Thursday, April 25, 2024
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विलन और हीरो: कहानी 36 साल के सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान उर्फ MBS की, वो 'निर्दयी' सुधारक, जिनके आगे बाइडेन भी झुके

Mohammed bin Salman Story: सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन बावजूद इसके पूरे देश की पावर न केवल उनके हाथों में है, बल्कि उन्होंने विदेश में भी कई शक्तिशाली दोस्त बना लिए हैं।

Shilpa Written By: Shilpa
Updated on: September 28, 2022 12:34 IST
Mohammed bin Salman Al Saud Story- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Mohammed bin Salman Al Saud Story

Highlights

  • बेहद पावरफुल हैं सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस
  • जो बाइडेन ने न चाहते हुए की मुलाकात
  • लोगों के लिए निर्दयी और मसीहा दोनों हैं एमबीएस

Mohammed bin Salman Al Saud MBS Story: मोहम्मद बिन सलमान अल साउद... ये नाम आपने सुना ही होगा। इन्हें एमबीएस के नाम से भी जाना जाता है। जो इस समय दुनिया के बेहद शक्तिशाली देश को चला रहे हैं। वो भी महज 36 साल की उम्र में। यहां हम बात कर रहे हैं, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की। बात ज्यादा पुरानी नहीं है, बीते हफ्ते की ही है... जब खुद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन एमबीएस से मिलने सऊदी अरब के दौरे पर आए। जी हां, वही बाइडेन जो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान एमबीएस को सजा देने की बात कर रहे थे। उन्होंने अमेरिकी नागरिक और मूल रूप से सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या तक के लिए सीधे-सीधे एमबीएस को जिम्मेदार ठहरा दिया था।

आपको ये बात जानकर भी हैरानी होगी कि बाइडेन ने अतीत में कहा था कि वह क्राउन प्रिंस से कभी मुलाकात नहीं करना चाहेंगे, बल्कि वह केवल किंग से मिलेंगे। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल के बढ़ते दाम की वजह से उन्हें सऊदी अरब के आगे झुकना पड़ा। वह चाहते हैं कि सऊदी तेल का उत्पादन बढ़ा दे, ताकि तेल के दाम कुछ कम हो सकें। इसी बात के लिए उन्होंने उन्हीं एमबीएस के साथ न केवल बैठक की बल्कि तस्वीरें भी क्लिक करवाईं, जिनसे वह कभी मुलाकात न करने का इरादा कर चुके थे। इसी बात ने दुनिया के सामने एमबीएस की ताकत को साबित कर दिया। यानी इस शख्स के आगे अमेरिका जैसे सुपरपावर देश के राष्ट्रपति तक को झुकने पर मजबूर होना पड़ा है।

बाइडेन का दौरा नियंत्रित किया

बाइडेन और एमबीएस की मुलाकात 15 जुलाई को जेद्दाह शहर में स्थित सऊदी रॉयल पैलेस में हुई है। बीते महीने बाइडेन ने कहा था कि वह जब किंग और अन्य क्षेत्रीय नेताओं से मुलाकात करने जाएंगे, तो क्राउन प्रिंस एमबीएस से आमने-सामने की मुलाकात नहीं करेंगे। लेकिन दोनों को ही एक दूसरे से पूरी दुनिया ने मिलते हुए देखा। एमबीएस ही बाइडेन के होस्ट बने और उन्होंने ही उनके पूरे दौरे को नियंत्रित किया। सबसे जरूरी बात, विश्लेषकों का कहना है कि एमबीएस को अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से हर मामले में हामी ही सुनाई दी। फिर चाहे बात तेल उत्पादन को बढ़ावा देने की गारंटी की हो, रूस या चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ मजबूत स्थिति में रहने की हो या इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने की।

जो लोग एमबीएस को उनके पिता के शासनकाल में लगातार उभरता हुआ देख चुके हैं, उनके लिए क्राउन प्रिंस का हर मामले को बड़ी सजगता के साथ संभाल लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं लगती। एमबीएस देश चलाने में कितने कुशल हैं, इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उनके 86 वर्षीय पिता किंग सलमान ने अपने बाकी बच्चों में से क्राउन प्रिंस के लिए केवल एमबीएस का ही चुनाव किया है। वह उनके 7वें बेटे हैं, जिनका जन्म उनकी तीसरी पत्नी से हुआ है। किंग ने अपने अनुभवी भाई या बड़े बेटों तक का चुनाव नहीं किया।

