Sunday, April 28, 2024
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खुलासा, अमेरिका को दो साल पहले ही मिल चुका था Coronavirus फैलने का अलर्ट लेकिन नहीं उठाया कोई कदम

पूरी दुनिया को मौत के मुंह में धकेलने वाले कोरोना वायरस के फैलने की परतें अब धीरे-धीरे खुल रही हैं। वायरस के फैलने को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना वायरस एक एक्सिडेंट है या सोची समझी बहुत बड़ी साजिश?

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 18, 2020 12:26 IST
USA gets Coronavirus alert 2 years back- India TV Hindi
खुलासा, अमेरिका को दो साल पहले ही मिल चुका था Coronavirus फैलने का अलर्ट लेकिन नहीं उठाया कोई कदम

नई दिल्ली: पूरी दुनिया को मौत के मुंह में धकेलने वाले कोरोना वायरस के फैलने की परतें अब धीरे-धीरे खुल रही हैं। वायरस के फैलने को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना वायरस एक एक्सिडेंट है या सोची समझी बहुत बड़ी साजिश? ये बात साफ तो है कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलने की शुरूआत चीन के वुहान से हुई थी लेकिन अब तक ये बात साफ नहीं हुई है कि ये वायरस वुहान की लैब से निकला था या वुहान के सी फूड मार्केट से। वहीं एक खुलासे के बाद ये बात सामने आ रही है कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय को इस वायरस के फैलने का अलर्ट दो साल पहले ही मिल चुका था लेकिन अमेरिका ने इस वायरस को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। अब पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा है कि अमेरिका ने ऐसा क्यों किया?

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कुछ लोगों का मानना है कि वायरस चीन की लैब में बना लेकिन वैज्ञानिकों की लापरवाही से फैल गया जोकि सच्चाई के ज़्यादा करीब लगती है क्योंकि इसके सबूत अब दुनिया के सामने आ रहे हैं। दो साल पहले यानी साल 2018 में वुहान में मौजूद अमेरिका के 2 डिप्लोमेट और वॉशिंगटन में बैठे विदेश मंत्रालय के कुछ सीनियर अफसरों के बीच बातचीत हुई। ये बातचीत वुहान की एक लैब में वायरस को लेकर चल रहे रिसर्च को लेकर थी। इस बातचीत में रिसर्च की सुरक्षा में लापरवाही को लेकर गंभीर सवाल उठाए गये और वायरस के फैलने की चेतावनी दी गई।

वॉशिंगटन में बैठे विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने इस चेतावनी को बहुत हल्के में लिया। उन्होंने इसकी गंभीरता को समझे बिना कोई कार्यवाही नहीं की। हैरानी की बात ये है कि ये जानकारी कोई दूसरे अधिकारी नहीं बल्कि अपने देश के राजदूत दे रहे थे। यानी 2018 में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने वुहान से आई इस गंभीर सूचना पर काम किया होता तो आज कोरोना वायरस को पूरी दुनिया में फैलने से रोका जा सकता था। 

इस राज़ का खुलासा तब हुआ जब ये बातचीत विदेश मंत्रालय से लीक होकर अमेरिका के एक मीडिया हाउस तक पहुंच गई। खुलासे के मुताबिक चीन के शहर वुहान के लैब में दो साल पहले इस वायरस पर रिसर्च चल रहा था लेकिन तब इसका नाम कोरोना नहीं पड़ा था।

जनवरी 2018 में अमेरिका के विदेशमंत्रालय का एक डेलिगेशन वुहान में मौजूद वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में पहुंचा। इस डेलिगेशन में वुहान में अमेरिका के राजदूत जेमिसन फॉस और विज्ञान और तकनीक से जुड़े सलाहकार रिक स्विटज़र शामिल थे। जनवरी से मार्च के दौरान कई बार लैब के निरिक्षण से ये बात सामने आई कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में चमगादड़ो पर किसी वायरस से जुड़ी एक रिसर्च चल रही हैं लेकिन निरिक्षण के दौरान जो बात सामने आईं वो अमेरिकी राजदूत ने सिलसिलेवार तरीके से वॉशिंगटन में विदेश मंत्रालय को भेज दी।

इनमें पहली सूचना थी कि वुहान की लैब में किसी वायरस पर चल रहे रिसर्च में वैज्ञानिक और टैक्निशियन सावधानी और सुरक्षा को लेकर बहुत बड़ी लापरवाही कर रहे हैं। इसके अलावा ये चेतावनी दी थी कि अगर सुरक्षा के उपाय नहीं किए गये हैं तो लैब से सार्स जैसी महामारी फैल सकती है। अपनी जांच में इन दो अमेरिकी राजदूत ने पाया कि लैब में ट्रेंड और पेशवर टेक्शियन की भारी कमी है।

