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चुनाव FlashBack: अफवाह के कारण जीता हुआ चुनाव हार गए थे अटल बिहारी वाजपेयी, पढ़ें पूरा किस्सा

अटल बिहारी वाजपेयी का बलरामपुर से गहरा नाता रहा है। वह 1957 के चुनाव में जनसंघ के टिकट पर यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे लेकिन अगले ही चुनाव में एक अफवाह के चलते उन्हें पराजय झेलनी पड़ी थी।

Written By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Apr 18, 2024 11:43 IST, Updated : Apr 18, 2024 15:06 IST
atal bihari vajpayee- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV अटल बिहारी वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अविभाजित गोंडा की बलरामपुर संसदीय सीट से ही की थी। वह जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर संसदीय सीट से 1957 से चुनाव जीते थे। लेकिन साल 1962 के लोकसभा चुनाव में एक अफवाह की वजह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हार का सामना करना पड़ा था। दरअसल, वोटिंग के दौरान उतरौला में बूथ लूटने की अफवाह और दो गुटों के तनाव में हुए कत्ल से ऐसी सनसनी फैली कि सहमे लोग वोट डालने के लिए घर से ही नहीं निकले। इसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी 2000 मतों से चुनाव हार गए थे।

किस्सा 1962 के बलरामपुर चुनाव का-

वयोवृद्ध भाजपा कार्यकर्ता शंभू प्रसाद गुप्ता उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी ने बलरामपुर लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था। उन्होंने कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन रिजवी को हराकर भारतीय जनसंघ का परचम फहराया था। जवाहर लाल नेहरू तब सांसद बने प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिभा को समझ गए थे। उन्हें लगा कि अटल को हराना मुश्किल होगा, इसी नाते उन्होंने 1962 के चुनाव में सुभद्रा जोशी को अटल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए बलरामपुर भेजा।

चुनाव से एक दिन पहले कोतवाली नगर क्षेत्र स्थित भेली पड़ाव के पास दो गुटों में तनाव हो गया था। एक पक्ष ने दूसरे पक्ष के युवक की चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी। इसी बात को लेकर पूरे लोकसभा क्षेत्र में तनाव व्याप्त हो गया था।

बूथ लूटने की अफवाह और कल्त से डर गए थे लोग

शंभू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि चुनाव वाले दिन दूसरे पक्ष के लोग कम संख्या में वोट डालने के लिए निकले जिसका फायदा कांग्रेस उम्मीदवार सुभद्रा जोशी को मिला। वोटिंग के दौरान जिले में यह अफवाह भी फैल गई कि उतरौला में कांग्रेस के लोगों ने कई बूथों पर कब्जा कर लिया है। अफवाह यह भी थी कि बूथ पर जाने वाले गैर कांग्रेसी लोगों को पुलिस डंडे से पीट रही है। इसके बाद अटल के पक्ष में मतदान करने वाले अधिसंख्यक लोग घर से ही नहीं निकले। लोकप्रियता बरकरार रहने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को दो हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा।

चुनाव हारने के बाद भी बलरामपुर से बना रहा अटल का प्रेम

वाजपेयी की हार की खबर मिलने पर कार्यकर्ता निराश खड़े थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी आवास-कार्यालय से बाहर निकले और निराशा का भाव दूर करने के लिए कार्यकर्ताओं से कहा कि निराश मत हो, मैं फिर चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा। इसके बाद वह वर्ष 1967 में वह वहीं से चुनाव जीते भी। यहां से सीट छोड़ने के बाद भी उनका लगाव यहां के लोगों के प्रति बना रहा।

'मुझे हराने के लिए साजिशें रची गईं'

अटल बिहारी वाजपेयी अपनी आत्मकथ्य विचार बिंदू में बताते हैं, "तीसरी लोकसभा चुनाव में मेरी हार अप्रत्याशित थी। मैंने 1957 में जीतने के बाद अपनी लोकसभा में 5 साल तक अच्छी देखभाल की थी। संसद के अंदर और संसद के बाहर मैंने बलरामपुर का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया।" प्रतिपक्ष के सदस्य होते के नाते अटल बिहारी ने नेहरू सरकार की कड़ी आलोचना की थी। जनसंघ के प्रवक्ता के रूप में उन्होंने पार्टी की अलग पहचान कायम की। वाजपेयी ने लिखा था, ''जनसंघ पार्टी के बढ़ते प्रभाव से विरोधी परेशान थे और उन्होंने मुझे हराने के लिए षड्यंत्र किया।''

अटल जी का आरोप था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेतृत्व से समर्थन के बाद बलरामपुर के कांग्रेसियों का रुख आक्रमक हो गया, उनके पास साधनों की कमी नहीं थी। अटल बिहारी की आत्मकथ्य के मुताबिक, "जिला और स्थानीय अधिकारियों को दिल्ली की धौंस दिखाकर, डराकर, चुनावों को प्रभावित करने के हथकंडे अपनाए गए। इसके अलावा कांग्रेस के समर्थन में ब्राह्मणों के नाम एक अपील भी की गई थी।" अटल जी का कहना था कि जनसंघ के मतदाताओं को मतदान के दिन वोटिंग स्टेशन से डरा-धमकाकर घर भेजा जाने लगा। कांग्रेस का मकसद कुछ क्षेत्रों में मतदान को रोकना था। डरकर जो मतदाता घर चले गए वो दोबारा लौटकर मतदान केंद्र पर नहीं आए।

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