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पेट्रोलियम ईंधन पर तेल मार्केटिंग कंपनियों का घाटा हुआ कम, 2015-16 में अंडर रिकवरी 61.87 फीसदी घटी

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल मार्केटिंग कंपनियों की पेट्रोलियम ईंधन पर अंडर रिकवरी में वित्‍त वर्ष 2015-16 के दौरान करीब 61.87 फीसदी की बड़ी कमी दर्ज की गई है।

Abhishek Shrivastava Abhishek Shrivastava
Updated on: September 20, 2016 14:46 IST
इंदौर। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तेल मार्केटिंग कंपनियों की अंडर रिकवरी (पेट्रोलियम ईंधन के बाजार मूल्यों और इनकी सरकार नियंत्रित बिक्री कीमतों के बीच का अंतर) में वित्‍त वर्ष 2015-16 के दौरान करीब 61.87 फीसदी की बड़ी कमी दर्ज की गई है।

सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मिली है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से बताया गया कि 31 मार्च को खत्म वित्त वर्ष 2015-16 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत प्रदान किए जाने वाले केरोसीन और घरेलू रसोई गैस पर तेल मार्केटिंग कंपनियों की कुल अंडर रिकवरी 27,570 करोड़ रुपए रही। इसके एवज में सरकार ने इन कंपनियों को 26,301 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद की।

आरटीआई अर्जी के जवाब में यह भी बताया गया कि वित्‍त वर्ष 2014-15 में डीजल, पीडीएस के केरोसीन और घरेलू रसोई गैस पर तेल मार्केटिंग कंपनियों की कुल अंडर रिकवरी 72,314 करोड़ रुपए के स्तर पर थी। इसके बदले सरकार ने इन कंपनियों को 27,308 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद की।  सरकार ने डीजल की कीमतों को अपने नियंत्रण से 19 अक्‍टूबर 2014 को मुक्त कर दिया था, जबकि पेट्रोल के मूल्यों पर से 26 जून 2010 को सरकारी नियंत्रण हटा लिया गया था।

जानकारों के मुताबिक तेल मार्केटिंग कंपनियों की अंडर रिकवरी घटने का सबसे बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में कमी आना है। घरेलू रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना और लाखों लोगों के स्वेच्छा से यह सब्सिडी छोड़ने से भी इन कंपनियों पर अंडर रिकवरी का बोझ घटा है। आरटीआई अर्जी पर पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के जवाब के मुताबिक वित्‍त  वर्ष 2013-14, 2012-13 और 2011-12 में तेल मार्केटिंग कंपनियों की अंडर रिकवरी क्रमश: 1,39,869 करोड़ रुपए, 1,61,029 करोड़ रुपए और 1,38,541 करोड़ रुपए रही थी। इसके बदले सरकार ने इन कंपनियों को क्रमश: 70,772 करोड़ रुपए, 1,00,000 करोड़ रुपए और 83,500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी थी।

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