Thursday, April 25, 2024
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अफगानिस्तान में जाते-जाते ये 'क्रूर' काम करके गया अमेरिका, अपना साथ देने वालों को 'मारा', डॉक्यूमेंट्री में सामने आईं हैरान कर देने वाली बातें

US Afghanistan: कर्नल ने उन शरणार्थियों को भी अनुमति नहीं दी, जिनके पास अमेरिकी पासपोर्ट था, यह कहते हुए कि दस्तावेज जाली हो सकते हैं। बसों में मौजूद शरणार्थियों की जिंदगी बचाने की अंतिम कोशिश के रूप में उत्तरी कैरोलिना के सीनेटर थॉम टिलिस को फोन लगाया गया।

Shilpa Written By: Shilpa
Updated on: August 29, 2022 18:17 IST
US army in Afghanistan- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV US army in Afghanistan

Highlights

  • अफगानिस्तान को लेकर डॉक्यूमेंट्री आई
  • अमेरिका की वजह से मारे गए कई लोग
  • अमेरिका ने नहीं दिया सहयोगियों का साथ

US Afghanistan: अमेरिकी सेना को अफरा तफरी में अफगानिस्तान छोड़े एक साल का वक्त हो गया है। उन्होंने इस देश को आतंकी और क्रूर तालिबानियों को सौप दिया था। लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि अमेरिका ने इस दौरान अपने कई सैनिकों, सहयोगियों और आश्रितों को वहीं तालिबान से लड़ने के लिए छोड़ दिया था। इस मामले से जुड़ी एक नई डॉक्यूमेंट्री आई है। जिसमें हैरान करने वाले खुलासे हुए हैं। इसमें पता चला है कि अमेरिकी सेना के कर्नल ने अपने सहयोगियों को साथ नहीं लिया और उन्हें जबरन किलिंग जोन की तरफ धकेल दिया। 

इस फिल्म का नाम 'सेंड मी' है, जिसे निक पामिसियानो ने बनाया है। इसमें स्पेशल ऑपरेशंस की स्वयंसेवी टीम के सदस्यों के बयान लिए गए हैं। इसमें बताया गया है कि एक अमेरिकी कर्नल ने पांच बसों के लोगों विमानों में चढ़ने नहीं दिया। कर्नल पर इन लोगों की हत्या का आरोप लगाया जा रहा है। ये अफगानिस्तान के वो लोग थे, जिन्हें काबुल छोड़ने की इजाजत मिल गई थी। डॉक्यूमेंट्री में एक जवान के हवाले से बताया गया है, 'वहां एक कर्नल था, जो सामने आया और ऐसा दिखाने लगा कि अनिवार्य रूप से वही ये फैसला करेगा कि कौन विमान में चढ़ सकता है और कौन नहीं।' 

लोगों को दोबारा बसों में चढ़ाया

इस बीच एमएमए सेनानी बने सॉलिडर टिम कैनेडी ने कहा, 'कर्नल ने सभी को बाहर करने को कहा। मुझे परवाह नहीं है कि वह कौन हैं, वो उन बसों में दोबारा सवार हो गए, जो वापस काबुल चली गईं।' कैनेडी 13 सदस्यीय समूह का हिस्सा थे, जिसे कई सहयोगियों को बचाने का काम सौंपा गया था। इन पांच बसों में सवार लोगों के पास वेरिफाई दस्तावेज थे। अमेरिकी सेना ने उनकी सावधानीपूर्वक तलाशी और जांच की थी और सभी 25 अगस्त, 2021 को लगभग 3 बजे अमेरिका के नियंत्रण वाले ब्लैक गेट पर पहुंचे थे। हालांकि, 82वें एयरबोर्न डिवीजन के टॉप रैंक के कर्नल ने उन्हें या उन्हें ले जाने वाली बसों को अंदर नहीं जाने दिया। 

