
Kumbh Mela 2025: कुंभ मेला, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का अद्वितीय पर्व है, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है। यह पर्व विशेष रूप से प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है, जहां हर बारह साल में विशेष ज्योतिषीय संयोगों के आधार पर लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करने आते यात्री ह्वेन त्सांग ने प्रयागराज के महाकुंभ का वर्णन किया, जो उस समय के धार्मिक आयोजन और सम्राट की दानशीलता को प्रदर्शित करता है। कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय समाज के सामूहिक आस्था, संघर्ष और एकता की अभिव्यक्ति भी है, जो हर बार इस अद्वितीय पर्व के माध्यम से पुनः जीवित होती है।
नागा साधुओं की पेशवाई
महाकुंभ में नागा साधुओं की पेशवाई एक प्रमुख आकर्षण होती है, जो न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि भारतीय वीरता और संघर्ष का प्रतीक है। इन साधुओं ने ऐतिहासिक रूप से सनातन धर्म की रक्षा के लिए कई आक्रमणों का सामना किया, जिनमें १७वीं शताब्दी का अफगान आक्रमण प्रमुख था। नागा साधुओं ने सनातन के लिए मुगलों ही नहीं अंग्रेजों से भी लोहा लिया। नागा साधुओं की वीरता और समर्पण की गाथा "नगर प्रवेश" की परंपरा के रूप में आज भी हर महाकुंभ का हिस्सा है, जो भारतीय समाज की गौरवपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
कुंभ का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन के समय में, चीनी ह्वेन त्सांग ने कुंभ के अवसर पर प्रयाग में आयोजित महासम्मेलन का वर्णन किया है, जिसमें स्वयं सम्राट हर्षवर्धन भी शामिल हुए थे, और यह विवरण रुचिकर है। ध्यान देने योग्य यह है कि न केवल हर्षवर्धन, बल्कि कुंभ के इस अवसर पर यह परंपरा रही थी कि कन्नौज के पूर्ववर्ती शासक प्रयाग जाकर सिद्ध, ऋषि-महात्माओं के दर्शन व पूजन करते थे, साथ ही निर्धनों और अनाथों को दान भी देते थे। पूरे देश के महंत, ब्राह्मण, विद्वान, अनाथ आदि को आमंत्रित किया गया था, और उनके ठहरने व अन्य सुविधाओं का प्रबंध किया गया था। पूजा, चढ़ावा, दान आदि की सामग्रियों से सैकड़ों पर्णकुटी भरी हुई थीं। एक महीने तक प्रतिदिन दीन-दुखियों को दान देने का सिलसिला चलता रहा, और यह दान इतना अधिक था कि राजकोष खाली हो गया। जब सम्राट हर्षवर्धन के पास दान करने के लिए कुछ नहीं बचा, तो हर्षवर्धन ने अपनी मुकुट-मणी तक दान कर दी। अपने शरीर पर पहने गए गहनों और मूल्यवान वस्त्रों का भी उन्होंने दान कर दिया।
महाकुंभ 12 साल बाद क्यों लगता है?
महाकुंभ पर्व हर बारह साल में एक बार होता है, जबकि अर्धकुंभ हर छह साल के अंतराल में आयोजित होता है। प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक आदि स्थानों पर, इन बड़े अवसरों पर, प्राचीन काल से ही बड़े मेले लगते आए हैं। यदि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए, तो पूर्ण कुंभ पर्व का विशेष महत्व है। जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य तथा चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, तो उस नक्षत्र योग में पूर्ण कुंभ आयोजित होता है। स्वाभाविक रूप से, हर वर्ष माघ के महीने में सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, लेकिन बृहस्पति का मेष राशि पर आना बारह साल में एक बार ही होता है, तभी महाकुंभ महापर्व का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त, कई ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति आदि के आधार पर विशेष योग भी बनते हैं। उसी विशेष ग्रहों का संयोग हर्षकालीन महाकुंभ में था वही संयोग इस वर्ष 2025 प्रयाग महाकुंभ में बना है।
(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7:30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)
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