Sunday, April 28, 2024
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कर्नाटक के व्यवसायों में 60% कन्नड़ भाषा अनिवार्य होगी, कांग्रेस सरकार लाएगी अध्यादेश

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने गुरुवार को दुकानों और दफ्तरों के सामने कन्नड़ नेमप्लेट लगाने को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक की जिसमें बीबीएमपी और संस्कृति विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे।

Subhash Kumar Written By: Subhash Kumar @ImSubhashojha
Updated on: December 28, 2023 23:04 IST
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया।- India TV Hindi
Image Source : PTI कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया।

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में बीते बुधवार को कर्नाटक रक्षणा वेदिके (नारायण गौड़ा गुट) के समर्थकों की ओर से काफी उपद्रव मचाया गया था। संगठन के कार्यकर्ताओं ने ऐसे दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ की जहां साइनबोर्ड, विज्ञापन और नाम पट्टी कन्नड़ भाषा में नहीं थीं। मामले को तूल पकड़ता देखकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गुरुवार को एक उच्च स्तरीय बैठक की और बड़ा आदेश जारी किया है।

60% कन्नड़ भाषा अनिवार्य

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने दुकानों और दफ्तरों के सामने कन्नड़ नेमप्लेट लगाने को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक की जिसमें  बीबीएमपी और संस्कृति विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक के बाद सिद्धारमैया ने जानकारी देते हुए कहा- "मैंने कन्नड़ और संस्कृति विभाग के अधिकारियों से एक अध्यादेश लाने और 60% कन्नड़ नेमप्लेट और 40% अन्य भाषा नेमप्लेट लागू करने के लिए कहा है। इसे अधिसूचित किया जाएगा और नियम बनाए जाएंगे

इस तारीख तक बदल लें नेम प्लेट

सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने 28 फरवरी, 2024 से पहले कंपनियों, संगठनों और अन्य दुकानों से अपनी नेमप्लेट बदलने का अनुरोध किया है। वहीं, राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि कन्नड़ भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए पहले से ही एक अधिनियम है। उन्होंने बताया कि अधिनियम की धारा 17, उप-धारा 6 में एक संशोधन की आवश्यकता है, जिसमें भाषा का प्रतिशत तय किया जाना है।

उपद्रव करने की इजाजत नहीं

वहीं, दूसरी ओर कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने पूरे मामले पर कहा कि हम कन्नड़ समर्थक कार्यकर्ताओं के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। बेंगलुरु में संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की घटना को स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि हमें कन्नड़ भाषा को बचाना है और हम उन लोगों का सम्मान करते हैं जो इसके लिए आवाज उठा रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सरकार बर्बरता के प्रति अपनी आंखें मूंद लेगी।

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