US Afghanistan

Image Source : AP
US Afghanistan

पासपोर्ट वालों को भी नहीं चढ़ने दिया

कर्नल ने उन शरणार्थियों को भी अनुमति नहीं दी, जिनके पास अमेरिकी पासपोर्ट था, यह कहते हुए कि दस्तावेज जाली हो सकते हैं। बसों में मौजूद शरणार्थियों की जिंदगी बचाने की अंतिम कोशिश के रूप में उत्तरी कैरोलिना के सीनेटर थॉम टिलिस को फोन लगाया गया। उन्होंने सेना के जनरलों को हस्तक्षेप करने को कहा। लेकिन तब तक हवाई अड्डे के बाहर की स्थिति विकट हो चुकी थी। सबको वहीं पर छोड़ना पड़ा। उन्होंने शरणार्थियों को गनपॉइंट पर बस में दोबारा चढ़ने के लिए कहा। इन लोगों को वापस काबुल जाने के लिए जहां से गुजरना था, वहां रास्ते में तालिबानी मौजूद थे।

taliban in afghanistan

Image Source : INDIA TV
taliban in afghanistan

तालिबानियों के पास भेजा गया

पूर्व मरीन चाड रॉबीचॉक्स ने कहा, 'बसों को वापस मोड़ने का मतलब इन लोगों को अनिवार्य रूप से मारना, इनकी हत्या करना था। इनमें से कुछ बच्चे थे, महिलाएं थीं, कई लोग अमेरिकी थे, जिन्हें वापस तालिबानियों के पास भेज दिया गया।' अमेरिका ने 20 साल बाद अफगानिस्तान छोड़ा था और इस दौरान उसने तालिबान के साथ इस देश में लड़ाई लड़ी थी। लेकिन जब बीते साल 15 अगस्त को तालिबान ने देश पर कब्जा किया, तो अमेरिकी सैनिकों को यहां से अफरा तफरी में निकलना पड़ा। इस मिशन के साथ ही उन लोगों को बचाया जाना था, जो इन 20 सालों में अमेरिका के काम आए थे। लेकिन अमेरिका ने आखिरी समय में उनकी पीठ में छूरा भोंप दिया। 

तालिबान को एक साल पूरा हुआ

तालिबान को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा किए हुए एक साल हो गया है, जिसके बाद देश बुनियादी रूप से पूरी तरह बदल गया। इस मौके पर तालिबान लड़ाकों ने पैदल, साइकिलों और मोटर साइकिलों पर काबुल की सड़कों पर विजय परेड निकाली जिसमें कुछ ने राइफलें भी ले रखी थीं। एक छोटे समूह ने अमेरिका के पूर्व दूतावास के सामने से गुजरते हुए ‘इस्लाम जिंदाबाद’ और ‘अमेरिका मुर्दाबाद’ के नारे भी लगाए। अफगानिस्तान में एक साल में बहुत कुछ बदल गया है। आर्थिक मंदी के हालात में लाखों और अफगान नागरिक गरीबी की ओर जाने को मजबूर हुए हैं। इस बीच तालिबान नीत सरकार में कट्टरपंथियों का दबदबा बढ़ता दिख रहा है। 

सरकार ने लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर मुहैया कराये जाने पर पाबंदियां लगा दी हैं जबकि शुरुआत में देश ने इसके विपरीत वादे किये थे। एक साल बाद भी लड़कियों को स्कूल नहीं जाने दिया जा रहा है और महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर खुद को सिर से पांव तक ढककर जाना होता है। साल भर पहले हजारों अफगान नागरिक तालिबान के शासन से बचने के लिए देश छोड़ने के लिहाज से काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे थे। अमेरिका ने 20 साल की जंग के बाद अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुला लिया था और ऐसे हालात बने थे। 

इस मौके पर अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने देश छोड़ने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि वह विद्रोहियों के सामने समर्पण के अपमान से बचना चाहते थे। उन्होंने सीएनएन से बातचीत में कहा कि 15 अगस्त, 2021 की सुबह जब तालिबान काबुल तक पहुंच गया था, तो राष्ट्रपति भवन में वही बचे थे, क्योंकि उनके सारे सुरक्षाकर्मी गायब थे। 

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