Saturday, April 20, 2024
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सबरीमाला मंदिर मामले में कल आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला, 65 पुनर्विचार याचिकाओं पर पूरी हुई सुनवाई

केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत बृहस्पतिवार को फैसला सुनायेगी।

Bhasha Written by: Bhasha
Updated on: November 13, 2019 16:41 IST
Supreme court to pronounce judgment in Sabarimala Review Petitions on Thursday- India TV Hindi
Image Source : PTI Supreme court to pronounce judgment in Sabarimala Review Petitions on Thursday (File Photo)

नई दिल्ली: केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत बृहस्पतिवार को फैसला सुनायेगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के फैसले के पश्चात हुये हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनायेगी। संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इस साल छह फरवरी को सुनवाई पूरी की थी और कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा। 

इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक और लैंगिक तौर पर पक्षपातपूर्ण करार देते हुये 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। इस पीठ की एक मात्र महिला सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था। 

केरल में इस फैसले को लेकर बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध होने के बाद दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की थी। याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी, मंदिर के तांत्री, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार भी शामिल थीं। सबरीमला मंदिर की व्यवस्था देखने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने रूख से पलटते हुये मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की न्यायालय की व्यवस्था का समर्थन किया था। बोर्ड ने केरल सरकार के साथ मिलकर संविधान पीठ के इस फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया था। 

बोर्ड ने बाद में सफाई दी थी कि उसके दृष्टिकोण में बदलाव किसी राजनीतिक दबाव की वजह से नहीं आया है। कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बोर्ड ने केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा सरकार के दबाव में न्यायालय में अपना रूख बदला है। इस मसले पर केरल सरकार ने भी पुनर्विचार याचिकाओं को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है। केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश के मामले में विरोधाभासी रूख अपनाया था।

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