Tuesday, November 11, 2025
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Sharad Purnima Vrat Paran: शरद पूर्णिमा का व्रत कैसे रखा जाता है और इस व्रत का पारण कब किया जाता है?

kojagiri vrat Ka Paran Kab Kare: शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। दूध का संबंध चंद्रमा से होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर बनाकर रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखने का विधान है। कहते हैं कि इसमें अमृत का संचार होता है। सुबह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

Written By: Arti Azad @Azadkeekalamse
Published : Oct 06, 2025 12:55 pm IST, Updated : Oct 06, 2025 05:19 pm IST
sharad purnima- India TV Hindi
Image Source : UNSPLASH सरद पूर्णिमा व्रत पारण

Sharad purnima Vrat Paran Vidhi: हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का खास महत्व बताया गया है। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होते हैं। इसे कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। कोजागिरी पूर्णिमा के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की  पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी की विधिवत पूरा और व्रत रखा जाता है। इसके बाद अगले दिन सुबह ही व्रत का पारण किया जाता है। आइए बात करके हैं कि शरद पूर्णिमा का व्रत कैसे रखा जाता है और इस उपवास के पारण समय और विधि क्या होती है। 

शरद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ और समापन

कोजागर पूजा सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाएगी। कोजागर पूजा निशिता काल की शुरुआत 6 अक्टूबर रात 11:45 से होगी , जो 7 अक्टूबर को सुबह 12:34 बजे तक रहेगा। वहीं, पूजा की कुल अवधि 49 मिनटों की रहेगी। आज चन्द्रोदय का समय शाम को 5:27 बजे का है। 

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होने का समय 6 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:23 बजे है। जबकि, पूर्णिमा तिथि की समापन 7 अक्टूबर 2025 को  सुबह 9:16 बजे होगा।  

शरद पूर्णिमा व्रत कैसे रखें ?

इस दिन पूरी शुद्धता, नियम और श्रद्धा से व्रत रखें। पूरे दिन मां लक्ष्मी और चंद्र देव का ध्यान करें। दिन में लक्ष्मी माता के भजन, जप और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें। अगर निर्जला उपवास संभव न हो तो जल, फल, दूध आदि का सेवन कर सकते हैं। चांद निकलने के बाद चंद्र देव को दूध या जल में चावल मिलाकर अर्घ्य दें। अगर संभव हो तो रात्रि में परिवारजनों के साथ भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। 

अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें जाप

आज के दिन सफेद या पीले वस्त्र पहनें। घर के उत्तर-पूर्व दिशा यानी कि ईशान कोण में सफेद कपड़ा बिछाएं। चंद्र देव और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अब तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर आम के पत्ते और नारियल रखें। इस पर कुमकुम, अक्षत और पुष्प अर्पित करें। देवी को प्रणाम करके उन्हें रोली, चावल, पुष्प, दीप और भोग अर्पित करें। लक्ष्मी चालीसा या लक्ष्मी स्तोत्र पढ़ें। रात में चंद्र दर्शन करके जल और दूध से तैयार मिश्रित जल से चंद्र देव को अर्घ्य दें। खीर का भोग लगाएं। चंद्र देव की आरती करें। 

11 या108 बार इस मंत्र का  करें जाप - ॐ चंद्राय नमः या ॐ सोमाय नमः 

कैसे करें पूर्णिमा के व्रत का पारण?

अगले दिन सुबह-सुबह स्नान आदि करने के बाद रात को चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर का भोग भगवान जी को लगाया जाता है। इसके बाद परिवारजनों को प्रसाद रूप में बांट दिया जाता है। व्रती इसी खीर को खाकर व्रत का पारण करते हैं। इसी के साथ चंद्र देव से अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और सौभाग्या की कामना की जाती है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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