिसमें तलाकशुदा बेटी का जिक्र नहीं है। महिला के पिता की 1999 में मौत हो गयी थी और परिवार में उसकी पत्नी, बेटा और दो बेटियां हैं। महिला ने कहा था कि कानूनी वारिस होने के नाते उसे संपत्ति में उसका हिस्सा नहीं दिया गया है।

‘पति ने 2001 में एकतरफा तलाक दे दिया’
महिला ने कहा कि उसकी मां और भाई इस वादे पर उसे हर महीने 45,000 रुपये देने के लिए राजी हो गए थे कि वह संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं मांगेगी। उसने कहा कि उसे नवंबर 2014 तक ही नियमित आधार पर भरण-पोषण का खर्चा दिया गया। महिला ने कहा कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है और उसे सितंबर 2001 में एकतरफा तलाक दिया गया। उसने दावा किया कि पारिवारिक अदालत ने इस तथ्य पर गौर नहीं किया कि उसे अपने पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। उसने कहा कि चूंकि उसके पति के बारे में कुछ पता नहीं चला, इसलिए वह कोई गुजारा भत्ता नहीं ले पायी।

‘पहले ही पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल चुका है’
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘हालांकि, परिस्थिति कितनी भी जटिल क्यों न हो लेकिन HAMA के तहत उसे ‘आश्रित’ परिभाषित नहीं किया गया है और वह अपनी मां तथा भाई से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।’ उसने कहा कि फैमिली कोर्ट का यह फैसला उचित है कि महिला को पहले ही अपने पिता की संपत्ति में से उसका हिस्सा मिल चुका है और वह फिर से अपनी मां और भाई से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती। (भाषा)

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