जो इन बीमारियों के बढ़ने की मुख्य वजह है। हकीकत में सही समय पर इलाज न मिल पाना ही इस बीमारी की बड़ी वजह है।
कुमार के अनुसार, सिगरेट में निकोटीन, कोकीन, हेरोइन और 4000 से ज्यादा केमिकल्स मौजूद होते हैं, जिनमें 50 केमिकल्स कैंसर के कारक होते हैं। ये फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
राजीव गांधी कैंसर संस्थान के थोरेसिक सर्जन एल.एम. डारलोंग कहते हैं कि स्मोकिंग एक फेमस रिस्क फैक्टर है। यह कोल और बॉक्साइट खनन की तरह न केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि आसपास के वातावरण को भी जहरीला बनाता है। इसलिए सभी लोगों के बीच यह संदेश जाना चाहिए कि फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं है।
मेदांता हॉस्पीटल के सर्जन अली जामिर खां ने बताया कि सिगरेट का धुआं सबसे पहले सांस की नली के उन बालों को नष्ट कर देता है जोकि कीटाणुओं और अन्य कणों को अंदर जाने से रोकते हैं। इसके बाद कफ को बाहर फेंकने वाली श्वास नली जाम हो जाती है। कफ को हल्के में नहीं लेना चाहिए यह कैंसर का शुरुआती लक्षण हो सकता है।
डॉक्टर खान ने बताया कि उन्होंने अपना काफी समय सीनियर स्कूल के छात्रों के बीच स्मोकिंग के दुष्प्रभावों और इससे होने वाले कैंसर की जानकारी देने में बताया है।