यहां सवाल पैदा होता कि अमेरिका के ये दो अधिकारी चीन में मौजूद वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ विरोलॉजी की इतनी चिंता क्यों कर रहे थे? दरअसल चीन की इस लैब को अमेरिका से करोड़ो रूपये का फंड मिलता है। इसके अलावा अमेरिका के टैक्सस में मौजूद गेलवैस्टोन नेशनल लेबोट्ररी से रिसर्च को लेकर कई तरह की मदद भेजी जाती रही है। इसी आधार पर वुहान में मौजूद अमेरिका के अधिकारी वुहान की लैब की जांच करने जाते रहते थे। 

अपनी बातचीत में इन अधिकारियों ने ये दोहराया था कि वुहान लैब को मदद की ज़रूरत है। ख़ासतौर पर चमगादड़ों पर चली रिसर्च को लेकर लेकिन अमेरिका में बैठे अधिकारियों ने इस चेतावनी पर विशेष गंभीरता नहीं दिखाई। यानी चीन की इस गलती में अमेरिका भी बराबर का हिस्सेदार बन गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि चमगादड़ों के जरिए ही कोरोना का संक्रमण इंसानों के शरीर में आया है लेकिन ये चमगादड़ों को खाने में शामिल करने से नहीं बल्कि उन पर चल रहे रिसर्च से वायरस में हुए लीक से लोगों तक पहुंचा है।

जांच के मुताबिक  चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने वुहान से करीब एक हजार मील दूर युन्नान से कुछ चमगादड़ों को पकड़ा है और उन पर रिसर्च किया जा रहा था। इसी प्रयोग को जारी रखने के लिए अमेरिकी सरकार ने लैब को 29 करोड़ रुपये का फंड भी भेजा था। वुहान की इस लैब के निरिक्षण के दौरान अमेरिकी अधिकारियों की इस रिसर्च की प्रमुख शी झेंगली के साथ भी मुलाकात हुई जो वायरस से होने वाली सार्स जैसी महामारी में चमगादड़ों और वायरस के संबंधों पर वर्षों से रिसर्च कर रही थी। इसी रिसर्च के आधार पर भविष्य में वायरस से होने वाली महामारी को समझा जा सकता है लेकिन लैब की एक लापरवाही की वजह से ये वायरस लैब निकलकर शहर में फैल गया जहां से पूरी दुनिया को कोरोना का शिकार बना दिया। 

चीन ने इस गलती को कभी नहीं माना बल्कि इसकी जगह चीन ने वेट मार्केट की थ्योरी को जानबूझकर फैलाया ताकि वुहान की लैब पर लगने वाले आरोप दब जाएं। वेट मार्किट यानी वो बाज़ार जहां पशु पक्षियों का ताजा मांस, मछली और सी फूड बेचा जाता है। शुरूआत में पूरी दुनिया को यही लगा कि कोरोना वायरस वुहान के वेट मार्किट से ही फैला है लेकिन अब इसके वुहान की लैब से फैलने के संकेत सामने आने लगे हैं। हालांकि अमेरिका के पास भी इस बात के पक्के सबूत नहीं है कि वायरस चीन की वुहान लैब से निकलकर पूरी दुनिया में फैला है।

कोरोना वायरस वुहान के मीट मार्किट से निकला या वुहान की लैब से ये जांच का विषय है लेकिन अब तक की जांच में ये बात साफ है कि चमगादड़ों का इस वायरस से बहुत गहरा नाता है लेकिन एक जांच कहती है कि वुहान के इस बाजार में चमगादड़ नहीं बेचे जाते थे। ऐसे में ये सवाल उठता है कि चमगादड़ के अलावा कोई और जीव भी वायरस का कारण बनता है। इस पहलू के बारे में दुनिया के कई देश वेट मार्किट को संक्रमण का बहुत बड़ा कारण मानते हैं।

अगर अमेरिका के विदेश मंत्रालय की इस बातचीत को सही माना जाये तो दुनियाभर में कोरोना वायरस के दो विलेन साफ दिखाई देते हैं। इनमें पहला चीन जिसने वुहान लैब में वायरस पर चल रहे रिसर्च को लेकर लापरवाहियों को नज़रअंदाज किया, दूसरा अमेरिका जो वक़्त रहते सभी सूचनाए मिलने के बावजूद वायरस को फैलने से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाये। इस पर एक लंबी बहस हो सकती है लेकिन ये तय है कि कुछ लोगों की लापरवाही या साजिश की वजह से पूरी दुनिया पर मौत का संकट मंडरा रहा है जो न जाने कब ख़त्म होगा।

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