Friday, April 26, 2024
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नया और मजबूत समाज चाहते हैं तो जरूर देखें ये फिल्में, देती हैं जबरदस्त संदेश

India TV Entertainment Desk Written by: India TV Entertainment Desk
Updated on: January 26, 2020 6:35 IST
  • 26 जनवरी 2020 को पूरा देश 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। संविधान ने हमे समाज में रहने का हक दिया है, लेकिन फिल्में समाज बनाती हैं। इस खास दिन पर हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने नए और मुखर समाज का आईना दिखाया है। ऐसी फिल्में जिन्होंने हमे परिवक्व और मुखर होना सिखाया है। ये फिल्में जरूर देखनी चाहिए। 

    26 जनवरी 2020 को पूरा देश 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। संविधान ने हमे समाज में रहने का हक दिया है, लेकिन फिल्में समाज बनाती हैं। इस खास दिन पर हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने नए और मुखर समाज का आईना दिखाया है। ऐसी फिल्में जिन्होंने हमे परिवक्व और मुखर होना सिखाया है। ये फिल्में जरूर देखनी चाहिए। 

  • दीपिका पादुकोण और विक्रांत मैसी स्टारर मूवी 'छपाक' हाल ही में रिलीज हुई। इस फिल्म में एक एसिड अटैक सर्वाइवर की दर्दभरी कहानी और संघर्ष को दिखाया गया, जिसे देखकर तमाम पीड़िताओं को बोलने का साहस मिला। साथ ही दोषियों को सजा दिलाने की हिम्मत की मिली।  

    दीपिका पादुकोण और विक्रांत मैसी स्टारर मूवी 'छपाक' हाल ही में रिलीज हुई। इस फिल्म में एक एसिड अटैक सर्वाइवर की दर्दभरी कहानी और संघर्ष को दिखाया गया, जिसे देखकर तमाम पीड़िताओं को बोलने का साहस मिला। साथ ही दोषियों को सजा दिलाने की हिम्मत की मिली।  

  • फिल्म 'आर्टिकल 15' में हमारे संविधान और समाज की सच्चाई को दिखाती है। ये फिल्म आंखें खोल देती है कि कैसे समाज में जाति और धर्म को आधार बनाया जा रहा है, पीड़ित कौन है, ये जानने के बाद ही इंसाफ मिलता है, कभी कभी नहीं मिलता। 

    फिल्म 'आर्टिकल 15' में हमारे संविधान और समाज की सच्चाई को दिखाती है। ये फिल्म आंखें खोल देती है कि कैसे समाज में जाति और धर्म को आधार बनाया जा रहा है, पीड़ित कौन है, ये जानने के बाद ही इंसाफ मिलता है, कभी कभी नहीं मिलता। 

  • साल 2013 में रिलीज हुई 'जॉली एलएलबी'  कॉमेडी के जरिए देश की न्याय प्रणाली पर चोट करती। उन्होंने दिखाया कि कैसे न्याय मिलने में सालों बीत जाते हैं और इसके जरिए लोग अपना हित साधते हैं। 

    साल 2013 में रिलीज हुई 'जॉली एलएलबी'  कॉमेडी के जरिए देश की न्याय प्रणाली पर चोट करती। उन्होंने दिखाया कि कैसे न्याय मिलने में सालों बीत जाते हैं और इसके जरिए लोग अपना हित साधते हैं। 

  • 'बधाई हो' समाज और उसमें बनते मायनों पर बात करती है। लोग क्या कहेंगे, ये मत करो, वो मत करो। मिडिल क्लास की बारीकियों और अपने जीवन की महत्ता पर प्रकाश डालती है ये फिल्म।

    'बधाई हो' समाज और उसमें बनते मायनों पर बात करती है। लोग क्या कहेंगे, ये मत करो, वो मत करो। मिडिल क्लास की बारीकियों और अपने जीवन की महत्ता पर प्रकाश डालती है ये फिल्म।

  • 'नो मीन्स नो' फिल्म पिंक ने लड़कियों को ना बोलना सिखाया। ये संविधान में प्रदत्त अधिकार है और  अनिरुद्ध रॉय चौधरी द्वारा निर्दशित इस मूवी में इसकी महत्ता दिखाई गई है। फिल्म में दिखाया गया कि कैसे हर कदम पर लड़कियों को ही गलत ठहराया जाता है। उन्हें जज किया जाता है। उनके चरित्र पर आसानी से उंगली उठा दी जाती है, लेकिन ये फिल्म हिम्मत भी देती है कि सच को सामने लाना बहुत जरूरी है।  

    'नो मीन्स नो' फिल्म पिंक ने लड़कियों को ना बोलना सिखाया। ये संविधान में प्रदत्त अधिकार है और  अनिरुद्ध रॉय चौधरी द्वारा निर्दशित इस मूवी में इसकी महत्ता दिखाई गई है। फिल्म में दिखाया गया कि कैसे हर कदम पर लड़कियों को ही गलत ठहराया जाता है। उन्हें जज किया जाता है। उनके चरित्र पर आसानी से उंगली उठा दी जाती है, लेकिन ये फिल्म हिम्मत भी देती है कि सच को सामने लाना बहुत जरूरी है।  

  • आज भी कई गांव या कस्बे ऐसे हैं, जहां पर महिलाएं शौच के लिए खुले में जाती हैं। उन्हें किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, ये बात समझाने के लिए अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की फिल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' एक बेहतर माध्यम है। इस फिल्म की वजह से कई जगहों पर बदलाव भी देखने को मिले हैं। 

    आज भी कई गांव या कस्बे ऐसे हैं, जहां पर महिलाएं शौच के लिए खुले में जाती हैं। उन्हें किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, ये बात समझाने के लिए अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की फिल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' एक बेहतर माध्यम है। इस फिल्म की वजह से कई जगहों पर बदलाव भी देखने को मिले हैं। 

  • 'पैडमैन' एक ऐसी फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार ने महिलाओं की सबसे बेसिक बीमारी और हाइजीन का मुद्दा उठाया है। माहवारी को लेकर समाज की सोच, औरतों का संकोच काफी बदला है इस फिल्म के बाद। 

    'पैडमैन' एक ऐसी फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार ने महिलाओं की सबसे बेसिक बीमारी और हाइजीन का मुद्दा उठाया है। माहवारी को लेकर समाज की सोच, औरतों का संकोच काफी बदला है इस फिल्म के बाद।