उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस Places of worship Act को लेकर अभियान चलाने जा रही है। इसके तहत पूरे उत्तर प्रदेश में करीब एक लाख लोग चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पत्र भेंजेंगे। इस अभियान को लेकर यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस का कहना है कि इस एक्ट के तहत 15 अगस्त 1947 तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र था, उसमें बदलाव नहीं हो सकता। पूजा स्थलों के विवाद से जुड़े पुराने दावे और मुकदमे भी खत्म हो जाते हैं लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद, ताजमहल, कुतुब मीनार, अजमेर दरगाह, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, बदायूं और संभल की जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिकाएं कोर्ट में स्वीकार की जा रही हैं। यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस का कहना है कि चीफ जस्टिस को जो पत्र लिखे जाएंगे उसमें कुछ सवाल पूछे जाएंगे?
चीफ जस्टिस से पूछे जाएंगे ये सवाल?
- पूजा स्थल अधिनियम अभी है या समाप्त हो गया है?
- अगर अस्तित्व में है तो उसकी अवमानना पर आप कोई कार्रवाई क्यो नही करते?
- क्या आपकी चुप्पी की वजह सरकार और आरएसएस का दबाव है?
- आप पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की ज्ञानवापी मामले में पूजा स्थल अधिनियम की अवमानना करते हुए दिये गए संविधान विरोधी आदेश पर रोक क्यों नहीं लगाते?
- मुसलमानों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 32 और 226 के तहत स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लेता? कोर्ट पीड़ित पक्ष के अदालत आने का इंतजार क्यों करता है ?
कांग्रेस ने पोस्ट में कही ये बात
इसे लेकर कांग्रेस के अल्पसंख्यक विंग द्वारा एक पोस्टर भी जारी किया गया है। इसमें बताया गया है कि यह अभियान 6 दिसंबर से 21 दिसंबर 2024 तक चलेगा। इस पोस्टर में लिखा गया है, 'क्या संविधान के कमजोर होने से सिर्फ मुसलमानों को ही नुकसान है। आज अगर पूजा स्थल अधिनियम की अवमानना हो रही तो कल जमींदारी उन्मूलन कानून की भी अवमानना होगी। उसके बाद अनुसूचित जाति जनजाति को दी गई जमीनों पर भी जमींदार लोग पुराने कागज दिखाकर फिर से दावा कर देंगे। सैकड़ों साल पुराने मस्जिदों-मंदिरों का कागज तो नहीं मिलेगा, लेकिन 50-60 साल पुरानी जमीनों के कागज तो जमींदारों के पास होगा ही। याद रहे, जमींदारी उन्मूलन कानून बनते समय आरएसएस और जनसंघ ने इसका विरोध किया था।