2017 में क्राउन प्रिंस बने एमबीएस

किंग सलमान 2015 में सऊदी अरब के सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने फिर 2017 में एमबीएस को क्राउन प्रिंस के तौर पर नियुक्त किया। जबकि उनके उत्तराधिकारी के तौर पर मुकरीन बिन अब्दुलअजीज और मोहम्मद बिन नाइफ जैसे पावरफुल नाम टॉप पर थे। अब एमबीएस इस देश के क्राउन प्रिंस, रक्षा मंत्री, शाही अदालत के अध्यक्ष और सर्वोच्च राजनीतिक एवं विकास परिषदों के प्रमुख हैं और उसके बाद सऊदी के वास्तवित शासक बन गए हैं। जब किंग सलमान से उनके इस फैसले के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि एमबीएस उनके सभी बेटों में ऐसे अकेले हैं, जो "निर्दयी" हैं, इसलिए वह शक्ति के सभी केंद्रों और एक बड़े शाही परिवार के साथ देश को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त हैं। 

एमबीएस को क्राउन प्रिंस बनाया जाना सभी के लिए काफी हैरान कर देने वाला मामला था। क्योंकि न तो उनके पास सैन्य ट्रेनिंग थी, न ही उन्होंने विदेश में पढ़ाई की, जबकि मंत्री पदों पर बैठे उनके भाइयों ने विदेश से पढ़ाई की है। एमबीएस ने किंग साऊद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है। वहीं उनके एक भाई ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की है और एक अन्य सऊदी वायु सेना का पायलट और एस्ट्रोनॉट है। हालांकि पद संभालने के बाद से वह क्रूर भी बने रहे।

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रक्षा मंत्री बनते ही उन्होंने यमन पर भीषण बमबारी करवाना शुरू कर दिया। यहां सऊदी सरकार यमन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार की तरफ से हूती विद्रोहियों के खिलाफ जंग लड़ रही है। जिन्हें ईरान का समर्थन मिल रहा है और जो सऊदी पर आए दिन हमले कर रहे हैं। एमबीएस को उम्मीद थी कि बमबारी से हूती विद्रोही पीछे हट जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कतर जैसे खाड़ी देश के बहिष्कार का नेतृत्व करने का उनका फैसला एक साल के बाद फेल हो गया और उन्हें कतर के शाही परिवार के साथ समझौता करना पड़ा, वो भी मांगे गए आश्वासनों को प्राप्त किए बिना।

राजघराने के लोगों को कैद किया

एमबीएस ने शाही राजघराने और अन्य अमीरों को भ्रष्टाचार के आरोपों में, या चुप कराने के लिए कैद तक किया है। जिसके चलते परिवार के भीतर उनके खिलाफ नाराजगी भी देखी गई। उन्हीं को पत्रकार जमाल खशोगी की मौत का जिम्मेदार बताया जाता है। खशोगी वाशिंगटन पोस्ट के लिए लेख लिखते थे और सऊदी अरब शासन के आलोचक थे। ऐसा कहा गया कि उनकी हत्या का आदेश मोहम्मद बिन सलमान ने ही दिया था। खशोगी की तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी अरब के दूतावास के भीतर हत्या कर दी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि उनके शव का भी यहीं पर निपटारा किया गया। वह यहां दस्तावेज से जुड़े काम के लिए आए थे। ये खबर भी आई कि क्राउन प्रिंस ने सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से निगरानी कराने का आदेश दिया था।

इसके साथ ही रूढ़िवादी देश में प्रिंस सलमान ने आर्थिक विकास के लिए काम करना शुरू किया और महिलाओं को इसी के तहत आजादी दी गई। उन्होंने शाही परिवार, व्यवसायी और मौलवियों के साथ इस तरह से पावर को बैलेंस किया, कि वह देश के युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गए। उन्होंने अपने 'विजन 2030 प्रोग्राम' के तहत देश को एक नया भविष्य देने का वादा किया। तेल पर आधारित देश की अर्थव्यवस्था को अब शिक्षा और रोजगार के जरिए अधिक मजबूत करने की वकालत की। उन्होंने रेगिस्तान में एक नई 500 बिलियन डॉलर की हाई-टेक सिटी परियोजना बनाई, जिसे 'नियोम' कहा जाता है।

