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दूसरे दौर के प्रोत्साहन से बढ़ेगा उपभोक्ता खर्च लेकिन वृद्धि में सीमित मदद: मूडीज

दूसरे दौर की राहत में सरकारी कर्मचारियों को अवकाश यात्रा रियायत यानि एलटीसी के एवज में नकद वाउचर योजना और त्योहारों के लिए विशेष अग्रिम (फेस्टिवल एडवांस) देने का ऐलान किया गया है। इसके अलावा सरकार ने राज्यों को 12,000 करोड़ रुपये का ब्याजमुक्त कर्ज तथा 25,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त पूंजीगत खर्च करने की घोषणा की है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Updated : October 15, 2020 20:23 IST
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Photo:GOOGLE

दूसरे दौर के प्रोत्साहन से ग्रोथ में सीमित मदद मिलेगी

नई दिल्ली।  मूडीज इन्वेस्टर सर्विस ने कहा है कि सरकार के दूसरे दौर के प्रोत्साहनों से आने वाले समय में उपभोक्ता खर्च तो बढ़ेगा, लेकिन इससे आर्थिक वृद्धि को एक सीमा तक ही मदद मिलेगी। पिछले काफी समय से चल रही वित्तीय प्रोत्साहन की मांग के बीच सरकार ने 12 अक्टूबर को कर्मचारियों और राज्यों के लिये सीधे वित्तीय समर्थन और मांग बढ़ाने के कई उपायों की घोषणा की है। इन उपायों में सरकारी कर्मचारियों को अवकाश यात्रा रियायत यानि एलटीसी के एवज में नकद वाउचर योजना और त्योहारों के लिए विशेष अग्रिम (फेस्टिवल एडवांस) शामिल है। इसके अलावा सरकार ने राज्यों को 12,000 करोड़ रुपये का ब्याजमुक्त कर्ज तथा 25,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त पूंजीगत खर्च करने की घोषणा की है। 

मूडीज ने बृहस्पतिवार को कहा कि यह प्रोत्साहन 46,700 करोड़ रुपये या वित्त वर्ष 2020-21 के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान के 0.2 प्रतिशत के बराबर है। इसमें जबर्दस्त गिरावट के बीच अर्थव्यवस्था को समर्थन देने की सीमित क्षमता है। नए प्रोत्साहन उपायों का मकसद त्योहारी मौसम में उपभोक्ता खर्च और पूंजीगत व्यय बढ़ाना है। रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘यदि हम सरकार के 2020 में पहले दिए गए वित्तीय प्रोत्साहन को भी जोड़ें तो ये उपाय काफी कम हैं। दो दौर के प्रोत्साहन के जरिये सरकार कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था में सीधे सिर्फ जीडीपी का 1.2 प्रतिशत खर्च कर रही है।’’ वहीं इसकी तुलना में जून के मध्य तक बीएए-रेटेड दूसरे समकक्षों द्वारा औसतन 2.5 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। मूडीज ने कहा, ‘‘भारत की कमजोर वित्तीय स्थिति ने कोरोना वायरस महामारी के बीच उसकी विवेकाधीन प्रोत्साहन खर्च की क्षमता को सीमित किया है।’’ मूडीज का अनुमान है कि सरकार का सामान्य कर्ज का बोझ इस साल जीडीपी के 90 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा। पिछले साल यह 72 प्रतिशत के स्तर पर था। कर्ज के बोझ की प्रमुख वजह ऊंचा राजकोषीय घाटा है। 

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