समाज में कई बड़े बदलाव किए

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समाजिक मामले पर आएं, तो सऊदी में वो बदलाव देखे गए, जिनकी कभी किसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अब महिलाओं को पूरी तरह से पर्दा नहीं करना पड़ता या गार्जियनशिप नियमों (पिता या पति से हर बात की अनुमति लेना) का पालन नहीं करना पड़ता, वह कार चला सकती हैं। पुरुष और महिलाएं मुत्तवीन (धार्मिक पुलिस) के खौफ के बिना घूम फिर सकते हैं, सिनेमा हॉल जा सकते हैं, या रैप और हिप-हॉप कॉन्सर्ट में शामिल हो सकते हैं। 9/11 के बाद से अपने पिता और पिछले शासकों की तरह, एमबीएस ने भी देश की छवि को इस्लामी चरमपंथी समूहों को वित्त पोषण और बढ़ावा देने से एकदम अलग करने की कोशिश की है।

उन्होंने इस साल की शुरुआत में सऊदी अरब की सबसे बड़ी मौत की सजाओं का निरीक्षण किया, जिसमें 81 लोगों को "आतंकवाद और चरमपंथी विचारधारा" के अपराधों के लिए फांसी दी गई थी। उनपर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी लगे। उनके शासन से असंतुष्ट लेखक रैफ बदावी और महिला कार्यकर्ता लौजैन अलहथलौल की कैद और कथित यातना के चलते उनकी खूब आलोचना होती है। इन लोगों को बेशक अब जेल से रिहा कर दिया गया है लेकिन इनपर यात्रा प्रतिबंध लगे हुए हैं। उनके आलचकों को डर है कि जब 40 साल से कम उम्र में महज क्राउन प्रिंस के पद पर बैठकर एमबीएस इतना कुछ कर रहे हैं और उनके पास इतनी पावर है, तो उनके किंग बनने पर वह क्या कुछ करेंगे।

पश्चिमी देशों ने की आलोचना

पश्चिमी देशों में एमबीएस की लगातार होती आलोचना के बावजूद उन्होंने चीन, रूस, भारत, इंडोनेशिया और कई अन्य देशों के साथ रिश्ते मजबूत किए हैं। उन्होंने इसी साल अमेरिकी मैग्जीन द अटलांटिक को दिए इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे परवाह नहीं है।' हालांकि घरेलू स्तर पर उनके फैसलों का प्रभाव वास्तव में मोहम्मद बिन सलमान को चिंतित कर सकता है, खासतौर पर ऐसे वक्त में जब वह अपने बीमार पिता के सिंहासन के करीब बढ़ रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा इजरायल का माना जा सकता है कि वह इस देश के साथ रिश्तों को कैसा रखते हैं। क्योंकि सऊदी अरब के दोस्त और प्रतिद्विंदी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शासक मोहम्मद बिन जायद ने इजरायल के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर लिए हैं।

हालांकि यूएई ने ऐसा करते हुए फलस्तीन के मामले पर अपने धार्मिक मौलवियों और देश की जनता की भावनाओं का भी ध्यान रखा है। इसके अलावा एमबीएस के लिए ईरान के साथ चल रहा छद्म युद्ध भी एक बड़ा मसला है। वहीं भारत के मामले की बात करें, तो यहां हाल में ही पैगंबर मोहम्मद को लेकर दिए गए नूपुर शर्मा के बयान की दुनियाभर में आलोचना हुई थी। इस मामले में भी सऊदी अरब ने निंदा करने के बजाय अन्य खाड़ी देशों का अनुसरण किया। हालांकि इस मामले का असर दोनों देशों के रिश्ते पर नहीं आया। भारत सरकार की कार्रवाई पर सऊदी अरब ने संतुष्टि जताई थी।  

एमबीएस के लिए आगे कई चुनौतियां

व्यवसाय के मामले में एमबीएस को अपने देश के लोगों को यह समझाने की जरूरत होगी कि निवेश के लिए सऊदी अरब के दरवाजे खोलने से सख्त नागरिकता कानून कमजोर नहीं होंगे और प्रवासियों को नियोम (हाई-टेक सिटी) की तरफ आकर्षित करने की उनकी योजना देश के खजाने को खाली नहीं करेगी। 1800 के दशक की शुरुआत में फ्रांसीसी राजनेता और विचारक एलेक्सिस डी टोकेविल ने कहा था, 'अनुभव बताता है कि एक खराब सरकार के लिए सबसे खतरनाक समय आमतौर पर तब होता है, जब वह सुधार करना शुरू करती है।' और यही बात आने वाले वक्त में क्राउन प्रिंस के लिए वास्तविकता साबित हो सकती है। उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 

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